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RSS को प्रणब ने पढ़ाया राष्ट्रवाद का पाठ, कहा- विविधता हमारी राष्ट्रीय पहचान, नफरत और असहिष्णुता से होती है कमजोर

देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रम में स्वयंसेवकों को राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति का पाठ पढाया।

Updated on: 07 Jun 2018, 11:09 PM

highlights

  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय में देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने संघ को पढ़ाया राष्ट्रवाद का पाठ
  • मुखर्जी ने कहा कि देश की राष्ट्रीय पहचान विविधता का सम्मान करने की रही है, जिस पर होने वाला हमला इसे कमजोर करता है

नई दिल्ली:

देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रम में स्वयंसेवकों को राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति का पाठ पढाया।

बहुप्रतीक्षित भाषण में उन्होंने कहा कि इन तीनों विचार को भारत के संदर्भ में समझने की जरूरत है और मेरी बात इन्हीं मुद्दों पर केंद्रित होगी।

मुखर्जी ने कहा कि प्राचीन समय से ही भारत में लोग आते रहे हैं और विविधता से ही हमारी राष्ट्रीय पहचान बनी है, जिस पर होने वाला कोई भी हमला, हमारी राष्ट्रीय पहचान को कमजोर करता है।

यूरोपीय राष्ट्रवाद से भारतीय राष्ट्रवाद की तुलना करते हुए मुखर्जी ने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद वसुधैव कुटुंबकम पर आधारित है और यही हमारी राष्ट्रीय पहचान है।
उन्होंने कहा, 'हालांकि असहिष्णुता से हमारी राष्ट्रीय पहचान धूमिल होती है।'

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मुखर्जी ने कहा कि आधुनिक भारत का विचार किसी नस्ल और धर्म विशेष के दायरे से नहीं बंधा है। उन्होंने कहा कि आधुनिक भारत का विचार कई भारतीय नेताओं की देन है, जिनकी पहचान किसी नस्ल या धर्म विशेष की मोहताज नहीं रही।

भारत के राष्ट्र राज्य की यात्रा का जिक्र करते हुए मुखर्जी ने कहा कि इसकी जड़ें 6ठी शताब्दी से निकलती हैं।

इतिहास का जिक्र करते हुए मुखर्जी ने कहा, 'भारतीय राज्य के उदभव की जड़ें छठीं शताब्दी से निकलती हैं। 600 सालों तक भारत पर मुस्लिमों का शासन रहा और इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी आई। पहली आजादी की लड़ाई के बाद भारत की कमान महारानी के हाथों में चली गई।'

'लेकिन एक बात को ध्यान में रखा जाना जरूरी है कि कई शासकों के बाद भी 5000 साल पुरानी सभ्यता की निरंतरता बनी रही।'

उन्होंने कहा कि प्रत्येक विजेता और विदेशी कारकों को भारतीय संस्कृति ने अपने में समाहित कर लिया।

मुखर्जी ने कहा कि भारत का राष्ट्रवाद, वसुधैव कुटुंबकम की भावना से निकलता है और इसे किसी धर्म, क्षेत्र या जाति विशेष की चौहद्दी में बांधना, हमारी राष्ट्रीय पहचान को कमजोर करता है।

मुखर्जी ने कहा कि राष्ट्रवाद किसी भाषा, रंग, धर्म, जाति आदि से प्रभावित नहीं होता। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में 'हमारी राष्ट्रीयता को धर्म, क्षेत्र, नफरत और असहिष्णुता के जरिए पारिभाषित करने की कोशिश हमारी पहचान को कमजोर करेगी।'

उन्होंने कहा कि भारत, सहिष्णुता से ताकत ग्रहण करता है और हम बहुलतावाद और विविधता का सम्मान करते हैं।

मुखर्जी ने कहा, 'हम बहुलतावाद का सम्मान करते हैं और विविधता का जश्न मनाते हैं। हमारी राष्ट्रीय पहचान मेल-मिलाप और समत्व की लंबी प्रक्रिया से बनी है। कई संस्कृतियों और मान्यताओं ने हमें विशेष और सहिष्णु बनाया है।'

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