राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बढ़ती हिंसा पर जताई चिंता, कहा- भारत की आत्मा सहिष्णुता में बसती है, 10 बातें
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को देश के नाम अपने आखिरी संबोधन में कहा कि भारत की आत्मा बहुलवाद और सहिष्णुता में बसती है।
highlights
- राष्ट्रपति ने देश में बढ़ती हिंसा पर जताई चिंता, गांधी के अहिंसा के मार्ग को अपनाने की अपील की
- राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का सोमवार को देश के नाम आखिरी संबोधन था
नई दिल्ली:
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को देश के नाम अपने आखिरी संबोधन में कहा कि भारत की आत्मा बहुलवाद और सहिष्णुता में बसती है। राष्ट्रपति ने देश में बढ़ती हिंसा पर चिंता भी जताई और फिर से महात्मा गांधी के अहिंसा के मार्ग को अपनाने की अपील की। राष्ट्रपति ने वाद-विवाद पर भी जोर दिया।
1. राष्ट्रपति ने कहा, 'भारत की आत्मा, बहुलवाद और सहिष्णुता में बसती है। भारत केवल एक भौगोलिक सत्ता नहीं है। इसमें विचारों, दर्शन, बौद्धिकता, औद्योगिक प्रतिभा, शिल्प, नवान्वेषण और अनुभव का इतिहास शामिल है। सदियों के दौरान, विचारों को आत्मसात करके हमारे समाज का बहुलवाद निर्मित हुआ है। संस्कृति, पंथ और भाषा की विविधता ही भारत को विशेष बनाती है। हमें सहिष्णुता से शक्ति प्राप्त होती है।'
2. प्रणब मुखर्जी ने वाद-विवाद पर जोर देते हुए कहा, 'जन संवाद के विभिन्न पहलू हैं। हम तर्क-वितर्क कर सकते हैं, हम सहमत हो सकते हैं या हम सहमत नहीं हो सकते हैं। परंतु हम विविध विचारों की आवश्यक मौजूदगी को नहीं नकार सकते। अन्यथा हमारी विचार प्रक्रिया का मूल स्वरूप नष्ट हो जाएगा।'
3. समाज में बढ़ती हिंसा पर राष्ट्रपति ने कहा, 'प्रतिदिन हम अपने आसपास बढ़ती हुई हिंसा देखते हैं। इस हिंसा की जड़ में अज्ञानता, भय और अविश्वास है। हमें अपने जन संवाद को शारीरिक और मौखिक सभी तरह की हिंसा से मुक्त करना होगा। एक अहिंसक समाज ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों के सभी वर्गों विशेषकर पिछड़ों और वंचितों की भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है। हमें एक सहानुभूतिपूर्ण और जिम्मेवार समाज के निर्माण के लिए अहिंसा की शक्ति को पुनर्जाग्रत करना होगा।
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4. संविधान की सर्वोच्च महत्ता पर जोर देते हुए राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा, "पिछले 50 वर्षो के सार्वजनिक जीवन के दौरान भारत का संविधान मेरा पवित्र ग्रंथ रहा है, भारत की संसद मेरा मंदिर रहा है और भारत की जनता की सेवा मेरी अभिलाषा रही है।"
5. राष्ट्रपति ने समानता पर जोर देते हुए कहा, 'गांधीजी भारत को एक ऐसे समावेशी राष्ट्र के रूप में देखते थे, जहां आबादी का प्रत्येक वर्ग समानता के साथ रहता हो और समान अवसर प्राप्त करता हो। वह चाहते थे कि हमारे लोग एकजुट होकर निरंतर व्यापक हो रहे विचारों और कार्यों की दिशा में आगे बढ़ें। वित्तीय समावेशन समतामूलक समाज का प्रमुख आधार है। हमें गरीब से गरीब व्यक्ति को सशक्त बनाना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी नीतियों के फायदे पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे।'
6. उन्होंने कहा कि एक आधुनिक राष्ट्र का निर्माण कुछ आवश्यक मूल तत्वों पर होता है, जिसमें प्रत्येक नागरिक के लिए लोकतंत्र अथवा समान अधिकार, प्रत्येक पंथ के लिए निरपेक्षता अथवा समान स्वतंत्रता, प्रत्येक प्रांत की समानता तथा आर्थिक समता महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि विकास को वास्तविक बनाने के लिए, देश के सबसे गरीब को यह महसूस होना चाहिए कि वह राष्ट्र गाथा का एक भाग है।
7. देश की तरक्की के लिए शिक्षा को मूल बताते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो भारत को अगले स्वर्ण युग में ले जा सकता है।
8. राष्ट्रपति ने 2012 के अपने संबोधन को याद करते हुए कहा, 'मैं विदा होने के लिए तैयार हो रहा हूं, मैं 2012 के स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के अपने प्रथम संबोधन में जो कहा था, उसे दोहराता हूं- 'इस महान पद का सम्मान प्रदान करने के लिए, देशवासियों तथा उनके प्रतिनिधियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मेरे पास पर्याप्त शब्द नहीं है, यद्यपि मुझे इस बात का पूरा अहसास है कि लोकतंत्र में सबसे बड़ा सम्मान किसी पद में नहीं बल्कि हमारी मातृभूमि, भारत का नागरिक होने में है। अपनी मां के सामने हम सभी बच्चे समान हैं, और भारत हम में से हर एक से यह अपेक्षा रखता है कि राष्ट्र-निर्माण के इस जटिल कार्य में हम जो भी भूमिका निभा रहे हैं, उसे हम ईमानदारी, समर्पण और हमारे संविधान में स्थापित मूल्यों के प्रति दृढ़ निष्ठा के साथ निभाएं।'
9. अपने अपार अनुभव संसार को देशवासियों से साझा करते हुए राष्ट्रपति मुखर्जी संबोधन के आखिर में भावुक भी हो गए अपने प्रति जताए गए सम्मान के लिए सभी देशवासियों का आभार भी व्यक्त किया।
10. अपने अनुभवों को साझा करते हुए मुखर्जी ने कहा, मैं आपके साथ कुछ सच्चाइयों को साझा करना चाहूंगा जिन्हें मैंने इस अवधि के दौरान आत्मसात किया है। पर्यावरण की सुरक्षा हमारे अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी है। प्रकृति हमारे प्रति पूरी तरह उदार रही है। परंतु जब लालच आवश्यकता की सीमा को पार कर जाता है, तो प्रकृति अपना प्रकोप दिखाती है।
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