जनसंख्या नियंत्रण किन राज्यों में है लागू, जानें इस पर सुप्रीम कोर्ट की राय?
जनसंख्या नियंत्रण (Population control) की नीति पर लोगों की राय अलग-अलग है. कुछ लोग दो बच्चों की नीति को अच्छा मानते हैं तो कुछ इसे महिलाओं के अधिकारों का हनन और मुसलमानों के साथ कथित रूप से भेदभाव मानते हैं.
highlights
- देश के चार राज्यों में लागू है जनसंख्या कानून
- उत्तर प्रदेश में राज्य विधि आयोग ने किया ड्राफ्ट तैयार
- एक बच्चे वालों के विशेष प्रोत्साहन देने की तैयारी
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश में राज्य विधि आयोग की ओर से दो बच्चों की नीति लागू करने के लिए जनसंख्या नियंत्रण का जो मसौदा विधेयक तैयार किया जा रहा है, उसे लेकर देश में बहस शुरू हो गई है. अगले साल प्रदेश में होने वाले चुनाव को देखते हुए इस नीति को लेकर काफी बहस छिड़ चुकी है. सरकार इस नीति को जल्द लागू करने पर विचार कर रही है. इस नीति पर सभी की राय अलग-अलग है. कुछ लोग इस नीति को अनावश्यक, महिलाओं के अधिकारों का हनन और मुसलमानों के साथ कथित रूप से भेदभाव मानते हैं.
क्या है इस मसौदे में
इस मसौदे के लागू होने के बाद दो से अधिक बच्चे पैदा करने पर सरकारी नौकरियों में आवेदन और प्रमोशन का मौका नहीं मिलेगा. इसके अलावा ड्राफ्ट में 77 सरकारी योजनाओं व अनुदान से भी वंचित रखने का प्रावधान है. उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 19 जुलाई तक सुझाव आमंत्रित किए गए थे. इसमें उन लोगों को भी प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव है, जिनके पहले से दो से अधिक बच्चे हैं. इसके साथ ही दो से कम बच्चे वालों को कर में छूट जैसे प्रोत्साहन का भी सुझाव दिया गया है.
एक बच्चे वालों को मिलेगा फायदा
राज्य विधि आयोग ने जो ड्राफ्ट तैयार किया है उसमें एक बच्चे वाले सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रस्तावित प्रोत्साहनों में आवास योजनाओं में लाभ, वेतन वृद्धि, पदोन्नति को शामिल किया गया हैं. इसके साथ ही गैर-सरकारी कर्मचारियों के लिए पानी, आवास और गृह ऋण के करों में छूट की बात कही गई है. यदि किसी एकल बच्चे के माता-पिता पुरुष नसबंदी का विकल्प चुनते हैं, तो बच्चे को 20 साल तक मुफ्त इलाज, शिक्षा, बीमा शिक्षण संस्था और सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता देने की सिफारिश है.
किन राज्यों में पहले से लागू है दो बच्चों की नीति
मध्य प्रदेश : मध्य प्रदेश साल 2001 से ही दो बच्चों की नीति लागू है. मध्य प्रदेश में 26 जनवरी, 2001 को या उसके बाद दो से अधिक बच्चे होने पर वह शख्स किसी भी सरकारी सेवा हेतु अयोग्य माना जाएगा. सिविल सेवा (सेवाओं की सामान्य स्थिति) के साथ ही यह नियम उच्चतर न्यायिक सेवाओं पर भी लागू होता है. राज्य में साल 2005 तक स्थानीय निकाय चुनावों में भी इस नियम को लागू किया गया था, लेकिन इस पर आपत्ति होने का बाद इसे बंद कर दिया गया.
राजस्थान : राजस्थान में पंचायती राज अधिनियम, 1994 में इसे लागू किया गया था. राजस्थान में किसी भी सरकारी नौकरी में दो से अधिक बच्चे वालों को नियुक्ति का पात्र नहीं माना जाता है. इसके साथ ही दो से अधिक बच्चे वाले शख्स को ग्राम पंचायत या वार्ड सदस्य के रूप में चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य घोषित किया जाएगा. हालांकि बाद में विकलांग बच्चों के मामले में दो बच्चों की नीति में ढील दे दी गई.
गुजरात : गुजरात में 2005 में स्थानीय प्राधिकरण अधिनियम में संशोधन किया गया था. इस बदलाव के बाद दो से अधिक बच्चे वाले उम्मीदवार को पंचायत, नगर पालिकाओं और नगर निगम के निकायों का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया गया है.
महाराष्ट्र : महाराष्ट्र में सिविल सेवा (छोटे परिवार की घोषणा) निगम, 2005 के अनुसार दो से अधिक बच्चों वाले शख्स को राज्य सरकार के किसी भी पद हेतु अयोग्य घोषित किया गया है. इसके साथ ही कुछ और प्रतिबंध भी लगाए गए हैं. महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति अधिनियम स्थानीय निगम चुनाव (ग्राम पंचायत से लेकर नगर निगम तक) लड़ने के लिए दो से अधिक बच्चों वाले शख्स को अयोग्य घोषित किया जाएगा.
क्या इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की राय
इस मामले पर अभी तक कोई राष्ट्रीय नीति नहीं है. मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं डाली गई हैं जिसमें कोर्ट से मांग की गई है कि वह केंद्र सरकार को दो-बच्चों की नीति लागू करने का आदेश दे. हालांकि 1976 में किए गए संविधान के 42वें संशोधन में जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने का अधिकार सरकार को दिया गया था. केंद्र या राज्य सरकार, दोनों इस पर कानून बना सकते हैं.
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