67वां प्रादेशिक सेना दिवस: आप भी कर सकते हैं देश की सेवा, जानें कब हुई स्थापना
रविवार को 67वां प्रादेशिक सेना दिवस यानी टेरिटोरियल आर्मी डे सेलिब्रेट किया गया। इस खास मौके पर आर्मी चीफ जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने दिल्ली के कैंटोनमेंट में आर्मी परेड ग्राउंड में स्पीच दी।
नई दिल्ली:
रविवार को 67वां प्रादेशिक सेना दिवस यानी टेरिटोरियल आर्मी डे सेलिब्रेट किया गया। इस खास मौके पर आर्मी चीफ जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने दिल्ली के कैंटोनमेंट में आर्मी परेड ग्राउंड में स्पीच दी। इसके बाद प्रादेशिक सेना बटालियन (TA battalions) ने शानदार परेड के जरिए अपनी ताकत का अहसास कराया।
Army Chief General Dalbir Singh speaking at territorial army parade in Delhi pic.twitter.com/jjrAGmFVUp
— ANI (@ANI_news) October 9, 2016
प्रादेशिक सेना की स्थापना
9 अक्टूबर 1949 को प्रादेशिक सेना की स्थापना हुई थी। इस सेना में करीब 40 हजार जवान शामिल हैं। ये आर्मी युवकों को अवसर देती है कि अगर उनमें अपने देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा है और अपने राष्ट्र की सेवा करना चाहते हैं तो प्रादेशिक सेना आपके लिए बेहतर चुनाव होगा। ये आर्मी युद्ध या लड़ाई के दौरान मार्गदर्शक की भूमिका निभाने से लेकर सेना तक की मदद करती है।
क्या है प्रादेशिक सेना
प्रादेशिक सेना एक स्वैच्छिक नागरिक सेवा है। नियमित भारतीय सेना के बाद ये रक्षा करने वाली दूसरी सेना है। इसके जरिए आम नागरिक सेना में भर्ती होने और देश की सेवा का शौक पूरा कर सकता है। युद्ध के समय तैनाती के लिए प्रादेशिक सेना का उपयोग होता है। इसमें शामिल होने वाले लोगों को कम समय में प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे सक्षम सैनिक बन सकें। हालांकि, अफसर के रूप में चुने जाने वाले सदस्यों को 'लेफ्टिनेंट' का दर्जा और सैन्य अफसर के समान वेतन-भत्ते मिलते हैं।
प्रादेशिक सेना की जिम्मेदारियां
प्रादेशिक सेना के सदस्य रक्षा से जुड़ी कई जिम्मेदारियां निभाते हैं। आतंकविरोधी अभियान में सेना की मदद करने से लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं। यही नहीं, युद्ध में हिस्सा लेकर सैन्य संस्थानों और छावनियों की सुरक्षा भी प्रादेशिक सेना के हाथों में होती है। करगिर युद्ध में भी इनकी भूमिका देखने को मिलती है।
महिलाओं की भी मांग
दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका में महिलाओं को भी प्रादेशिक सेना में भर्ती होने की मांग की गई है। इसके मुताबिक, प्रादेशिक सेना में महिलाओं की भर्ती न होना संस्थागत भेदभाव को दिखाता है।
ये शख्सियत हैं प्रादेशिक सेना का हिस्सा
पूर्व भारतीय क्रिकेटर कपिल देव साल 2008 में प्रादेशिक सेना में शामिल हुए थे। खेल में अहम योगदान के लिए उन्हें लेफ्टिनेंट कर्नल का पद दिया गया।
कैप्टन 'कूल' महेंद्र सिंह धोनी साल 2011 में प्रादेशिक सेना का हिस्सा बने। वो पैराशूट रेजिमेंट में शामिल हुए थे। लेफ्टिनेंट कर्नल के तौर पर उन्होंने आगरा में पैराजंपिंग की ट्रेनिंग भी ली है।
बीजेपी के नेता और बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर भी 2016 में सेना में लेफ्टिनेंट बन गए। उन्होंने संसद सत्र के बीच बाकायदा आर्मी की ट्रेनिंग भी ली। अनुराग ठाकुर ने सर्विसेज सेलेक्शन बोर्ड (एसएसबी) की परीक्षा पास की थी।
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