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Sanatan Dharm: हिंदू धर्म की ये प्रथाएं हैं महिला विरोधी, जानें क्या हैं धार्मिक मान्यताएं

Sanatan Dharm: हिन्दू समाज में महिलाओं को घर के कार्यों में बंधने की प्रथा और पुरुषों की प्राधान्यता की विचारधारा उन्हें सामाजिक समानता से वंचित कर सकती है.

Updated on: 01 Apr 2024, 12:33 PM

नई दिल्ली:

Sanatan Dharm: हिन्दू धर्म में कई प्रथाएं हैं जो समाज में महिलाओं के प्रति अन्याय और विवाद पैदा करती हैं. हिंदू धर्म की प्रथाओं का महत्व बहुत व्यापक है, जो समाज में एकता, सामाजिक संरचना, धार्मिक उत्साह, और आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देते हैं. ये प्रथाएं समाज को संगठित रखने में मदद करती हैं और धार्मिक और सामाजिक मानदंडों को स्थापित करती हैं. हिंदू धर्म में पुण्य कार्यों का महत्व है, जैसे कि धर्मशाला बनाना, अनाथ आश्रम का सहयोग करना, और अन्नदान करना. ये कार्य सामाजिक न्याय को संवारने और धार्मिक उत्साह को बढ़ाने में मदद करते हैं. इस धर्म में गुरु शिष्य परंपरा का महत्व है, जिसमें गुरु के शिक्षा का पालन करने की प्रथा होती है. गुरु शिष्य संबंध साधक को आध्यात्मिक मार्गदर्शन और आत्मविकास में मदद करता है. इन प्रथाओं का महत्व समाज को धार्मिक और सामाजिक आदर्शों को बढ़ावा देना है, लोगों को आत्मनिर्भरता, समर्पण, और सामाजिक सेवा की भावना विकसित करने के लिए ये प्रथाएं बनायी गयी थी लेकिन कुछ ऐसी प्रथाएं भी हैं जो आज के समय में महिला विरोधी बन चुकी हैं.  

हिंदू धर्म की महिला विरोधी प्रथाएं 

दहेज प्रथा: दहेज प्रथा एक ऐसी प्रथा है जिसमें विवाह के समय लड़की के परिवार से धन या आय प्रदान की जाती है. यह प्रथा महिलाओं को एक प्रकार की समाजिक दाहिन्यता का अनुभव कराती है और उन्हें आत्मनिर्भरता की अपेक्षा करती है.

सती प्रथा: यह प्राचीन प्रथा महिलाओं को अपने पति की मृत्यु के बाद उसके प्यासे में जलने के लिए मजबूर करती थी. इस प्रथा को अब तोड़ दिया गया है, लेकिन कुछ समाजों में अब भी इसकी परंपरा बची है.

स्त्री-धर्म: हिन्दू धर्म में, स्त्री-धर्म का परिपेक्ष्य महिलाओं को घर के कार्यों में बंधने का होता है, जिसमें उन्हें पति और परिवार की सेवा करना होता है. इससे महिलाओं को समाज में समानता और स्वतंत्रता की कमी महसूस होती है.

महिलाओं की अनुपस्थिति प्रथा: कुछ पुराने समयों में, किसी भी धार्मिक कार्यक्रम या समाजिक समारोह में महिलाओं की अनुपस्थिति को नकारात्मक रूप से देखा जाता था. इससे महिलाओं को सामाजिक समूह में समानता और सम्मान की कमी महसूस होती है.

पुरुषों की प्राधान्यता: हिन्दू समाज में, पुरुषों को अक्सर महिलाओं से अधिक सम्मान और अधिकार प्राप्त होते हैं. इससे महिलाओं को सामाजिक स्थिति में असमानता का अनुभव होता है.

ये प्रथाएं हिन्दू समाज में महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती हैं और उन्हें अपने पूर्ण पोटेंशियल का अनुभव करने में बाधित कर सकती हैं. 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)