अलविदा मनोहर पर्रिकर: 'उनके जैसा ज़िंदादिल कैंसर का कोई दूसरा मरीज नहीं देखा'
मनोहर पर्रिकर ने कैंसर जैसी गम्भीर बीमारी का सामना भी पूरी ज़िंदादिली, हौसले के साथ किया. अस्पताल के बिस्तर पर भी कभी उनके चेहरे पर कोई शिकन नजर नहीं आती थी.
नई दिल्ली:
मनोहर पर्रिकर ने कैंसर जैसी गम्भीर बीमारी का सामना भी पूरी ज़िंदादिली, हौसले के साथ किया. अस्पताल के बिस्तर पर भी कभी उनके चेहरे पर कोई शिकन नजर नहीं आती थी. इलाज के दौरान वो काफी वक़्त तक एम्स में भर्ती रहे. यहां उनके इलाज करने वाले कई डॉक्टरों से न्यूज़ नेशन ने बात की. डॉक्टर अतुल शर्मा ने न्यूज़ नेशन संवाददाता अरविंद सिंह को बताया कि उन्होंने अपने कैरियर में मनोहर पर्रिकर जैसा इतना ज़िंदादिल ,कैंसर का कोई दूसरा मरीज नहीं देखा. हॉस्पिटल में रहते हुए भी वो हमेशा अधूरे पड़े सरकारी काम, मसलन ब्रिज का उदघाटन जैसे योजनाओं के बारे में सोचते रहते थे, उनके बारे में डॉक्टरों से बात करते रहते. हमेशा उनके दिमाग में नई सरकारी योजनाओं के प्लान चलते रहते.वो मुख्यमंत्री थे, लेकिन उनके व्यवहार में कभी कोई वीआइपी वाली ठसक नजर नहीं आई. एकदम सादगी से वो एक आम इंसान की तरह पेश आते थे.डॉक्टर अतुल शर्मा कई बार उन्हे देखने गोवा भी गए .वहाँ के स्थानीय लोगों के साथ बातचीत का उनका अनुभव भी वैसा ही रहा.गोवा के लोग उनसे बताते थे कि कैसे साईकल , स्कूटर से वो ऑफिस पहुँच जाया करते थे
डॉक्टरों को भी हंसाते रहते थे
मनोहर पर्रिकर अस्पताल में बिस्तर पर थे, अग्नाशय का कैंसर था, वो भी एडवांस स्टेज का, ऐसी सूरत में मरीज को आम तौर पर जीवन की सम्भावनाये क्षीण ही नजर आती है, पर मनोहर पर्रिकर न जाने किस मिट्टी के बने थे. वो बातों ही बातों में डॉक्टरो से हंसी मजाक करना नहीं चूकते. ऐसे ही वाकये को याद कर डॉक्टर अतुल शर्मा बताते है कि अपने पैर के लगे चोट के निशान को दिखाते हुए उन्होंने कहा था कि ये सब बचपन की बदमाशियों के निशान है, बचपन में अपनी शरारत के किस्से भी वो डॉक्टरो से बांटने से गुरेज नहीं करते थे
दर्द में भी सब ठीक है
एम्स में ही सेवारत डॉक्टर सुषमा भटनागर बताती है कि उनका कैंसर एडवांस स्टेज पर था, जाहिर तौर पर उन्हें दर्द भी काफ़ी रहता था.पर उनके अंदर गज़ब की सहन शक्ति ही थी. कितना भी दर्द हो, दवाई लेने के बाद डॉक्टरों के पूछने पर उनका एक ही जवाब रहता था कि सब ठीक है. डॉक्टर सुषमा भटनागर बताती है कि एक बार उनके पास फोन आया.फोन करने वाले का सवाल था कि जैसे इस स्टेज में मनोहर पर्रिकर लोगों से मिल रहे है, काम कर रहे है, क्या ये उनकी सेहत के लिहाज से ठीक है ? सुषमा भटनागर का मानना था कि जब कोई व्यक्ति काम को पैशन बना लेता है, तो कई बार वो इलाज के लिए थैरेपी बन जाता है और इसी इच्छाशक्ति का इस्तेमाल करते हुए मनोहर पर्रिकर कैंसर को अब तक मात दे रहे थे .एम्स के दूसरे डॉक्टर समीर रस्तोगी का भी कहना है कि जिस ज़िंदादिली का परिचय मनोहर पर्रिकर ने दिया, कि वो वाकई कैंसर के दूसरे मरीजों के लिए मिसाल है.
और ये सच भी है कि 17 मार्च को दुनिया से विदा होने से पहले मनोहर पर्रिकर की कई तस्वीरें हमेशा के लिये दिलों में बस गई है.वो नाक में नली होने के बावजूद पुल का उदघाटन करते मनोहर पर्रिकर ,तो कभी विधानसभा में बजट पेश करते पर्रिकर. जोश और सकारत्मकता से भरी उनकी तस्वीरे हमेशा मिसाल पेश करती रहेगी
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