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ब्याज दरों में कटौती को लेकर दुविधा में RBI, सरकार ने कहा इससे बेहतर समय नहीं

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से ब्याज दरों में कटौती किए जाने की संभावना न के बराबर है। पिछले साल नोटबंदी के फैसले के बाद आरबीआई के पास करीब 60 अरब डॉलर से अधिक की नकदी मौजूद है।

Updated on: 06 Jun 2017, 09:06 AM

highlights

  • भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से ब्याज दरों में कटौती किए जाने की संभावना न के बराबर है
  • पिछले साल नोटबंदी के फैसले के बाद आरबीआई के पास करीब 60 अरब डॉलर से अधिक की नकदी मौजूद है

New Delhi:

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से ब्याज दरों में कटौती किए जाने की संभावना न के बराबर है। पिछले साल नोटबंदी के फैसले के बाद आरबीआई के पास करीब 60 अरब डॉलर से अधिक की नकदी मौजूद है।

आरबीआई के लिए मौजूदा बैठक दो कारणों से चुनौतीपूर्ण होगी। महंगाई दर के काबू में होने और जीडीपी में आई गिरावट की वजह से उस पर दरों में कटाव के लिए दबाव होगा वहीं नोटबंदी की वजह से बैंकिंग सिस्टम में मौजूद पर्याप्त नकदी उसे ब्याज दरों में कटौती से रोकने का काम करेगी।

हालांकि पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में जीडीपी के कम होकर 6.1 फीसदी होने के बाद ग्रोथ रेट को तेज करने की चुनौती आरबीआई के सामने होगी।

बुधवार को होने जा रही मौद्रिक समीक्षा नीति की बैठक से पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह कहते हुए सरकार की मंशा को साफ कर दिया है कि 'ब्याज दरों में कटौती के लिए यह बिलकुल सही समय है।'

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ब्याज दरों में कटौती की सिफारिश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि इस कटौती के लिए बिल्कुल सही समय है क्योंकि महंगाई नियंत्रण में है और मॉनसून का पूर्वानुमान भी अच्छा है।

अप्रैल में खुदरा महंगाई दर घटकर 2.99 फीसदी रही, जोकि मार्च में 3.89 फीसदी थी। ब्याज दरों को तय करने के दौरान आरबीआई खुदरा महंगाई दर को ध्यान में रखता है।

जेटली ने कहा, 'लंबे समय से महंगाई काबू में है और मानसून अच्छा होने की संभावना है। पेट्रोल और शेल गैस के बीच संतुलन यह बताता है कि तेल की कीमतें अधिक नहीं बढ़ेंगी।'

वित्त मंत्री ने कहा कि विकास और निवेश में बढ़ोतरी की जरूरत है। इन परिस्थितियों में कोई भी वित्त मंत्री चाहेगा कि दरों में कटौती हो। सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती जीडीपी ग्रोथ रेट को तेज करने की है। मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने पर वित्त मंत्री ने जीडीपी रेट में आई गिरावट के लिए नोटबंदी को कारण मानने से इनकार कर दिया था।

जेटली ने कहा था, 'मौजूदा समय में दुनिया के हालात चुनौतीपूर्ण बने हुए हैं। ऐसे में भारत ककी जीडीपी का 7-8 फीसदी के बीच होना कोई चिंता की बात नहीं है।' 

आरबीआई ने अप्रैल की बैठक में रेपो दर में कोई बदलाव नहीं करते हुए इसे 6.25 फीसदी पर रखा था। आरबीआई ने कहा था, 'मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का लक्ष्य मध्यम अवधि में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को चार फीसदी (दो फीसदी ऊपर-नीचे) रखना है, जबकि विकास को भी बढ़ावा देना है।'

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