Hockey World Cup 2018 : पाकिस्तान को हरा जब भारत पहली बार बना था विश्व चैम्पियन
1975 का हॉकी विश्व कप हर मामले में भारत के लिये खास था. यह पहली बार था जब भारत लगातार फाइनल मैच खेल रहा था. 1973 में सिल्वर जीतने के बाद भारत लगातार दूसरी बार 1975 में फाइनल तक पहुंचा था.
नई दिल्ली:
27 नवंबर से भारत के ओडिशा में शुरू हो रहे हॉकी विश्व कप को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं. कलिंगा स्टेडियम में 27 नवंबर को होने वाले पुरुष हॉकी विश्वकप के उद्धघाटन मैच की सभी टिकटें बिक चुकी हैं. एशियाई खेलों के सेमीफाइनल में हारकर टीम इंडिया के खेमे में निराशा थी, लेकिन टीम के खेमे में अब मुस्कान लौट आई है और खिलाड़ी एकजुट होकर वर्ल्ड अभियान की तैयारी कर रहे हैं. ऐसे में खिलाड़ियों को जरूरत है कि वो इतिहास से सबक लें और प्रेरित होकर नई प्रेरणा के साथ दूसरी बार भारत के लिए विश्व कप चैंपियनशिप अपने नाम करे.
आइये एक नजर उस वक्त पर डालते हैं जब भारत पहली बार विश्व चैंपियन बना था.
1975 का हॉकी विश्व कप हर मामले में भारत के लिये खास था. यह पहली बार था जब भारत लगातार फाइनल मैच खेल रहा था. 1973 में सिल्वर जीतने के बाद भारत लगातार दूसरी बार 1975 में फाइनल तक पहुंचा था.
क्वालालंपुर (मलेशिया) में हुए इस फाइनल मैच में भारतीय टीम अपने चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान के साथ भिड़ा, जहां भारत ने पाकिस्तान को 2-1 से हराकर पहली बार विश्व चैंपियन का खिताब अपने नाम किया. भारत के लिए हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार सिंह और पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ असलम शेर खान ने इस सपने को साकार करने में अहम भूमिका निभाई.
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यह असलम शेर खान ही थे जिन्होंने इस टूर्नामेंट के सेमीफाइनल में भारत के लिए मलेशिया के खिलाफ बराबरी दिलाने वाला अहम गोल दागा था. वहीं अशोक कुमार ने भारत के लिए पाकिस्तान के खिलाफ वर्ल्ड कप के फाइनल मैच में गोल कर भारत को जीत दिलाई थी.
गौरतलब है कि अशोक कुमार के इस गोल पर पाकिस्तान के खिलाड़ियों ने काफी हायतौबा मचाई थी. दरअसल अशोक कुमार ने इतनी तेजी से गेंद को फ्लिक कर गोल में डाला था कि तब भारतीय मूल के मलेशियाई अंपायर जी.विजयानाथन तक को ही यह ठीक से पता नहीं चल पाया कि गेंद आखिर गोल में कैसे गई. लेकिन आखिरकार जब विजयनाथन ने गोल दे दिया तो पाकिस्तान ने उन पर पक्षपात का आरोप मढ़ दिया.
भारत फाइनल में छोड़ चुका था उम्मीद
फाइनल मैच की शुरूआत में पाकिस्तान ने जाहिद के गोल से शुरुआती बढ़त ले ली थी जिसे भारतीय टीम काफी देर तक बराबर नहीं कर पाई थी, एक वक्त को तो ऐसा लगा शायद भारतीय कप्तान अजित पाल सिंह एकबारगी इस खिताब को जीतने की उम्मीद छोड़ चुके हैं.
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ऐसे वक्त पर टीम में हाफ लाइन पर खड़े खिलाड़ी अशोक कुमार, गोविंदा और सुरजीत सिंह ने कप्तान वरींदर सिंह से बात की और उन्हें भरोसा दिलाया, अभी कुछ नहीं बिगड़ा है और हम अभी भी जीत सकते हैं. सुरजीत ने अपनी बात को सही साबित करते हुए 25वें मिनट में भारत के लिए गोल दाग कर मैच को एक-एक की बराबरी पर ले आए.
जिसके बाद भारत ने अशोक कुमार के यादगार गोल से खिताब अपने नाम किया.
मलेशियाई दर्शक थे भारत के साथ
भारत के लिए क्वालालंपुर घर से बाहर घर जैसा था. यहां बसे भारतीय मूल के लोगों ने इंडियन टीम का जमकर समर्थन किया. भारत के कोच बोधी को एक शख्स रोज अलग-अलग रंग की पट्टियां देकर जाता और टीम के खिलाड़ी इसे अपनी जेब में रख कर मैच खेलते. भारत इस पूरे वर्ल्ड कप में केवल एक मैच अर्जेंटीना के खिलाफ हारा, वह भी बेवजह प्रयोग करने के कारण.
भारतीय टीम
अजित पाल सिंह (कप्तान), लेसली फर्नांडीज , अशोक दीवान, माइकल किंडो, सुरजीत सिंह, असलम शेर खान, वीरेंद सिंह, ओंकार सिंह, मोहिंदर सिंह, वी. जे फिलिप्स, बी.हरचरण सिंह, शिवाजी पवार, अशोक कुमार सिंह, बी. पी. गोविंदा, बी. पी. कालिया।
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टॉप गोल स्कोरर
टाइज क्रूज (हॉलैंड): 7 गोल,। मंसूर सीनियर(पाकिस्तान) : 7 गोल। एस. ओतलोवस्की (पोलैंड ): 7 गोल। सी. पाओलोची (अर्जेंटीना): 6 गोल। जिमी इरवाइन (ऑस्ट्रेलिया): 5 गोल। एस. शिविक (इंग्लैंड)।
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