Ganesh Ji Ki Aarti: बुधवार के दिन जरूर पढ़ें गणेश जी की ये आरती, धन-धान्य और खुशियों से भर जाएगा घर
Ganesh Ji Ki Aarti: मान्यता है कि बुधवार के दिन गणेश जी की विधिपूर्वक पूजा करने से जातक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही इस दिन गणपति बप्पा की आरती भी जरूर पढ़नी चाहिए.
नई दिल्ली:
Ganesh Ji Ki Aarti: हिंदू धर्म में सप्ताह के सातों दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है. आज बुधवार का दिन है और बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित है. भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय देवता माना जाता है. इसलिए हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है. मान्यता है कि बुधवार के दिन गणेश जी की विधिपूर्वक पूजा करने से जातक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही गणपति बप्पा खुश होकर जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनकी पूजा के बाद आपको आरती जरूर करनी चाहिए. आइए यहां पढ़िएं गणेश जी की पूरा आरती.
यहां पढ़ें गणेश जी की पूरा आरती
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
इस स्तोत्र का भी करें जाप
प्रणम्य शिरसा देवं गौरी विनायकम् ।
भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये ।।
प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम् ।
तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम् ।।
लंबोदरं पंचम च पष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ।।
नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन् ।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम् ।।
जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते ।
संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ।।
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।)
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