कैसे नोटबंदी के बाद गरीबों के मसीहा बनकर उभरे पीएम मोदी और जीत ली यूपी की बाजी
क तरफ जहां सरकार जोर-शोर से नोटबंदी के वर्षगांठ को मनाने की तैयारी में जुटी हुई है वहीं विपक्ष ने इसे हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाया है।
नई दिल्ली:
आज ही के दिन 8 नवंबर 2016 को मोदी सरकार ने देश में नोटबंदी की थी। एक तरफ जहां सरकार जोर-शोर से नोटबंदी के वर्षगांठ को मनाने की तैयारी में जुटी हुई है वहीं विपक्ष ने इसे हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाया है।
पूर्व प्रधानमंत्री और अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने इसे संगठित और कानून लूट बताया है। जबकि वित्त मंत्री अरुण जेटली इसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए परिवर्तन काल बताया है।
नोटबंदी सफल था या असफल ये पूरी तरह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे किस नजरिए से देखते हैं। कुछ लोग इस बात से असहमत होंगे कि नोटबंदी के बाद राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव और नगर निकाय के चुनावों में बीजेपी ने इसका जबरदस्त फायदा उठाया।
नोटबंदी के फैसले के बाद सबसे ज्यादा आश्चर्य लोगों को तब हुआ जब उत्तर प्रदेश चुनाव में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत हासिल कर ली जबकि पुराने नोटों को बदलने के लिए लोगों को कुछ ही महीनों की मोहलत दी गई थी।
जब यूपी चुनाव हुए ये उसी वक्त साफ हो गया था कि नोटबंदी राजनैतिक काले धन के उजागर होने के अपने शुरुआती लक्ष्य को पूरा नहीं कर सकता।
इसके साथ ही ये भी साफ हो गया था कि नोटबंदी को लेकर सरकार ने जो सोच रखी थी कि कम से कम 4-5 लाख करोड़ रुपये सिस्टम में वापस नहीं लौटेगा वो भी सफल नहीं हो पाया।
नोटबंदी को लेकर लगभग सभी अर्थशास्त्रियों और संस्थानों ने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि इसका भारत के जीडीपी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अगर संकेत इतने साफ थे तो फिर बीजेपी नोटबंदी के बाद यूपी चुनाव इतने बड़े अंतर से कैसे जीत गई।
यह सच है कि भारत में चुनाव आर्थिक मुद्दों पर नहीं लड़े जाते लेकिन कोई इस बात को नजरअंदाज भी नहीं कर सकता कि नोटबंदी ने देश के हरेक आदमी के जीवन को प्रभावित किया था। यहां यह भी जान लेना चाहिए कि देश के आम वोटरों को जीडीपी की समझ नहीं है। जनता ने नोटबंदी पर वर्ल्ड बैंक के रिपोर्ट को पढ़कर चुनाव में अपनी राय नहीं बनाई थी।
इस मामले में यूपी का केस थोड़ा अलग है। सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य यूपी में नोटबंदी के असर से लोग बुरी तरह प्रभावित हुए। गरीबी के मामले में यूपी सिर्फ बिहार और मणिपुर से ही आगे हैं। यूपी में प्रति व्यक्ति सालाना आय जहां सिर्फ 63 हजार रुपये हैं वहीं गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में प्रति व्यक्ति सालाना आय लगभग तीन गुना 1 लाख 80 हजार रुपये है। यूपी के गांवों की बड़ी आबादी देश के बड़े और छोटे शहरों में असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। इनमें से ज्यादातर अकुशल मजदूर हैं।
नोटबंदी का तत्काल प्रभाव छोटे और मझोले उद्योग-धंधों पर पड़ा। बड़ी संख्या में ऐसी कंपनियों ने या तो मजदूरों की छंटनी कर दी या फिर अपने काम को सीमित कर लिया। इसका असर ये हुआ कि इन फैक्ट्रियों में काम करने वाले ये अकुशल मजदूर बेरोजगार हो गए और अपने-अपने गांव लौट आए। आज भी ये फैक्ट्रियां अपनी पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर पा रही हैं।
यूपी में चुनाव के दौरान ऐसे हजारों बेरोजगार मजदूर अपने गांव में थे लेकिन फिर भी इनमें बीजेपी और नरेंद्र मोदी को लेकर कोई असंतोष क्यों नहीं दिखा? इसी तरह किसानों को भी नोटबंदी से भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा लेकिन फिर भी यूपी के चुनाव परिणाम पर इसका कोई विपरीत असर नहीं पड़ा।
इनसब का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है। वो नोटबंदी को लेकर लोगों की सोच को बदलने में सफल रहे थे। सबसे पहले उन्होंने कहा था कि नोटबंदी से सिस्टम में पारदर्शिता आएगी और इससे डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा मिलेगा। उसी समय वो देश के आम लोगों को ये संदेश देने में भी कामयाब रहे कि नोटबंदी का फैसला अमीरों से गरीबों के हक की लड़ाई है।
पीएम मोदी लोगों को ये बताने में सफल रहे कि नोटबंदी में उनका साथ देना काले धन पर चोट के अलावा ऐसे लोगों के खिलाफ ऐतिहासिक लड़ाई है जिन्होंने अवैध तरीके से पैसे बनाए हैं।
देश के आमलोगों में भरोसा जगा कि एक ऐसा प्रधानमंत्री है जिसमें ऐसे लोगों से लड़ने की क्षमता है। देश के मिडिल क्लास को लगा कि कम से कम पीएम मोदी तो कालेधन को खत्म करने के लिए कुछ कर रहे हैं।
यही कारण है जिसने उत्तर प्रदेश में बीजेपी को ऐतिहासिक जीत दिलाई। ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत थी। नोटबंदी के बाद मोदी देश में गरीबों के हक की लड़ाई लड़ने वाले नेता के तौर पर उभरे। नोटबंदी के फैसले से बीजेपी ने एक ऐसे असंतुष्ट वर्ग को अपने साथ मिला लिया जो चुनाव से पहले उसका साथ छोड़ देते थे।
ऐसा ही संदेश पीएम मोदी हिमाचल और गुजरात के वोटरों को भी दे रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि इन दोनों राज्यों में लोग किसे और कैसे वोट करते हैं। अगर इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी को भारी बहुमत मिलता है तो नरेंद्र मोदी की गरीबों के मसीहा के तौर पर इमेज और मजबूत होगी।
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