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आधार की अनिवार्यता पर SC की संवैधानिक पीठ में सुनवाई शुरू, निजता के अधिकार पर उठे हैं सवाल

सुप्रीम कोर्ट में आज पांच सदस्यों की संवैधानिक बेंच आधार मामले की सुनवाई करेगी। इस बेंच की अध्यक्षता चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा कर रहे हैं।

Updated on: 17 Jan 2018, 11:52 AM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ में आधार की अनिवार्यता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हो गई है।

आधार डेटा लीक और निजता के अधिकार में सरकार के दखल को लेकर उठ रहे सवालों के बीच इस पीठ को यह तय करना है कि क्या आधार कार्ड वाकई में संविधान प्रदत्त निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

इस पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए के सीकरी, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस अशोक भूषण शामिल होंगे।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में हुए विवाद के बाद 16 जनवरी को चीफ जस्टिस ने संवैधानिक पीठ का निर्माण किया था, जिसमें उन चारों जजों को शामिल नहीं किया गया था, जिन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक प्रशासन में कथित अनियमितताओं का आरोप लगाया था।

चारों न्यायाधीशों न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एम बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ में से किसी का नाम पांच जजों की संविधान पीठ के सदस्यों में नहीं है।

आधिकारिक जानकारी के मुताबिक पांच न्यायाधीशों की पीठ में सीजेआई दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए के सीकरी, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाईचंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल हैं। यह संविधान पीठ 17 जनवरी से कई महत्वपूर्ण मामलों पर सुनवाई शुरू करेगी।

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नया बेंच आधार की वैधता, समलैंगिक सबंधो को अपराध के दायरे से बाहर रखने की मांग, गैर मर्द से सम्बंध रखने पर महिला पर मुकदमा चलाने की मांग, सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश का अधिकार दिए जाने, आपराधिक मुकदमे का सामना कर रहे एमपी/एमलए को चुनाव लड़ने से रोके जाने की मांग समेत कई अहम मसलों पर सुनवाई करेगी।

कोर्ट में इस मामले को लेकर भी याचिका दायर किया जा चुका है कि क्या आधार नंबर को मोबाइल फोन, बैंक अकाउंट और कई अन्य योजनाओं से जोड़ा जा सकता है।

इससे पहले आधार नंबर को मोबाइल से जोड़ने की अंतिम तारीख 31 दिसंबर थी। बाद में केंद्र सरकार ने कोर्ट में दलील देकर कहा था कि डेडलाइन 31 दिसंबर 2017 से बढ़ाकर 31 मार्च 2018 कर दी गई है।

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