जगन्नाथ मंदिर कॉरिडोर का क्यों हो रहा विरोध, जानें PIL को खारिज कर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने दो जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया और दो याचिकाकर्ताओं पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने आज यानि शुक्रवार को श्री जगन्नाथ मंदिर में निर्माण और उत्खनन कार्य को रोकने वाली याचिका को खारिज कर दिया. यह मंदिर ओडिशा के पुरी में स्थित है. अदालत ने सरकार द्वारा पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर में अवैध निर्माण और उत्खनन का आरोप लगाने वाली याचिकाओं को अदालत का समय बर्बाद करने वाली और प्रचार या व्यक्तिगत हितों के लिए जनहित याचिका दायर करने वाला बताया. न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने दो जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया और दो याचिकाकर्ताओं पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.
पीठ ने अपने आदेश में कहा, "हाल के दिनों में, जनहित याचिकाओं में तेजी से वृद्धि हुई है. ऐसी कई याचिकाएं या तो प्रचार हित याचिका या व्यक्तिगत हित याचिका हैं. हम इस तरह की जनहित याचिका दायर करने की प्रथा की निंदा करते हैं क्योंकि यह न्यायिक समय की बर्बादी है और इसे समाप्त करने की आवश्यकता है. ताकि विकास कार्य ठप न हो."
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने 2021 में जगन्नाथ मंदिर गलियारा परियोजना की आधारशिला रखी थी, जिसमें मंदिर की 75 मीटर की परिधि को भक्तों को आकर्षित करने के लिए एक विरासत गलियारे में बदलने पर कार्य होना है. 'श्रीमंदिर परिक्रमा परियोजना' को एक विस्तृत सीढ़ीदार हरे भरे परिदृश्य और पैदल चलने वालों के लिए एक मार्ग डिज़ाइन किया गया है. जगन्नाथ मंदिर को 1975 में पुरातात्विक धरोहर घोषित किया जा चुका है. पुरातात्विक स्मारक और अवशेष संरक्षण अधिनियम के मुताबिक भी धरोहर के सौ मीटर के दायरे में कोई निर्माण नहीं किया जा सकता. राज्य सरकार कैसे खुदाई और निर्माण कर रही है?
शीर्ष अदालत ने जगन्नाथ मंदिर कॉरिडोर परियोजना कार्य पर रोक लगाने की मांग वाली याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया और इसे सार्वजनिक सुविधाएं प्रदान करने की आवश्यक करार दिया. जगन्नाथ मंदिर कॉरिडोर परियोजना में होने वाले निर्माण भक्तों को साधन और सुविधाएं प्रदान करने के लिए हो रहा हैं.
शीर्ष अदालत उड़ीसा उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें राज्य सरकार को ओडिशा के पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर के आसपास खुदाई कार्य करने से रोकने से इनकार कर दिया था. कल, पीठ ने याचिकाकर्ताओं और राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं की दलीलें सुनीं और आज के लिए आदेश सुरक्षित रख लिया था.
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पावानी ने तर्क दिया था कि प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष (एएमएएसआर) अधिनियम 1958 के अनुसार, राज्य सरकार को किसी भी एक संरक्षित साइट पर काम करने के लिए सक्षम प्राधिकारी से अनिवार्य रूप से एनओसी लेना चाहिए.
उन्होंने कहा कि राज्य ने निर्माण कार्यों के लिए राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण से एनओसी लिया था. हालांकि, एनओसी देने के लिए अधिनियम के तहत सक्षम प्राधिकारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक या आयुक्त हैं.
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि एक स्पष्ट प्रतिबंध है कि निषिद्ध क्षेत्र में कोई निर्माण नहीं हो सकता है. उसने आगे तर्क दिया कि एक विनियमित क्षेत्र के निर्माण के लिए अनुमति नहीं ली गई थी. एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता विनय नवारे ने तर्क दिया था कि मंदिर सदियों पुराना है और पुरातत्व विभाग के अधिकारी की रिपोर्ट में कहा गया है कि निर्माण निषिद्ध क्षेत्र में किया गया है.
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि मंदिर और उसकी दीवार में दरारें पाई गई हैं और राज्य सरकार अनधिकृत निर्माण कार्य कर रही है जो महाप्रभु श्री जगन्नाथ के प्राचीन मंदिर की संरचना के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है.
हालांकि, ओडिशा के महाधिवक्ता अशोक कुमार पारिजा ने दलीलों का विरोध किया और कहा कि एएमएएसआर अधिनियम के तहत, प्राधिकरण एनएमए है, और सक्षम प्राधिकारी को निदेशक संस्कृति, ओडिशा राज्य के रूप में अधिसूचित किया गया है. उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार तीर्थयात्रियों को सुविधाएं प्रदान करने के लिए गतिविधियां चला रही है और इसके लिए एनएमए से अनुमति है.
याचिकाओं में उड़ीसा उच्च न्यायालय की खंडपीठ के आदेश और श्री जगन्नाथ मंदिर में ओडिशा सरकार द्वारा कथित अवैध उत्खनन और निर्माण कार्य को चुनौती दी गई थी. शीर्ष अदालत में दायर अपीलों में आरोप लगाया गया है कि मंदिर की दीवार के पास के क्षेत्र की खुदाई से मंदिर की संरचनात्मक सुरक्षा को गंभीर खतरा है. इसने मंदिर के पास निर्माण कार्य के संचालन पर रोक लगाने की मांग की.
उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के साथ-साथ राज्य सरकार की एजेंसियों को क्षेत्र का संयुक्त निरीक्षण करने और एक रिपोर्ट जमा करने को कहा था.
इसने आगे कहा था कि सरकार ने निर्माण कार्य करने के लिए कोई अनुमति नहीं ली थी. हालाँकि, राज्य ने तर्क दिया कि उसने निर्माण के लिए सभी आवश्यक अनुमति प्राप्त कर ली थी. उच्च न्यायालय ने एएसआई की रिपोर्ट को संज्ञान में लेते हुए राज्य सरकार को 20 जून तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था और सुनवाई की अगली तारीख 22 जून तय की थी.
अधिवक्ता गौतम दास के माध्यम से दायर एक अपील में कहा गया है कि प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम की धारा 19 के अनुसार, कोई भी व्यक्ति 100 मीटर के दायरे में संरक्षित क्षेत्र के भीतर किसी भी इमारत का निर्माण नहीं कर सकता है और मंदिर को 1975 में संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था. इसलिए इस तरह का निर्माण मेघनाद पचेरी नामक संरचना में हो रहा है जो मंदिर का एक अभिन्न अंग है.
इसने कहा कि राज्य सरकार भारी मशीनरी का उपयोग करके मंदिर की कुछ संरचनाओं का निर्माण करने की कोशिश कर रही है और मेघनाद पचेरी के पश्चिमी हिस्से से सटे जमीनी स्तर से पहले ही 30 फीट तक खोद चुकी है और कहा कि निर्माण के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण नींव पर दबाव डाल रहे हैं.
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