बाबरी मस्जिद मामले में आडवाणी, जोशी और उमा भारती के ट्रायल में हो रही देरी पर SC ने जताई चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले की सुनवाई में हो रही देरी पर चिंता जताई है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस मामले में अलग-अलग अदालतों में चल रही सुनवाई एक ही अदालत में की जानी चाहिए।
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले की सुनवाई में हो रही देरी पर चिंता जताई है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस मामले में अलग-अलग अदालतों में चल रही सुनवाई एक ही अदालत में की जानी चाहिए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 21 मई 2010 को बीजेपी नेता लालकृषण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत दूसरे बीजेपी और वीएचपी के नेताओं के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का मामला हटा लिया गया था। जिसके खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले में इन आऱोपी नेताओं के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का मामले को बहाल कर देता है तो लालकृषण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती और दूसरे नेताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इन लोगों की दलील है कि 2010 में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सीबीआई ने 9 महीने की देरी से अपील की थी। देरी के आधार पर इस मामले को खारिज कर दिया जाना चाहिए।
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट अब 22 मार्च को सुनवाई करेगा। लखनऊ के मामले में तो आपराधिक साजिश की धारा हट चुकी है। रायबरेली के मामले में सभी धाराएं बरकरार हैं।
इस याचिका में इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले को भी नामंज़ूर करने की मांग की गई है जिसमें उसने विशेष अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 120B हटा दिया था।
जस्टिस पीसी घोष और आरएस नैरिमन की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सीबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआई से कहा कि रायबरेली और लखनऊ में हो रही अलग-अलग सुनवाई को एक कर देना चाहिये।
बेंच ने इस मसले की सुनवाई को 22 मार्च तक के लिये टाल दिया है।
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सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बदलती है तो इन सभी नेताओं के खिलाफ पुराना मामला फिर से खोला जा सकता है।
सीबीआई के साथ इसी मसले पर हाजी महबूब अहमद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सभी आरोपियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
पिछले साल सितंबर में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि उसकी नीति निर्धारण प्रक्रिया किसी से भी प्रभावित नहीं होती और वरिष्ठ भाजपा नेताओं पर से आपराधिक साजिश रचने के आरोप हटाने की कार्रवाई उसके (एजेंसी के) कहने पर नहीं हुई।
सीबीआई ने एक हलफनामे में कहा था कि सीबीआई की नीति निर्धारण प्रक्रिया पूरी तरह स्वतंत्र है। सभी फैसले मौजूदा कानून के तहत ही सही तथ्यों के आधार पर किए जाते हैं। किसी शख्स, निकाय या संस्था से सीबीआई की नीति निर्धारण प्रक्रिया के प्रभावित होने या अदालतों में मामला लड़ने के उसके तरीके के प्रभावित होने का कोई सवाल नहीं है।
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