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Hate Crime पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- धर्मनिरपेक्ष भारत में नहीं कोई जगह इसकी

यह मामला 62 वर्षीय काज़ीम अहमद शेरवानी से संबंधित है, जो जुलाई 2021 में एक कथित घृणा अपराध का शिकार हुआ था.

Updated on: 06 Feb 2023, 08:26 PM

highlights

  • हेट क्राइम से जुड़ा यह मामला 62 वर्षीय काज़ीम अहमद शेरवानी से संबंधित है
  • अदालत ने राज्य से दो सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दायर करने के लिए कहा

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हेट क्राइम के एक मामले में बेहद तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर हेट क्राइम के लिए कोई जगह नहीं है. शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश के नोएडा में हुए एक हेट क्राइम के मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'नफरत भरे भाषणों यानी हेट स्पीच को जड़ से खत्म करना होगा और जब राज्य के पास इच्छाशक्ति हो तो इसका खात्मा सुनिश्चित करना होगा.' न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी. 62 वर्षीय पीड़ित ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि 4 जुलाई को नोएडा के सेक्टर 37 में अलीगढ़ जाने वाली बस का इंतजार कर रहे थे, जब उन्हें पुरुषों के एक समूह ने लिफ्ट की पेशकश की. उन्होंने दावा किया कि पुरुषों ने उनकी मुस्लिम पहचान के कारण उन्हें गाली दी, परेशान किया और प्रताड़ित किया. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज करने से इनकार कर दिया और जब वह पास के एक पुलिस स्टेशन में गए तो उन्हें मामले को आगे बढ़ाने से भी मना किया.

हेट क्राइम से जुड़ा यह मामला 62 वर्षीय काज़ीम अहमद शेरवानी से संबंधित है, जो जुलाई 2021 में एक कथित घृणा अपराध का शिकार हुआ था. उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा प्रताड़ित करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी. इसके साथ ही उन्होंने अपराधियों के खिलाफ समुचित एक्शन लेने से इनकार करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की. अदालत ने कहा, 'समाधान तभी पाया जा सकता है जब आप समस्या को पहचान जाते हैं.' इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि हेट स्पीच को लेकर आम सहमति बढ़ रही है. इसके अलावा न्यायालय ने यह सवाल भी किया कि क्या घृणा अपराधों को स्वीकार किया जाएगा या उन्हें कालीन के नीचे दबा दिया जाए.

इंसान के अल्संख्यक या बहुसंख्यक होने से इतर मनुष्य के पास कुछ अंतर्निहित अधिकार हैं. आप एक परिवार में पैदा होकर पले-बढ़े हो सकते हैं, लेकिन हम एक राष्ट्र के रूप में सबसे अलग हैं. आपको इसे गंभीरता से लेना होगा. पुलिस निष्क्रियता के आरोपों पर अदालत ने कहा, 'ऐसे अधिकारी कर्तव्य में लापरवाही करके बच नहीं सकते. हमें एक उदाहरण स्थापित करना चाहिए, तभी हम विकसित देशों के बराबर हो सकते हैं.' अंतिम आदेश में अदालत ने राज्य को दो सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दायर करने के लिए कहा, जिसमें कथित रूप से अपराधियों के खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी भी शामिल है.