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Karnataka Assembly Elections 2023: क्या बीजेपी दक्षिणी कर्नाटक में पलट सकेगी बाजी...

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए 10 मई को वोट डाले जाएंगे. भाजपा कर्नाटक में विगत कई सालों में अपनी जमीन मजबूत करने में कामयाब रही है, लेकिन आगामी विधानसभा चुनावों में भी विजयी होने के लिए उसे राज्य के दक्षिणी क्षेत्र से अपना वोट सुरक्षित करना होगा.

Updated on: 29 Mar 2023, 02:09 PM

highlights

  • समग्र कर्नाटक में बीजेपी अपना आधार बढ़ाने में सफल रही है
  • दक्षिणी कर्नाटक में बीजेपी को अन्य की तुलना में बढ़त नहीं मिली
  • इस क्षेत्र में वोक्कालिगा का वर्चस्व, जो जद (एस) को है समर्पित

नई दिल्ली:

अयोध्या के राम मंदिर (Ram Mandir) आंदोलन के बाद के दौर में भारतीय जनता पार्टी (BJP) समग्र भारत में एक उभरती हुई राजनीतिक शक्ति रही है. मंदिर आंदोलन के बाद से भारत के मध्य, उत्तर और पश्चिमी राज्यों में पार्टी के समर्थन का आधार व्यापक रूप से बढ़ा है. दक्षिण की बात करें तो कर्नाटक (Karnataka) में भाजपा महत्वपूर्ण रूप से बढ़ने में कामयाब रही. दक्षिण भारत में यह एकमात्र राज्य है, जहां बीजेपी ने 2008 और 2018 में सरकार बनाई. हालांकि दोनों ही मौकों पर बीजेपी ने विधानसभा में बहुमत के आंकड़े को पार नहीं किया, लेकिन सदन में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. वास्तव में कर्नाटक में भाजपा का उदय तटीय कर्नाटक से शुरू हुआ और अन्य क्षेत्रों तक फैला. पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी ने दक्षिणी कर्नाटक या मैसूर क्षेत्र को छोड़कर पूरे राज्य में अच्छा प्रदर्शन किया है. सूबे के इस इलाके में भाजपा कमजोर है और मौजूदा विपक्ष गठजोड़ क्रमशः कांग्रेस (Congress) और जद (एस) से पीछे है. हालांकि भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने वोट बैंक को और बढ़ाने में सफलता हासिल की. यह अलग बात है कि 2023 के विधानसभा चुनावों (Karnataka Assembly Elections 2023) में केसरिया पार्टी को राज्य की सत्ता में वापसी के लिए दक्षिणी कर्नाटक में अपने प्रदर्शन में सुधार करना होगा, क्योंकि इस क्षेत्र में 51 विधानसभा सीटें हैं.

कर्नाटक में बीजेपी का क्षेत्रवार प्रदर्शन
कर्नाटक के आधा दर्जन क्षेत्रों क्रमशः बेंगलुरु, मध्य, तटीय, हैदराबाद-कर्नाटक, मुंबई-कर्नाटक और दक्षिणी कर्नाटक में 224 विधानसभा सीट हैं. मुंबई-कर्नाटक और दक्षिणी कर्नाटक राज्य के सबसे बड़े क्षेत्र हैं, जिनमें क्रमशः 50 और 51 विधानसभा सीटें हैं. तटीय कर्नाटक राज्य का सबसे छोटा क्षेत्र है, जिसमें केवल 21 विधानसभा सीटें हैं. बहरहाल यह वह क्षेत्र है जहां भाजपा चुनावों में लगातार अच्छा प्रदर्शन करती रही है. 2018 के पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी को तटीय कर्नाटक में 51 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि उसका राज्यवार कुल वोट शेयर 36 प्रतिशत था. महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा का प्रदर्शन तटीय कर्नाटक में लगातार अच्छा रहा है, जबकि अन्य क्षेत्रों में पार्टी का प्रदर्शन चुनाव दर चुनाव बदलता रहता है. पार्टी इस क्षेत्र की 21 विधानसभा सीटों में से 18 पर लगभग 90 प्रतिशत स्ट्राइक रेट के साथ जीतने में सफल रही. मध्य कर्नाटक में भी भाजपा ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया, जहां उसने 35 में से 24 विधानसभा सीटों पर 43 फीसदी वोट शेयर के साथ जीत हासिल की. मध्य कर्नाटक में स्ट्राइक रेट लगभग 70 प्रतिशत था. मुंबई-कर्नाटक क्षेत्र में भाजपा को 44 प्रतिशत वोट मिले और उसका स्ट्राइक रेट 60 प्रतिशत था, क्योंकि पार्टी ने 50 विधानसभा सीटों में से 30 पर जीत हासिल की. कर्नाटक में भाजपा के प्रदर्शन से एक निष्कर्ष यह भी निकलता है कि पार्टी राज्य के सबसे बड़े क्षेत्रों में से एक 51 सीटों वाले दक्षिणी कर्नाटक में 18 फीसदी वोटों के साथ सिर्फ 9 सीटें जीतने में सफल रही. गौरतलब है कि 2013 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने दक्षिणी कर्नाटक में केवल 8 प्रतिशत वोटों के साथ सिर्फ दो सीटें जीती थीं.

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वोक्कालिगा का गढ़ है दक्षिणी कर्नाटक
सवाल यह उठता है कि दक्षिणी कर्नाटक में भाजपा का प्रदर्शन अन्य क्षेत्रों के संबंध में क्यों और कैसे निराशाजनक है? और क्या पार्टी 2023 के विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र में अपनी सीटों की संख्या में उल्लेखनीय सुधार कर पाएगी? दूसरे सवाल का जवाब 13 मई 2023 को मतगणना के बाद पता चलेगा. हालांकि हम पहले प्रश्न को देख सकते हैं. लिंगायत और वोक्कालिगा कर्नाटक में आर्थिक और राजनीतिक रूप से दो प्रमुख समुदाय हैं. राज्य की जनसंख्या में लिंगायतों की हिस्सेदारी सबसे अधिक है और उसके बाद वोक्कालिगा का स्थान है. पुराना मैसूर या दक्षिणी कर्नाटक वोक्कालिगों का आधार है. यह ज्यादातर किसान वर्ग हैं, जिसका अन्य क्षेत्रों की तुलना में दक्षिणी कर्नाटक क्षेत्र में अधिक आबादी घनत्व है. भारत के पूर्व प्रधान मंत्री और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री जनता दल (सेक्युलर) के नेता एचडी देवेगौड़ा इसी समुदाय और इसी क्षेत्र से हैं. उनके बाद में उनके पुत्र एचडी कुमारस्वामी भी राज्य के मुख्यमंत्री बने. वोक्कालिगा लगातार और पूर्ण समर्ण के साथ जद (एस) का समर्थन करते रहे हैं. चुनावी नतीजे स्पष्ट रूप से बताते हैं कि इस क्षेत्र में जद (एस) का मजबूत आधार है. यह एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां जद (एस) को पिछले कई चुनावों में 30 प्रतिशत या उससे अधिक वोट मिले और उसने बड़ी संख्या में सीटें जीतीं. 2018 के विधानसभा चुनाव में जद (एस) को दक्षिणी कर्नाटक में 38 फीसदी वोट मिले थे, जबकि राज्य में उसका कुल वोट शेयर 18 फीसदी ही था.

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कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी वोक्कालिगा 
इसके अलावा वर्तमान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार इसी क्षेत्र से हैं और वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं. दक्षिणी कर्नाटक में राजनीति का एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने के लिए भाजपा को वोक्कालिगा को बड़े पैमाने पर अपनी ओर आकर्षित करना होगा. कांग्रेस और जद (एस) की तुलना में भाजपा के पास इस क्षेत्र में कोई बड़ा नेता नहीं है. शायद यही एक प्रमुख कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में एक राज्य राजमार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग में परिवर्तित कर उसका उद्घाटन किया, ताकि पार्टी राज्य में ढांचागत विकास का प्रदर्शन कर सके. बहरहाल 13 मई तक दो सवालों का जवाब अनुत्तरित ही रहेगा और वह यह कि क्या पीएम मोदी की इस सौगात से दक्षिणी कर्नाटक में बीजेपी को बढ़ावा मिलेगा और अगर मिलेगा तो किस हद तक!!!