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जानें कैसे सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ लाया जाता है 'महाभियोग'

न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया या सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ संसद के किसी भी सदन में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है।

Updated on: 20 Apr 2018, 09:32 AM

नई दिल्ली:

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाने के लिए कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां शुक्रवार को दिल्ली में बैठक करने वाली है।

दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी जनवरी महीने से ही की जा रही है, जब सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों ने प्रेस कांफ्रेंस कर चीफ जस्टिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे।

जजों के प्रेस कांफ्रेंस के बाद मार्क्सवादी कांग्रेस पार्टी (सीपीएम) ने सबसे पहले चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग लाने की बात उठायी थी।

12 जनवरी को चार न्यायाधीशों ने सुप्रीम कोर्ट के प्रशासन पर सही ढंग से कार्य नहीं करने का आरोप लगाया था। उन्होंने चीफ जस्टिस मिश्रा पर केसों के आवंटन को मनमाने तरीके से करने का आरोप लगाया था।

कैसे लाया जाता है महाभियोग:

भारतीय संविधान के मुताबिक चीफ जस्टिस 65 साल तक अपने पद पर बने रह सकते हैं। न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया या सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ संसद के किसी भी सदन में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है।

चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के लिए लोकसभा में 100 सदस्यों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है या राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है। यह प्रस्ताव किसी भी सदन के द्वारा लाया जा सकता है।

प्रस्ताव पेश होने के बाद यह लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति पर निर्भर करता है कि वह इसे स्वीकार करें या खारिज कर दें।

प्रस्ताव स्वीकार किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट के एक जज, हाई कोर्ट के एक जज और एक कानून के जानकार की तीन सदस्यीय समिति गठित की जाती है जो इस मामले की जांच करते हैं।

अगर यह समिति प्रस्ताव का समर्थन करती है तो सदन में इसकी रिपोर्ट पेश करती है। अगर दोनों सदन इस रिपोर्ट को दो तिहाई बहुमत से पास करती है तो महाभियोग पारित हो जाता है।

दोनों सदनों में पास हुए महाभियोग पर राष्ट्रपति का अंतिम निर्णय होता है। राष्ट्रपति अपने अधिकार से चीफ जस्टिस को हटाने का आदेश दे सकते हैं।

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