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बिनोदानंद झा: आजादी के लिए छोड़ी पढ़ाई, जेल में रहकर लड़ी अंग्रेजों से लड़ाई

स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई हो और अंग्रेजी हुकूमत की कोप का शिकार न बने ऐसा होने से रहा. बिहार में अंग्रेजी शासनकाल और आजादी के बाद करीब पांच दशक तक सक्रिय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पंडित विनोदनंद झा स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई भी लड़ी.

Updated on: 14 Aug 2023, 11:29 PM

Patna:

बिहार की मिट्टी में एक और स्वतंत्रता सेनानी ने जन्म लिया था और ये आगे चलकर बिहार के सीएम भी बने. नाम था बिनोदानंद झा. ये बिहार के तीसरे मुख्यमंत्री थे. इन्होंने देश की आजादी में न सिर्फ अपना योगदान दिया बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए अपनी पढ़ाई तक छोड़ दी. ऐसा माना जाता हैं कि सलाखों के पीछे जाने के बाद इंसान का विवेक काम करना बंद कर देता है. लेकिन बिनोदानंद झा के लिए ये अलग ही अनुभव था. अविभाजित बिहार के देवघर जो अब झारखंड में है में 17 अपैल 1901 को एक ब्राम्हण परिवार में जन्मे बिनोदानंद झा शुरू से ही सामाजिक और लोकप्रिय इंसान थे.

  • जेल में भी अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले बिनोदानंद झा
  • देश की आजादी के लिए छोड़ दी पढ़ाई
  • बिहार के तीसरे मुख्यमंत्री की भूमिका निभाई

शुरुआती पढ़ाई देवघर से ही पूरी करने के बाद कलकत्ता के सेंट्रल कॉलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए एडमिशन लिया. अब एडमिशन तो ले लिया लेकिन पढ़ाई लिखाई में कुछ ज्यादा ध्यान नहीं लगा. बिनोदानंद झा भी देश को अंग्रेजी हुकूमत से निजात दिलाने का सपना देखते रहे और एक दिन पढ़ाई लिखाई को अलविदा कहकर स्वतंत्रा संग्राम की लड़ाई से जुड़ गए. अब स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई हो और अंग्रेजी हुकूमत की कोप का शिकार न बने ऐसा होने से रहा. बिहार में अंग्रेजी शासनकाल और आजादी के बाद करीब पांच दशक तक सक्रिय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पंडित विनोदनंद झा स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में भी हिस्सा लिया. स्वतंत्रता आंदोलन के क्रम में वर्ष 1922, 1930, 1940 और 1942 में लंबी अवधि के लिए जेल गये.

  • रास न आई पढ़ाई, लड़ी स्वतंत्रता की लड़ाई
  • जेल और सलाखों को बनाया साथी!
  • अंग्रेज अफसरों को भी सलाखों के पीछे रहकर चटाई धूल
  • जेल में भी अपनी ही चलाई

एक बार की जेल यात्रा के दौरान संताल परगना के अंग्रेज कमिश्नर ने उन्हें जान से मार डालने का भी प्रयास किया. तब वे दुमका जेल में बंद थे. जेल में बंद करने के बाद ग्रेनाइट की चट्टानों को तोड़ कर गिट्टी बनाने का उन्हें काम दिया गया. जिस पर उन्होंने आंखों पर लगाने के लिए एक खास तरह के गोगल्स मांगे. तब जेल में तहलका मच गया कि कैदी गोगल्स लगाकर पत्थर तोड़ेंगे. यह तो कभी किसी ने सुना ही नहीं था. उन्होंने जाने कहां-कहां से प्रमाण जुटा कर आरचर साहब के सामने रखा और कहा कि अफ्रीका के असभ्य क्षेत्रों में भी जहां यूरोपियन लोगों का अत्याचार अपनी चरम सीमा पर है, वहां के मूल निवासियों को यदि जेल में पत्थर तोड़ने के लिए कहा जाता है, तो उन्हें गोगल्स अवश्य दिये जाते हैं. फिर अंग्रेजों का तो दावा है कि उन्होंने भारत को बहुत सभ्य बना दिया है.

  • जेल में अंग्रेज अफसरों ने बनाई बिनोदानंद झा की हत्या की प्लानिंग
  • बिनोदानंद झा ने चुटकियों में अंग्रेजों की प्लानिंग पर फेर दिया पानी


अंग्रेज अधिकारी आरचरण इस मांग पर झल्ला उठा. और विनोदानंद झा को दुमका जेल से स्थानांतरित करके देवघर जेल भेज देने का निर्णय लिया. अब लगभग तय था कि बिनोदानंद झा की रास्ते में हत्या होनी है. लेकिन जिन पुलिसकर्मियों की सुरक्षा में बिनोदानंद झा को देवघर भेजने का जिम्मा दिया गया था उन्हें अपनी वाक्यपटुता से झा ने अपनी तरफ कर लिया था. ऐसा मौका आया जब अंग्रेज अफसर ने पिस्तौल निकालकर उन्हें मारना चाहा तो बिनोदानंद झा को लेकर जा रहे पुलिसकर्मियों ने अंग्रेज अफसर की यह कहते हुए एक नहीं चलनी दी कि बिनोदानंद झा हमारी सुरक्षा में हैं. अंग्रेस अफसर बडबड़ाता हुआ वहां से निकल गया. तो कुछ ऐसे ही थे बिहार को पूर्व मुख्यमंत्री एवं स्वतंत्रता सेनानी बिनोदानंद झा. जिन्होंने एक लंबे समय तक सलाखों को अपना साथी बनाया और सलाखों के पीछे से क्रांति की शुरुआत कैसे की जाती है बिनोदानंद झा ने बताया.