Supreme Court: मृत्युदंड का दोषी अपराध के समय नाबालिग होने पर 25 साल बाद रिहा
जस्टिस केएम जोसेफ, अनिरुद्ध बोस और हृषिकेश रॉय की पीठ ने राजस्थान के एक सरकारी स्कूल द्वारा जारी किए गए जन्म प्रमाण पत्र पर भरोसा किया. आरोपी उस स्कूल में कक्षा 3 तक पढ़ा था, जिससे पता चला कि अपराध के समय उसकी उम्र 12 वर्ष ही थी.
highlights
- अधिनियम के तहत किशोर अपराधी को अधिकतम सजा तीन साल
- दोषी सुधार गृह में वह 28 साल से अधिक समय तक कैद में रहा है
- सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने स्कूली जन्म प्रमाणपत्र पर किया भरोसा
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को आदेश दिया कि 25 साल से मौत की सजा (Capital Punishment) पाए एक व्यक्ति को रिहा कर दिया जाए. जांच में पाया गया कि वह 1994 में अपराध के समय नाबालिग (Minor) था. उसने और दो अन्य लोगों ने एक ही परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी थी. मामले में दर्ज प्राथमिकी (FIR) के अनुसार दोषियों ने 29 साल पहले पुणे में एक घर में चोरी करने के लिए घुसकर पांच महिलाओं और दो बच्चों की हत्या कर दी थी. सितंबर 2000 में शीर्ष अदालत ने जिला अदालत और बॉम्बे उच्च न्यायालय (Bombay High Court) की नारायण चेतनराम चौधरी को दोषी ठहराए जाने और मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखा. दोषियों में से एक राजू, सरकारी गवाह बन गया और उसे क्षमा कर दिया गया. तीसरे आरोपी जितेंद्र नैनसिंह की मौत की सजा 2016 में बदल दी गई थी. चौधरी फिलहाल नागपुर सेंट्रल जेल में बंद है.
स्कूल के जन्म प्रमाणमत्र पर किया शीर्ष अदालत ने भरोसा
इस फैसले तक पहुंचने के लिए जस्टिस केएम जोसेफ, अनिरुद्ध बोस और हृषिकेश रॉय की पीठ ने राजस्थान के एक सरकारी स्कूल द्वारा जारी किए गए जन्म प्रमाण पत्र पर भरोसा किया, जहां अपराधी कक्षा 3 तक पढ़ा था. उससे यह निष्कर्ष निकला कि अपराध के समय उसकी उम्र 12 वर्ष थी. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, 'जन्म प्रमाणपत्र के अनुसार अपराध के समय उसकी उम्र 12 साल 6 महीने थी. इस प्रकार वह अपराध किए जाने की तारीख यानी 26 अगस्त 1994) को एक किशोर था. इसके लिए उसे किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 के प्रावधानों के अनुसार दोषी ठहराया गया.'
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2018 में दायर की थी दोषी ने समीक्षा याचिका
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि चूंकि 2015 के अधिनियम के तहत एक किशोर अपराधी के लिए अधिकतम सजा तीन साल है. ऐसे में दोषी को रिहा किया जाना चाहिए. पीठ के लिए 68 पन्नों का फैसले को लिखते हुए न्यायमूर्ति बोस ने कहा, 'उसे तत्काल सुधार गृह से मुक्त किया जाए, जिसमें वह 28 साल से अधिक समय तक कैद में रहा है.' 2018 में चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दायर कर इस आधार पर अपनी समीक्षा याचिका पर सुनवाई की मांग की थी कि वह अपराध के समय किशोर था. जनवरी 2019 में शीर्ष अदालत ने इस मामले को जांच के लिए प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, पुणे को भेजा था.
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चार्जशीट में अलग-अलग उम्र का जिक्र
महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए अधिवक्ता सचिन पाटिल ने तर्क दिया कि दोषी की चार्जशीट उसकी अलग-अलग उम्र दर्शाती है, जो 20-22 साल के आसपास थी. मतदाता सूची के मुताबिक अपराध के समय उसकी उम्र 19 साल थी. हालांकि अदालत ने माना कि जन्म प्रमाण पत्र निर्णायक सबूत प्रदान करता है कि वह अपराध के समय नाबालिग था.
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