Hartalika Teej 2017: पति की लंबी उम्र के लिए रखें हरितालिका तीज का व्रत, पढ़ें पूजन विधि
व्रत करने वाली स्त्रियों को चाहिए की व्रत के दिन सायंकाल घर को तोरण आदि से सुशोभित कर आंगन में कलश रख कर उस पर शिव और गौरी की प्रतिष्ठा बनाएं।
नई दिल्ली:
पूरे देश में आज पति की लंबी उम्र के लिए पत्नियों ने हरतालिका तीज का व्रत रखा है। इस दिन विवाहित महिलाएं भगवान शिव और पार्वती का पूजन करेंगी।
हरतालिका तीज का व्रत भाद्रपद शुक्ल की तृतीया को करने का विधान है। यह व्रत द्वितीया और तृतीया तिथि के बीच न होकर अगर चतुर्थी के बीच हो तो अत्यंत शुभकारी माना जाता है, क्योंकि द्वितीया तिथि पितरों की तिथि और चतुर्थी तिथि पुत्र की तिथि मानी गई। इस व्रत को करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
उत्तर भारत में सिर्फ शादीशुदा महिलाएं ही नहीं बल्कि कुंवारी लड़कियां भी यह व्रत रखती हैं। मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने महादेव को पति के रूप में पाने के लिए शादी से पहले यह व्रत किया था। इसलिए हर स्त्री के लिए यह लाभकारी होता है।
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पूजन का खास महत्व
इस व्रत का खास महत्व होता है। आज पूरे दिन व्रतधारी को कुछ भी खाना या पीना नहीं चाहिए। विधि-विधान से पूजन करने से बाद मंदिर में जाकर पूजा करें। व्रत के अगले दिन शिव परिवार की कच्ची प्रतिमाओं का विसर्जन करने के बाद ही व्रत संपन्न होता है।
ये है मान्यता
इस व्रत को लेकर मान्यता है कि मां पार्वती ने सालों तक जंगल में घोर तपस्या की थी। बिना जल और आहार के तप करने के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।
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पूजन की सामग्री
गीली मिट्टी या बालू रेत। बेलपत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल, आंकड़े का फूल, मंजरी, जनैव, वस्त्र और सभी प्रकार के फल एंव फूल पत्ते। पार्वती मां के लिए मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, बाजार में उपलब्ध सुहाग की सामग्री। श्रीफल, कलश, अबीर, चन्दन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम, दीपक, घी, दही, शक्कर, दूध, शहद पंचामृत के लिए।
ऐसे करें पूजा
व्रत करने वाली स्त्रियों को चाहिए की व्रत के दिन सायंकाल घर को तोरण आदि से सुशोभित कर आंगन में कलश रख कर उस पर शिव और गौरी की प्रतिष्ठा बनाएं। उनका विधि-विधान से पूजन करें। मां गौरी का ध्यान कर इस मंत्र का यथासंभव जप करें- 'देवि देवि उमे गौरी त्राहि माम करुणा निधे, ममापराधा छन्तव्य भुक्ति मुक्ति प्रदा भव।'
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