वैज्ञानिकों ने किया दावा, बस करें एक क्लिक, मिल जाएंगे मौत से जुड़े सारे अपडेट
इंसानों की मौत की तारीख एक क्लिक में पता चलेगा. आज हम आपको इस खबर में बताएंगे कि कैसे इंसान अपनी मौत की तारीख जान सकते हैं.
नई दिल्ली:
अगर हम आपसे कहें कि अब आपको मौत की तारीख पता चल जाएगी तो क्या आप यकीन करेंगे? अब तक हम यही सुनते आए हैं कि मृत्यु की तारीख किसी को नहीं पता. कब किसकी मौत हो जाए ये कोई नहीं जानता. ऐसा हम अब तक कहते और सुनते आ रहे थे लेकिन अब ये कहावत सिर्फ कहावत बनकर रह जाएगी. क्योंकि अब मौत की तारीख भी पता चल जाएगी कि आप किस तारीख को मरने वाले हैं. दरअसल, डेनमार्क के कुछ वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अब मौत की तारीख का पता चल जाएगा. वैज्ञानिक करोड़ों लोगों का डेटा इकट्ठा कर रहे हैं ताकि एआई मॉडल उस डेटा के आधार पर यह अनुमान लगा सके कि कोई व्यक्ति कितने समय तक जीवित रहेगा.
बस ऐसे पता चल जाएगी मौत की तारीख
इस रिसर्च को लेकर सबसे बड़ी बात यह है कि अब तक हुए शोध में एआई ने 78 प्रतिशत सफलता हासिल की है. यानी यूं समझ लीजिए कि अब मजह 22 प्रतिशत काम बचा हुआ है. हाल ही में 'नेचर कम्प्यूटेशनल साइंस' में एक नया शोध प्रकाशित हुआ है. इस रिसर्च में बताया गया कि डेनमार्क के वैज्ञानिक Life2Wake नाम का एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. इस प्रोजेक्ट के तहत वैज्ञानिक यह जानना चाहते हैं कि क्या वे स्वास्थ्य और सामाजिक घटनाओं की भविष्यवाणी कर सकते हैं या नहीं. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट के तहत वे बहुत कुछ पता लगा सकते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह प्रोजेक्ट भी चैटजीपीटी की तरह ही एल्गोरिदम और डेटा पर काम करता है.
6 मिलियन लोगों के डेटा हुआ यूज
जर्मन समाचार वेबसाइट डीडब्ल्यू में छपी खबर के मुताबिक, लाइफ2वेक कार्यक्रम के लिए डेनिश अनुक्रम ने डेनमार्क में लगभग 6 मिलियन लोगों के डेटा का उपयोग किया और इसके आधार पर उन्होंने कुछ लोगों की मृत्यु का अनुक्रम बनाने की कोशिश की. सबसे बड़ी बात ये है कि 78 प्रतिशत इसमें सफलता मिली. इसके अलावा एआई ने यह भी बताया कि क्या भविष्य में कोई व्यक्ति अपना शहर छोड़कर नई जगह बसेगा या नहीं.
जल्द ही मिलने वाली है सफलता
वैज्ञानिकों ने बताया कि इस शोध में 35 से 56 साल के लोगों का डेटा लिया गया. डेनमार्क टेक्निकल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर जून लेहमैन इस शोध का हिस्सा हैं. जून लेहमैन के मुताबिक, 35 से 65 साल की उम्र के लोगों में मौतें कम होती हैं. इस उम्र के लोगों के डेटा के आधार पर एल्गोरिदम को सत्यापित करना आसान होता है. लेहमैन का कहना है कि फिलहाल यह सॉफ्टवेयर पूरी तरह से प्राइवेट है. यानी यह इंटरनेट पर आपको नहीं मिलने वाला है.
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