पीएम मोदी का सपना रह जाएगा अधूरा, 2050 तक 'यंग' नहीं रहेगा हमारा इंडिया
अध्ययन के मुताबिक, 2050 तक भारत की जनसंख्या 170 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है, जिसके तहत अगले 32 वर्षो में बच्चों की संख्या (15 साल से कम उम्र के बच्चे) 20 फीसदी कम हो जाएगी, जबकि 65 साल से अधिक उम्र के लोगों की संख्या तीन गुना तक बढ़ जाएगी।
नई दिल्ली:
'यंग इंडिया', 'युवा भारत', 'नया भारत' जैसे तमाम नामों के साथ राजनीतिक दल हिंदुस्तान को बदलने की कल्पना कर रहे हैं, लेकिन अमेरिका के जनसंख्या संदर्भ ब्यूरो (पॉपुलेशन रेफरेंस ब्यूरो) के एक अध्ययन के मुताबिक, यह सब योजनाएं धरी की धरी रह जाएंगी, क्योंकि देश में वर्ष 2050 तक 65 साल से अधिक उम्र के लोगों की संख्या तीन गुना तक बढ़ जाएगी और हमारे देश की गिनती बुजुर्ग देशों में की जाने लगेगी।
अध्ययन के मुताबिक, 2050 तक भारत की जनसंख्या 170 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है, जिसके तहत अगले 32 वर्षो में बच्चों की संख्या (15 साल से कम उम्र के बच्चे) 20 फीसदी कम हो जाएगी, जबकि 65 साल से अधिक उम्र के लोगों की संख्या तीन गुना तक बढ़ जाएगी।
वैश्विक स्तर पर जनसांख्यिकीय डाटा उपलब्ध कराने वाली पीआरबी के मुताबिक, 2018 में देश की बच्चों की वृद्धि दर 28 फीसदी है, जो 2050 में घटकर 19 फीसदी हो जाएगी। इसके मुकाबले 65 वर्ष से अधिक लोगों की वृद्धि दर का अनुपात छह से बढ़कर 13 फीसदी हो जाएगा। पीआरबी ने निर्भरता का यह डाटा विभिन्न देशों और क्षेत्रों में इकट्ठा किया है।
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पॉपुलेशन रेफरेंस ब्यूरो के अध्ययन में अगले 32 वर्षो के दौरान देश में युवाओं से ज्यादा बुजुर्गो की संख्या में वृद्धि के सवाल पर पंचशील पार्क स्थित मैक्स मल्टी स्पेशयलिटी सेंटर के सामान्य चिकित्सक डॉ. जी.एस. ग्रेवाल ने आईएएनएस से कहा, 'जी हां, यह सही है, क्योंकि यह प्रजनन में कमी और जीवन जीने की उच्च प्रत्याशा का युग है।'
हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने लोकसभा में बताया था कि बुजुर्गों की आबादी 2050 तक बढ़कर 34 करोड़ पहुंचने की संभावना है। यह संख्या संयुक्त राष्ट्र के 31.68 करोड़ के अनुमान से थोड़ी अधिक है, जो यह स्पष्ट संकेत देती है कि भारत अनुमान से अधिक तेजी से बूढ़ा हो रहा है। स्वास्थ्य शिक्षा में उन्नति ने इस रुख में बदलाव लाने में एक अहम भूमिका निभाई है।
केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री के संसद में दिए बयान को सही बताते हुए डॉ. जी.एस. ग्रेवाल ने कहा, 'यह बात सही है, क्योंकि बुजुर्ग आबादी की संख्या में वृद्धि की दर समग्र आबादी की संख्या में वृद्धि से कही अधिक है।'
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यह पूछने पर कि क्या बुजुर्गों की तुलना में युवाओं की संख्या में कमी क्या युवाओं में खराब स्वास्थ्य को दर्शाती है, जिसके जवाब में डॉ. जी.एस. ग्रेवाल ने कहा, 'नहीं, यह अंतर निर्भर जनसंख्या से संबंधित है, उदाहरण के लिए 15 वर्ष से मध्यम आयु। देश में अब 16-65 की आयु को कामकाजी आबादी माना जाता है।'
सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा 2017 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या में पिछले दस वर्षो में 35.5 फीसदी की वृद्धि हुई है। 2001 में देश में बुजुर्गो की संख्या सात करोड़ 60 लाख थी जो 2011 बढ़कर 10 करोड़ 30 लाख पहुंच गई थी।
आंकड़ों के मुताबिक, केरल, गोवा, तमिलनाडु, पंजाब और हिमाचल प्रदेश देश के सबसे अधिक बुजुर्ग लोगों की संख्या वाले राज्य हैं। केरल में कुल आबादी का 12.6 फीसदी, गोवा में 11.2 फीसदी, तमिलनाडु में 10.4, पंजाब में 10.3 फीसदी और हिमाचल प्रदेश में कुल आबादी का 10.2 फीसदी हिस्सा बुजुर्ग है।
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बुजुर्गों और युवाओं के बीच बढ़ते इस अंतर को कैसे कम किया जा सकता है, के सवाल पर डॉ. ग्रेवाल ने कहा, 'देश में प्रतिस्थापन की संवृति गायब है, इसलिए दो माता-पिता को समान संख्या में बच्चों द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा रहा है, इसलिए यह अंतर कुछ समय के लिए यूं ही जारी रहेगा।'
अगर बात करें सबसे कम बुजुर्ग संख्या वाले राज्यों की, तो अरुणाचल प्रदेश में 4.6 फीसदी, मेघालय में 4.7, नागालैंड में 5.2 फीसदी, मिजोरम में 6.3 फीसदी और सिक्किम में 6.7 फीसदी बुजुर्ग रह रहे हैं।
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