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वर्किंग वुमन को पता होने चाहिए सुरक्षा के कानून, जानें...

ऑफिस में महिला उत्त्पीड़न एक गंभीर समस्या है जो महिलाओं के काम के स्थान पर होती है. यह स्थिति सेक्सुअल हैरेसमेंट, मानसिक उत्पीड़न, या अन्य अनुचित व्यवहार के तौर पर पेश आ सकती है.

Updated on: 07 Mar 2024, 01:49 PM

नई दिल्ली :

ऑफिस में महिला उत्त्पीड़न एक गंभीर समस्या है जो महिलाओं के काम के स्थान पर होती है. यह स्थिति सेक्सुअल हैरेसमेंट, मानसिक उत्पीड़न, या अन्य अनुचित व्यवहार के तौर पर पेश आ सकती है. महिला उत्त्पीड़न का मुख्य कारण विभिन्न प्रकार के अधिकारों की उपेक्षा, लिंग, जाति, धर्म, या काम के प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में अन्यायपूर्ण व्यवहार हो सकता है. इससे महिलाएं कार्य स्थान पर असुरक्षित और असमान भावना को महसूस करती हैं. महिला उत्त्पीड़न के प्रकार शारीरिक, मानसिक, या वर्बल हो सकते हैं. इसमें अनुचित स्पर्श, शारीरिक छेड़छाड़, अश्लील टिप्पणियां, या अन्य अनुचित व्यवहार शामिल हो सकता है.

महिला उत्त्पीड़न को रोकने के लिए संगठनों और कानूनी निकायों ने कई कदम उठाए हैं, जैसे कि एक्सपोजर हेल्पलाइन, शिकायत निवारण योजना, और कार्य स्थान के नीतियों की रखरखाव. इनका उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षित रखना और उनके अधिकारों की सुरक्षा करना है.

1. यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013:

यह कानून कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न को रोकने, निषेध और निवारण के लिए बनाया गया है.
यह कानून सभी संगठनों पर लागू होता है जिनमें 10 या अधिक कर्मचारी हैं.
इस कानून के तहत, संगठनों को एक आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee) का गठन करना होता है.
यदि किसी महिला को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, तो वह आंतरिक शिकायत समिति या पुलिस में शिकायत दर्ज कर सकती है.

2. समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976:

यह कानून पुरुषों और महिलाओं को समान काम के लिए समान वेतन देने का प्रावधान करता है.
यदि किसी महिला को समान काम के लिए पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है, तो वह कानूनी कार्रवाई कर सकती है.

3. मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961:

यह कानून गर्भवती महिलाओं को 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश और अन्य लाभ प्रदान करता है.
यदि किसी महिला को मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत मिलने वाले लाभों से वंचित रखा जाता है, तो वह कानूनी कार्रवाई कर सकती है.

4. समान अवसर (रोजगार में) अधिनियम, 1976:

यह कानून रोजगार के मामले में लैंगिक भेदभाव को रोकता है.
यदि किसी महिला को रोजगार के मामले में लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है, तो वह कानूनी कार्रवाई कर सकती है.

5. घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005:

यह कानून घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया है.
यदि किसी महिला को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है, तो वह इस कानून के तहत सुरक्षा और अन्य लाभ प्राप्त कर सकती है.
यह महत्वपूर्ण है कि सभी वर्किंग वुमन इन कानूनों के बारे में जागरूक हों ताकि वे अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें.

यहां कुछ संसाधन दिए गए हैं जो आपको इन कानूनों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं:

राष्ट्रीय महिला आयोग: https://wcd.nic.in/
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय: https://wcd.nic.in/
भारतीय कानून आयोग: https://lawcommissionofindia.nic.in/

आप इन कानूनों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने वकील से भी संपर्क कर सकती हैं.