Rath Yatra 2023: किस जंगल से कितनी लकड़ियां काटकर बनाए जाते हैं भगवान जगन्नाथ रथयात्रा के रथ, जानें सारी बातें
Jagannath Puri Rath Yatra 2023: उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की यात्रा हर साल धूमधाम से मनायी जाती है. इस यात्रा से जुड़ी तमाम दिलचस्प बातों के बारे में हमारी इस स्टोरी में पढ़िये.
नई दिल्ली:
Jagannath Rath Yatra 2023: विश्वभर में प्रसिद्ध उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा हर साल पंचांग के अनुसार आषाढ़ महीने में निकाली जाती है. इस भव्य रथयात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन से ही शुरू हो जाती है. साल 2023 में भगवान जगन्नाथ की यात्रा कब निकाली जाएगी, शुभ मुहूर्त क्या है और कैसे हुई इस यात्रा की शुरुआत ये सब बताएंगे. इस भव्य रथयात्रा के लिए 3 रथ तैयार किए जाते हैं. पहला बड़ा रथ भगवान जगन्नाथ का होता है और बाकि दो उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के रथ होते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस रथ का निर्माण कैसे होता है. रथ बनाने के लिए कौन सी लकड़ी इस्तेमाल की जाती है. जंगल में पेड़ से लकड़ी काटने के लिए पहले कैसे पूजा होती है और फिर सोने की कुल्हाड़ी से ही पेड़ क्यों काटे जाते हैं. ऐसी ही तमाम बातें हम इस स्टोरी में आपको विस्तार से बता रहे हैं.
कब है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा, जानिए शुभ मुहूर्त
पंचांग के हिसाब से इस साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि की शुरुआत 19 जून सुबह 11 बजकर 25 मिनट पर हो रही है और इस तिथि का समापन 20 जून को दोपहर 01 बजकर 07 मिनट पर होगा. ऐसे में उदया तिथि को देखते हुए जगन्नाथ जी की रथयात्रा 20 जून 2023, मंगलवार के दिन निकाली जाएगी और फिर आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तीनों भगवान को उनके स्थान पर वापस लाया जाएगा
किन पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल होता है
भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए पुरी के पास के जंगलों से नीम और हांसी पेड़ों की लकड़ियां लेकर आयी जाती हैं. लेकिन अगर आप ये सोच रहे हैं कि जंगल जाना और पेड़ काटकर लकड़ी लाना ही तो है बस तो आप रुकिये क्योंकि पेड़ काटने से पहले उसकी पूजा होती है. हर साल रथ के लिए लकड़ी लाने के भी नियम हैं और सिर्फ उन नियमों का पालन कर जो लकड़ी लायी जाती है उसी से भव्य रथों का निर्माण होता है.
जगन्नाथ मंदिर समिति के लोग वन विभाग के अधिकारियों को सूचना भेजते हैं और इसके बाद सोने की कुल्हाड़ी को पहले भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा से स्पर्श कराके वो जंगल जाते हैं.
मंदिर के पुजारी जंगल जाकर उन पेड़ों की पूजा करते हैं. पूजा के बाद उन पेड़ों पर सोने की कुल्हाड़ी से कट लगाया जाता है. लकड़ी में सोने की कुल्हाड़ी से कट लगाने का काम महाराणा द्वारा किया जाता है. तीनों रथों के निर्माण में लिए लगभग 884 पेड़ों के 12-12 फीट के तने भी लगते हैं. इससे रथ के खंभे बनाए जाते हैं.
जानें तीनों रथों की खासियत
भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा में जो तीनों रथ होते हैं उनकी बनावट से लेकर उनका रंग आकार, और नाम भी अलग-अलग होते हैं. तो आइए जानते हैं कि किस भगवान के रथ का क्या नाम है.
भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष या गरुड़ध्वज होता है, जो 45.6 फीट ऊंचा होता है. इस रथ में 16 पहिए होते हैं और रंग पीला या फिर लाल होता है. भगवान बलभद्र के रथ को तालध्वज कहते हैं, जो लाल या हरा रंग का होता है और इसकी ऊंचाई 45 फीट 4 इंच है जिसमें 14 पहिए होते हैं. इसके साथ ही देवी सुभद्रा के रथ को पद्म रथ या दर्पदलन कहा जाता है, जो काले या नीले रंग का होता है और इसमें 12 पहिए होते हैं और 42 फीट 3 इंच ऊंचाई होता है.
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