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विधानसभा चुनाव परिणाम: यूपी में टूटा प्रशांत किशोर का तिलिस्म, राहुल के लिए बने सिरदर्द

यूपी चुनाव के नतीजों से साफ है कि सत्ता विरोधी लहर अखिलेश के खिलाफ था और इसका खामियाजा कांग्रेस को भी भुगतना पड़ा।

Updated on: 11 Mar 2017, 11:52 AM

नई दिल्ली:

बिहार में महागठबंधन कराने वाले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की रणनीति यूपी में धाराशायी हो गई। कह सकते हैं यूपी में प्रशांत किशोर कांग्रेस के लिए बोझ बन गए। बिहार में जहां किशोर नीतीश को गद्दी पर बिठाने में सफल रहे वहीं यूपी में उन्होंने राहुल के सपनों को चकनाचूर कर दिया। हालांकि विश्लेषकों का एक धड़ा पहले से ही किशोर को बिहार में मिली चुनावी जीत का जिम्मेदार मानने से इनकार करता रहा है।

किशोर ने सबसे पहले ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को सीएम पद का उम्मीदवार बनाया और फिर इसके बाद उन्होंने सपा के साथ गठबंधन की कोशिश की। लेकिन यूपी में उनका प्रयोग अमित शाह की रणनीति से मात खा गया। किशोर को कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में पार्टी के संगठन को तैयार करे की जिम्मेदारी सौंपी थी। लेकिन उन्हें यह काम करने उतना मौका नहीं मिल पाया।

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प्रियंका-डिंपल की सक्रिय भूमिका

बिहार की तरह ही उन्होंने उत्तर प्रदेश में चुनाव पूर्व समाजवादी-कांग्रेस गठबंधन की कोशिशों के तहत मुलायम सिंह और अखिलेश यादव से अलग-अगल मुलाकात की। लेकिन उनकी कोशिश कामयाब नहीं हो पाई। चुनाव पूर्व उत्तर प्रदेश में समाजवादी-कांग्रेस गठबंधन जरूर हुआ लेकिन उसके पीछे प्रियंका गांधी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव की सक्रिय भूमिका रही।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने भले ही किशोर को पार्टी के संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपी लेकिन उन्हें यहां वह आजादी नहीं मिल पाई जो नीतीश कुमार के जेडीयू में मिली थी।

किशोर की कार्यशैली पर आपत्ति

इसकी सबसे बड़ी वजह कांग्रेस के नेताओं की तरफ से किशोर के काम करने की शैली को लेकर उठाई गई आपत्ति थी। इसके अलावा प्रदेश में प्रशांत किशोर ने समाजवादी पार्टी के साथ वैसे समय में गठबंधन की कोशिश की जब समाजवादी पार्टी अपनी पारिवारिक लड़ाई में उलझी हुई थी और पार्टी ने उत्तर प्रदेश के लिए शीला दीक्षित को अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर रखा था। उस वक्त किशोर का समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की कोशिश, उत्तर प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व को रास नहीं आया।

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प्रदेश कांग्रेस ने आलाकमान से इसे लेकर नाराजगी जताई क्योंकि उन्हें लगा कि इससे समाजवादी पार्टी को कांग्रेस पर बढ़त बनाने का मौका मिलेगा। इसके अलावा पंजाब में भी प्रशांत किशोर ने वैसे कई फैसले लिए जो कैप्टन अमरिंदर सिंह को नाराज कर गया। बात यहां तक बढ़ गई कि कैप्टन ने प्रशांत किशोर को पार्टी के कई फैसलों से दूर कर दिया।

कांग्रेस-सपा को भुगतना पड़ा खामियाजा

यूपी चुनाव के नतीजों से साफ है कि सत्ता विरोधी लहर अखिलेश के खिलाफ था और इसका खामियाजा कांग्रेस को भी भुगतना पड़ा। यूपी में कांग्रेस वैसे भी अपनी खोई जमीन वापस तलाश रही थी लेकिन अखिलेश से हाथ मिलाना राहुल के लिए भारी पड़ा और इस गठबंधन की विफलता का श्रेय बहुत हद तक प्रशांत किशोर के माथे ही फोड़ा जाना चाहिए।

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प्रशांत पर भारी पड़े अमित शाह

यूपी चुनाव के बाद प्रशांत किशोर की रणनीति अमित शाह के सधे हुए जमीनी काम के आगे पस्त नजर आई। किशोर न तो कांग्रेस के संगठन को न तो समझ पाए और नहीं उसे खड़ा कर पाए। वहीं अमित शाह ने न केवल करीब डेढ़ दशक तक लगातार कमजोर होते बीजेपी के संगठन को खड़ा किया, बल्कि नई बुलंदियों तक पहुंचाया। यूपी चुनाव में किशोर का तिलिस्म पूरी तरह से टूट गया।

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