Harivansh Rai Bachchan Birth Anniversary: हरिवंश राय बच्चन के जन्मदिन पर पढ़ें उनकी ये मशहूर कविताएं
हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) ने अपनी कविताओं के जरिए जीवन में कामयाबी के ऐसे मंत्र दिए हैं, जिन्हें अपनाकर आप सफलता हासिल कर सकते हैं
नई दिल्ली:
Harivansh Rai Bachchan Birthday: हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और कवि हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) की आज 27 नवंबर को जयंती है. हरिवंश राय बच्चन का जन्म सन 1907 में इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गांव पट्टी में हुआ था. हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan)ने 'मधुशाला', 'मधुकलश', 'मिलन यामिनी' और 'दो चट्टानें' जैसी प्रमुख साहित्यिक कृतियां लिखी हैं.
'मधुशाला' (Madhushala) उनकी काफी मशहूर कविता है. वहीं, 'क्या भूलूं क्या याद करूं', 'नीड़ का निर्माण फिर' और 'बसेरे से दूर' समेत कई रचनाएं और भी हैं. उनकी लिखी 'दो चट्टानें' को 1968 में हिन्दी कविता का साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) ने अपनी कविताओं के जरिए जीवन में कामयाबी के ऐसे मंत्र दिए हैं, जिन्हें अपनाकर आप सफलता हासिल कर सकते हैं. यहां पढ़िए 'मधुशाला' (Madhushala) की कुछ कविताएं.
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मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूं-'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।
पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला
सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला
मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता
मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला
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रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूंगा पी हाला
पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला
क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी, अन्यायी यमराजों के
डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला
सुन, कलकल , छलछल मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मस्जिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।
नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीनेवाला,
कौन अपिरिचत उस साकी से, जिसने दूध पिला पाला,
जीवन पाकर मानव पीकर मस्त रहे, इस कारण ही,
जग में आकर सबसे पहले पाई उसने मधुशाला।
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊंगा प्याला
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला
मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला
यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूंगा पी हाला
पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला
क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी, अन्यायी यमराजों के
डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला
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