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लोकसभा चुनाव

क्या राजस्थान में बीजेपी ने वसुंधरा राजे के साथ कर दिया 'खेला', जानिए अब कौन हो सकता है मुख्यमंत्री का चेहरा?

क्या वसुंधरा अब बीजेपी की ज़रूरत की लिस्ट से बाहर हो चुकी हैं? सवाल उठना लाज़िमी भी है क्योंकि वसुंधरा राजे न सिर्फ़ दो बार की मुख्यमंत्री रही हैं, बल्कि प्रदेश में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा भी हैं.

Updated on: 18 Aug 2023, 02:58 PM

नई दिल्ली:

राजस्थान चुनाव की तैयारियों में जुटी पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे को बीजेपी ने बड़ा झटका दिया है. गुरुवार को बीजेपी ने चुनाव प्रबंधन समिति और संकल्प पत्र समिति के गठन का ऐलान किया. इन दोनों ही समितियों से वसुंधरा राजे का नाम ग़ायब है. बीजेपी का ये फ़ैसला चौंकाने वाला है. क्योंकि वसुंधरा राजे का कद राजस्थान में बड़ा है. शेखावटी क्षेत्र में इनका एक बड़ा प्रभाव भी देखा गया है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सीकर दौरे पर पूर्व मुख्यमंत्री राजे भी मंच पर मौजूद थीं. गुर्जर समुदाय के बीच अच्छी पैठ रखने वाली राजे का चेहरा पार्टी और पब्लिक में भी बेहद लोकप्रिय है, लेकिन इस सब के बावजूद चुनाव प्रबंधन समिति में वसुंधरा राजे का नाम नहीं है.  केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को स्टेट मेनिफेस्टो कमेटी का संयोजक बनाया गया है, जबकि प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व सांसद नारायण पंचारिया को चुनाव प्रबंधन समिति की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है. जब वसुंधरा राजे की भूमिका पर बीजेपी नेताओं से सवाल पूछा गया तो गोल-मोल जवाब मिला।

वसुंधरा के किसी समर्थक को भी इन कमेटियों में जगह नहीं मिली है. इसके उलट घनश्याम तिवाड़ी और डॉक्टर किरोड़ी लाल मीणा जैसे नेताओं को शामिल किया गया है, जो वसुंधरा राजे के घोर विरोधी माने जाते हैं. ये वही नेता हैं जो एक समय वसुंधरा राजे की वजह से बीजेपी छोड़कर चले गए थे. हालांकि, अभी कैंपेन कमेटी की घोषणा बाकी है, लेकिन इन दो कमेटियों से वसुंधरा का पत्ता कटने के बाद राजस्थान के राजनीतिक गलियारे में सुगबुगाहट तेज हो गई है. सवाल उठने लगे हैं कि क्या राजस्थान की सियासत में वसुंधरा राजे के साथ खेल हो गया? क्या बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद की सबसे बड़ी दावेदार वसुंधरा को साइडलाइन कर दिया?

वसुंधरा या कोई और...?
क्या वसुंधरा अब बीजेपी की ज़रूरत की लिस्ट से बाहर हो चुकी हैं? सवाल उठना लाज़िमी भी है क्योंकि वसुंधरा राजे न सिर्फ़ दो बार की मुख्यमंत्री रही हैं, बल्कि प्रदेश में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा भी हैं. अपने समर्थकों के जरिए वसुंधरा इस बार भी मुख्यमंत्री पद के चेहरे के लिए अपनी दावेदारी ठोक रही हैं. लेकिन, इस बार शीर्ष नेतृत्व वसुंधरा या किसी और चेहरे के बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव मैदान में उतरने का मन बना चुकी है. कई नेताओं ने इसके संकेत भी दिए हैं कि पार्टी इस बार बिना किसी चेहरे के उतरेगी. 

आखिर कौन बनेगा मुख्यमंत्री का चेहरा?
मीडिया में भी मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर वसुंधरा से अलग नाम तैर रहे हैं.. कभी गजेंद्र सिंह शेखावत, कभी सतीश पूनिया तो कभी अश्विनी वैष्णव. मतलब साफ़ है, वसुंधरा के लिए संकेत अच्छे नहीं हैं. शायद, वसुंधरा राजे को भी इसका अहसास हो चुका है, इसलिए अक्सर वो पार्टी की बैठकों से नदारद रहती हैं. गुरुवार को भी राजस्थान में भाजपा का विशेष सदस्यता अभियान चल रहा था, लेकिन कोर कमेटी की मेंबर होने के बावजूद वसुंधरा नहीं पहुंचीं.

क्या बीजेपी के लिए आसान होगा वसुंधरा को किनारे करना?
पार्टी के अंदर ही वसुंधरा राजे के ख़िलाफ़ एक बड़ी लॉबी बन गई है. हाल में अमित शाह के दौरे में इसकी झलक भी दिखी थी. उदयपुर में मंच पर अमित शाह के साथ वसुंधरा राजे भी थीं. नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने वसुंधरा की अनदेखी कर भाषण के लिए अमित शाह का नाम लिया. हालांकि, अमित शाह ने वसुंधरा राजे की ओर इशारा कर भाषण के लिए कहा. अब सवाल है कि क्या बीजेपी के लिए वसुंधरा राजे को साइडलाइन करना आसान होगा? जवाब है- बिल्कुल नहीं. वसुंधरा राजे का एक अपना व्यक्तित्व है जो सियासत को किसी करवट बदलने का माद्दा रखता है. 

क्या राजस्थान में तीसरे मोर्चे के गठन की संभावना है?
अगर राजस्थान की सियासत में वसुंधरा के दुश्मन हैं तो दोस्त भी. वसुंधरा के क़रीबी और सात बार के विधायक रहे देवीसिंह भाटी ने तो वसुंधरा को चेहरा न बनाए जाने की स्थिति में तीसरा मोर्चा बनाने तक की बात कह दी है. हालांकि, वसुंधरा राजे अभी वेट और वॉच वाली स्थिति में हैं. इलेक्शन कैंपेन कमेटी की घोषणा अभी बाक़ी है. माना जाता है कि इलेक्शन कैंपेन कमेटी का संयोजक ही चुनाव में पार्टी का चेहरा होता है. ऐसे में इस पद के लिए वसुंधरा प्रेशर पॉलिटिक्स से नहीं चूकेंगी.

क्या बीजेपी फिर से गलती करने को तैयार है?
लेकिन, अगर ऐसा नहीं हुआ तो इतना तो तय है कि वसुंधरा को साइडलाइन करना बीजेपी के लिए फ़ायदे का सौदा नहीं होगा. हालांकि, बीजेपी वसुंधरा के चेहरे को आगे कर 2018 वाली ग़लती भी नहीं दोहराना चाहेगी. तब राजस्थान में एक नारा गूंज रहा था- मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी ख़ैर नहीं. फिर भी बीजेपी ने वसुंधरा को चेहरा बनाया और नतीजा ये हुआ कि सत्ता हाथ से चली गई. अब देखना होगा कि बीजेपी महारानी को कैसे साधती है.

रिपोर्ट- सरोज कुमार