छात्र नेता से सूबे के सीएम तक... संघर्षों से भरा रहा MP के नए सीएम मोहन यादव का सियासी सफर
डॉ. मोहन यादव के इस सियासी सफर में तकरीबन 41 वर्षों का संघर्ष शुमार है. माधव विज्ञान महाविद्यालय से बतौर छात्र नेता, राजनीति में उनका पहला कदम था. वे 1982 में छात्रसंघ के सह-सचिव और 1984 में छात्रसंघ के अध्यक्ष पर भी रहे.
नई दिल्ली:
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद, आखिरकार भाजपा आलाकमान ने सीएम फेस का चयन कर ही लिया है. बता दें कि सूबे की सियासत में सीएम पद के लिए, शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, राकेश सिंह, कैलाश विजयवर्गीय जैसे दिग्गज नामों की चर्चा थी, जिनपर विराम लगाते हुए पार्टी आलाकमान ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर उज्जैन दक्षिण से विधायक डॉ. मोहन यादव के नाम का ऐलान किया है...
ऐसे में चलिए जानें आखिर कौन है सूबे के नए सीएम मोहन यादव और कैसा रहा है उनका अबतक का सियासी सफर...
गौरतलब है कि, डॉ. मोहन यादव के इस सियासी सफर में तकरीबन 41 वर्षों का संघर्ष शुमार है. माधव विज्ञान महाविद्यालय से बतौर छात्र नेता, राजनीति में उनका पहला कदम था. वे 1982 में छात्रसंघ के सह-सचिव और 1984 में छात्रसंघ के अध्यक्ष पर भी रहे. फिर इसी वर्ष उन्होंने 1984 मे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद उज्जैन के नगर मंत्री और 1986 मे विभाग प्रमुख की जिम्मेदारी भी संभाली. इसके दो साल बाद उन्हें ABVP मध्यप्रदेश के प्रदेश सहमंत्री और राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया. फिर 1989-90 में परिषद की प्रदेश इकाई के प्रदेश मंत्री और सन 1991-92 में परिषद के राष्ट्रीय मंत्री रहे. फिर इसके अगले ही साल, 1993-95 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, उज्जैन नगर के सह खंड कार्यवाह, सायं भाग नगर कार्यवाह और 1996 में खण्ड कार्यवाह और नगर कार्यवाह की पद पर तैनात रहे.
इसके बाद भी उन्होंने पार्टी के तमाम पदों की जिम्मेदाियां बखूबी संभाली. जब उनका नाम और काम पार्टी हाईकमान तक पहुंचा, तो सरकार में उन्हें मंत्री पद पर विराजने का तोहफा भी दिया. डॉ. मोहन यादव पहली बार 2013 में विधायक चुने गए. इसके बाद एक बार फिर पार्टी ने उनपर विश्वास कर साल 2018 के विधानसभा में उन्हें मैदान में उतारा, जब वो फिर से कामयाब रहे. इसके बाद उन्हें 2020 में मंत्री बनाया गया.
अपने बयानों से चर्चा में रहे...
मध्य प्रदेश के नए-नवेले मुख्यमंत्री के ताल्लुक कई विवादों से भी रहे हैं. साल 2020 में चुनाव आयोग की ओर से उन्हें असंयमित भाषा का नोटिस देते हुए, एक दिन के लिए चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध लगाया गया था. फिर अगले साल 2021 में वो उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी कानून, जिसमें आपराधिक रेकॉर्ड वाले छात्रों को कॉलेज में प्रवेश नहीं देने से जुड़े मामले में भी विवादों में रहे.
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