एडल्टरी पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने पिता के 33 साल पुराने फैसले को पलटा, पहले भी कर चुके हैं ऐसा
आईपीसी की धारा-497 को निरस्त किए जाने में सबसे अहम बात यह है कि जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ ने अपने पिता वाई वी चंद्रचूड़ के फैसले को निष्प्रभाव करते हुए फैसला दिया.
नई दिल्ली:
व्यभिचार (Adultery) को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इससे संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-497 को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया और कहा कि यह महिलाओं की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाता है और इस प्रावधान ने महिलाओं को 'पतियों की संपत्ति' बना दिया था. आईपीसी की धारा-497 को निरस्त किए जाने में सबसे अहम बात यह है कि जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ ने अपने पिता वाई वी चंद्रचूड़ के फैसले के विरूद्ध फैसला दिया.
33 साल पहले 1985 में उनके पिता जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ ने इस धारा को संवैधानिक रखते हुए फैसला दिया था कि इसमें समाज का हित जरूरी है कि कुछ खास मामलों में व्यभिचारी संबंधों के लिए सजा का प्रावधान जरूर होना चाहिए.
इस मुद्दे पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि धारा 497 महिला के सम्मान को नष्ट करती है और महिलाओं को गरिमा से वंचित करती है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि धारा 497 को असंवैधानिक घोषित किया जाये क्योंकि व्यभिचार स्पष्ट रूप से मनमाना है.
चंद्रचूड़ ने एकमत लेकिन अलग फैसले में कहा कि समाज में यौन व्यवहार को लेकर दो तरह के नियम हैं, एक महिलाओं के लिए और दूसरा पुरूषों के लिए. उन्होंने कहा कि समाज महिलाओं को सदाचार की अभिव्यक्ति के रूप में देखता है, जिससे ऑनर किलिंग जैसी चीजें होती हैं.
बता दें गुरुवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक करार हुए इस दंडात्मक प्रावधान को निरस्त कर दिया. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आर एफ नरिमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस धनन्जय वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इन्दु मल्होत्रा ने एकमत से कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 497 असंवैधानिक है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को स्पष्ट रूप से मनमाना, पुरातनकालीन और समानता के अधिकार तथा महिलाओं के लिए समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन करने वाला बताया.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, 'व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता. यह निजता का मामला है. पति, पत्नी का मालिक नहीं है. महिलाओं के साथ पुरूषों के समान ही व्यवहार किया जाना चाहिए.'
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चीफ जस्टिस ने कहा, 'किसी भी तरह का भेदभाव संविधान के कोप को आमंत्रित करता है. एक महिला को उस तरह से सोचने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जिस तरह से समाज चाहता है कि वह उस तरह से सोचे. जस्टिस आर एफ नरीमन ने फैसला सुनाते हुए कहा, 'महिलाओं को अपनी जागीर नहीं समझा जा सकता है.'
डी वाई चंद्रचूड़ पहले भी पलट चुके हैं अपने पिता का फैसला
इससे पहले भी निजता के अधिकार (राइट टू प्राइवेसी) मामले में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने 1975 में अपने पिता और तत्कालीन जज वाई वी चंद्रचूड़ के दिए फैसले को उलट दिया था जिसमें उन्होंने आम नागरिक के जीवन के अधिकार को खत्म करने संबंधी तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के फैसले के पक्ष में निर्णय दिया था.
1975 में इमरजेंसी के दौरान जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ का फैसला सुप्रीम कोर्ट के 67 साल के इतिहास में एक दाग माना जाता रहा है. जब निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने फैसला सुनाया था तो डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता के फैसले को खारिज कर दिया था.
अपने पिता के फैसले के विपरीत जाते हुए डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि उस दौरान चार जजों की बेंच ने जो फैसला दिया था उसमें खामियां थी. उन्होंने कहा था, 'एडीएम जबलपुर मामले में चारों जजों के फैसले में गंभीर गलती है...इसे खारिज किया जाता है.'
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उन्होंने कहा था, 'निजी स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार को लेकर जस्टिस खन्ना बिलकुल सही थे. संविधान के तहत इसकी आज़ादी है...भारत के लोगों ने मानवीय पक्ष के एक सबसे महत्वपूर्ण अंग को खो दिया था जो जीवन, स्वतंत्रता और अधिकार हैं। इन्हें प्रशासन की दया पर छोड़ दिया गया जिनके सभी अधिकार सरकार के हाथ में होंगे.'
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