तीन तलाक : शाहबानो को मात्र 79 रुपये का गुजारा भत्ता राजीव गांधी सरकार को नागवार गुजरा था
इंदौर की शाहबानो ने 1980 में मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में कोर्ट में आवाज उठाई थी. कोर्ट ने उन्हें भरण-पोषण के लिए पति से 79 रुपए दिलवाए थे.
highlights
- 79 रुपये भरण-पोषण न देने के लिए पति ने की अपील
- हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक शाहबानों को मिली जीत
नई दिल्ली:
शाहबानो से शुरू हुआ संघर्ष का सफर मुकाम तक पहुंच गया है. तीन तलाक बिल अब संसद के दोनों सदनों से पास हो गया है. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही कानून अस्तित्व में आ जाएगा. इसके साथ ही मुस्लिम महिलाओं को इस मध्ययुगीन कुप्रथा से आजादी मिल जाएगी. शाहबानों के समय कोर्ट से 79 रुपये का गुजारा भत्ता भी राजीव गांधी सरकार को नागवार गुजरा था. वोट बैंक के चक्कर में राजीव गांधी सरकार ने तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही पलट दिया था. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को तत्काल तीन तलाक से आजादी दिला दी है.
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इंदौर की शाहबानो ने 1980 में मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में कोर्ट में आवाज उठाई थी. कोर्ट ने उन्हें भरण-पोषण के लिए पति से 79 रुपए दिलवाए थे. यह पहला मौका था जब किसी मुस्लिम महिला ने भरण-पोषण के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था. कट्टरवाजी मुस्लिम समुदाय को यह नागवार गुजरा. मामला तूल पकड़ने लगा तो शाहबानो इतनी आहत हुईं कि भरण-पोषण की राशि छोड़ दी थी.
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शाहबानो के पति एमए खान ने 79 रुपये के गुजारा भत्ते देने के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. हाई कोर्ट ने जिला अदालत के फैसले को कायम रखा और गुजारे भत्ते की रकम बढ़ा दी थी. मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा. 1984 में सुप्रीम कोर्ट ने भी शाहबानो के पक्ष में फैसला दिया था. तब सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मुस्लिम समुदाय ने पूरे देश में विरोध किया था. उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए इस मामले में विधेयक लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था.
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