आज़ादी का 72वां साल: जानिए स्वतंत्रता सेनानियों के वो 15 नारे जिसने देश की आजादी में फूंक दी थी जान
15 अगस्त 2018 को भारत को आजाद हुए पूरे 72 साल हो जाएंगे। इस मौके पर हम आपको स्वतंत्रता सेनानियों के ऐसे नारे आपके सामने ला रहे है, जिसे सुनकर आज भी आप देशभक्ति की भावनाओं से भर जाएंगे।
नई दिल्ली:
15 अगस्त 2018 को भारत को आजाद हुए पूरे 72 साल हो जाएंगे। इस मौके पर हम आपको स्वतंत्रता सेनानियों के ऐसे नारे आपके सामने ला रहे है, जिसे सुनकर आज भी आप देशभक्ति की भावनाओं से भर जाएंगे। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नारों की विशेष भूमिका रही थी। जिसे सुनकर देश का हर वासी अपनी मिट्टी के मर मिटने के लिए तत्पर हो गया था। साथ ही इन नारों ने भारतीय क्रांतिकारियों में एक जान फूंक दी थी।
शहीद चन्द्रशेखर 'आजाद' ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। आजाद शहीद राम प्रसाद बिस्मिल और शहीद भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के साथियों में से एक थे। उनका जन्म 23 जुलाई 1906 और मृत्यु 27 फरवरी 1931 को हुई थी।
मोहनदास करमचन्द गांधी भारत और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 और मृत्यु 30 जनवरी 1948 को हुआ था।
भगत सिंह भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। चन्द्रशेखर आजाद और पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया था। शहीद भगत का जन्म 28 सितंबर या 19 अक्टूबर 1907 और मृत्यु 23 मार्च 1931 को हुआ था।
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। मराठा शासित राज्य झांसी की और 1857 की पहली भारती स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थी। उन्होंने सिर्फ़ 23 साल की उम्र में अंग्रेज़ साम्राज्य की सेना से जद्दोजहद की और 18 जून 1858 को रणभूमि में उनकी मौत हुई थी।
तिलक ब्रिटिश राज के दौरान स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक थे। उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा 'स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच' (स्वराज यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ था।
राम प्रसाद 'बिस्मिल' भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें 30 साल की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फांसी दे दी थी। बिस्मिल मैनपुरी षड्यन्त्र और काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे।
जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री थे और स्वतन्त्रता के पहले और बाद की भारतीय राजनीति में केन्द्रीय व्यक्तित्व थे। उन्होंने 'आराम हराम है' का नारा देकर देश के लोगों में कुछ करने का जुनून भर दिया था।
लालबहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। 1965 में अचानक पाकिस्तान ने भारत पर सायं 7.30 बजे हवाई हमला कर दिया। इस दौरान उन्होंने इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और जय जवान-जय किसान का नारा दिया। इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ा और सारा देश एकजुट हो गया। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
लाला लाजपत राय भारत के जैन धर्म के अग्रवंश मे जन्मे एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्हें पंजाब केसरी भी कहा जाता है। इन्होंने पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना भी की थी। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे। सन् 1928 में इन्होंने साइमन कमीशन के विरुद्ध एक प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये और अंतत: 17 नवम्बर सन् 1928 को इनकी महान आत्मा ने पार्थिव देह त्याग दिया।
सुभाष चन्द्र बोस जन्म 23 जनवरी 1897 और मृत्यु 18 अगस्त 1945 को हुआ था। बता दें कि वो नेता जी के नाम से भी जाने जाते हैं, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया 'जय हिन्द का नारा' भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है।
'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा' का नारा भी नेता जी का था जो उस समय बहुत ज्यादा प्रचलन में आया था।
महामना मदन मोहन मालवीय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही इस युग के आदर्श पुरुष भी थे। वे भारत के पहले और अन्तिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। उनका जन्म 25 दिसम्बर 1861 और मृत्यु 1946 को हुई थी।
बंकिमचन्द्र चटर्जी बंगाली के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे। भारत के राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' उनकी ही रचना है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था।
क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फ़ैसला लिया। 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में अखिल भारतीय कांगेस कमेटी के बम्बई सत्र में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नाम दिया गया था। हालांकि गांधी जी को फ़ौरन गिरफ़्तार कर लिया गया था लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फ़ोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन चलाते रहे थे।
चन्द्रशेखर आज़ाद ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारम्भ किया गया आन्दोलन और तेज हो गया, उनसे प्रेरणा लेकर हजारों युवक स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े। आजाद की शहादत के सोलह साल बाद 15 अगस्त सन् 1147 को हिन्दुस्तान की आजादी का उनका सपना पूरा तो हुआ लेकिन वो उसे जीते जी देख न सके। सभी उन्हें पण्डितजी ही कहकर सम्बोधित किया करते थे।
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