कभी राजस्थान में था एकक्षत्र राज, लेकिन पिछले 4 चुनाव में मैजिक नंबर भी नहीं छू पाई कांग्रेस, आखिर क्या है वजह
राजस्थान में कांग्रेस का सूरज हमेशा चमकता रहा. आजादी के बाद हुए 15 चुनावों में से कांग्रेस ने 11 चुनावों में जीत दर्ज की, लेकिन चार चुनाव ऐसे भी हुए जिसमें बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई. फिर भी कांग्रेस ने निर्दलीय और दूसरे दलों को लेकर सरकार बना ली.
नई दिल्ली:
राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति हमेशा से चमकती रही है. आजादी के बाद से हुए 15 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 11 चुनावों में जीत का परचम लहराया है. राज्य में कांग्रेस का दबदबा ऐसा था कि जनता ने एक बार दो बार या तीन बार नहीं बल्कि 11 चुनावों में कांग्रेस को राज्य चलाने का भरपुर मौका दिया. सिर्फ 4 चुनावों में पार्टी ने बहुमत नहीं पाया, लेकिन 1980 के चुनाव में बीजेपी की एंट्री ने राजस्थान की राजनीति को पूरी तरह से बदल कर रख दी. पिछले 9 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने चार बार अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाब रही है. तीन बार सबसे अधिक वोट हासिल करने में सफल रही है. लेकिन बीजेपी के दबदबा की वजह से सरकार बहुमत का आंकड़ा तक नहीं पहुंच सकी. 25 साल से अभी तक पार्टी ने मैजिक नंबर को नहीं छू पाई है. अब तक हुए इन चुनावों में इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी ने भी ऐतिहासिक जीत दर्ज कर सरकार बनाई. जबकि कांग्रेस ने 15 चुनावों में 6 बार 1952, 1957, 1972,1980, 1985, 1998 चुनाव में बहुमत हासिल किया. अशोक गहलोत के नेतृत्व में 1998 में कांग्रेस ने पहली बार 150 सीटों पर जोरदार जीत दर्ज की थी. पहली बार अशोक गहलोत इसी साल राज्य के मुख्यमंत्री बने थे. वहीं, 1962, 1967, 2008 और 2018 में कांग्रेस ने किसी दल या निर्दलीय के सहारे सरकार बनाई. इसमें भी अशोक गहलोत का जादू जमकर चला था.
वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 100 सीटों के आंकड़े भी नहीं छू पाई थी. पार्टी सिर्फ 96 सीटें जीत सकी, लेकिन अशोक गहलोत की सियासी समझ और समीकरण के दम बहुजन समाज पार्टी के छह विधायकों और निर्दलीय एमएलए के सहारे दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और राज्य में कांग्रेस की 9वीं बार सरकार बनाने में कामयाब रहे. 2018 में भी कांग्रेस मैजिक नंबर से 1 सीट पीछे रह गई थी. पार्टी के खाते में सिर्फ 100 सीटें ही प्राप्त हुई थी. उस समय भी गहलोत का जादू जमकर चला था. गहलोत ने निर्दलीय को अपने पाले में मिलाकर सरकार बनाने में सफल हो गए थे. इतना ही गहलोत ने अपने राजनीतिक समझ से बसपा के 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर लिया था. जिन बसपा विधायकों को कांग्रेस में शामिल किया गया था उन्हें इस बार भी टिकट दिया गया है.
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2013 में बीजेपी ने जीती 163 सीटें
अब बात बीजेपी की 1993 में बीजेपी ने 96 सीटें जीती थी. स्पष्ट बहुमत से पार्टी दूर ही थी. फिर भी पार्टी ने निर्दलीय विधायकों के सहारे सरकार बनाने में कामयाब हो गई थी. 1998 में बीजेपी केवल 33 सीटों पर ही सिमट गई, लेकिन अगले चुनाव 2003 में पार्टी ने बंपर जीत से वापसी की थी. पार्टी को 120 सीटें प्राप्त हुई थी. पार्टी ने बहुमत से 19 सीटें ज्यादा जीती थी. ये दौर था वसुंधरा राजे का. राजघराने की बहुरानी वसंधुरा राजे ने बीजेपी की झोली में उम्मीद से ज्यादा सीटें दी थी. पार्टी ने बहुमत से ज्यादा सीटें हासिल की थी. पार्टी ने वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री बनाया था. ये अटल और आडवाणी का भी दौर था. केंद्र में उस वक्त अटल बिहार वाजपेयी प्रधानमंत्री थे और लालकृष्ण आडवाणी उप प्रधानमंत्री थे. वसुंधरा राजे का दोनों नेताओं के साथ अच्छे राजनीतिक संबंध थे. बीजेपी की लहर राजस्थान में जमकर चली थी. लेकिन 2004 में केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व यूपीए सरकार की वापसी के साथ राजस्थान में भी रिवाज बदल गई. 2008 में बीजेपी कांग्रेस से पिछड़ गई. बीजेपी सिर्फ 78 सीटें ही जीत पाई, लेकिन राजे की लहर 2013 में फिर से चल पड़ी. बीजेपी ने जोरदार वापसी करते हुए सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. पार्टी ने इस चुनाव में 163 सीटें हासिल की. वसुंधरा राजे दूसरी बार मुख्यमंत्री बनी. लेकिन 2018 के चुनाव में बीजेपी फिर से कांग्रेस से मात खा गई. इस बार सिर्फ 73 सीटें जीत पाई.
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