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दलितों की नाराजगी नहीं हुई दूर तो 2019 में मोदी के लिए दिल्ली भी हो जाएगी दूर!

2 अप्रैल को एससी-एसटी एक्ट में बदलाव को लेकर दलित समुदायों के भारत बंद आंदोलन से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से लेकर मोदी सरकार तक हिली हुई है।

Updated on: 11 Apr 2018, 08:47 PM

नई दिल्ली:

एक तरफ मोदी सरकार 2019 चुनाव की तैयारी में जुटी हुई है तो वहीं दूसरी तरफ दलितों के भारत बंद आंदोलन के बाद जो परिस्थितियां बनी है उससे पार्टी और केंद्र सरकार की नींद उड़ गई है।

दो अप्रैल को एससी-एसटी एक्ट में बदलाव को लेकर दलित समुदायों के 'भारत बंद' आंदोलन और उसमें हुई हिंसा में 9 लोगों के मारे जाने के बाद मोदी सरकार के खिलाफ दलित समुदाय के साथ ही अब पार्टी के अंदरखाने भी नाराजगी बढ़ने लगी है। इस नाराजगी को जल्द से जल्द दूर करने में अगर बीजेपी सफल नहीं हुई तो निश्चित तौर पर पीएम मोदी के लिए भी 2019 में दिल्ली 'दूर' हो सकती है।

यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पूरे मामले में सीधे दखल देने का फैसला किया है। खबरों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब खुद पार्टी के इन नाराज दलित सांसदों और नेताओं से मिलकर उनकी नाराजगी के कारणों को समझने की कोशिश करेंगे

इस साल कर्नाटक समेत कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं जबकि अगले साल आम चुनाव होने हैं। ऐसे में अगर दलित बीजेपी से नाराज रहे तो अगले साल नरेंद्र मोदी का दोबारा प्रधानमंत्री बनकर लौटना मुश्किल हो सकता है।

बीजेपी के बड़े दलित चेहरों में से एक उदित राज ने भी आज यह मान लिया कि 2 अप्रैल को आंदोलन के बाद से दलितों पर हिंसा बढ़ गई और इसे रोकने की उन्होंने पीएम मोदी से अपील भी की है। उदित राज से पहले बीजेपी की बहराइच से दलित सांसद सावित्री बाई फुले भी एससी-एसटी एक्ट में बदलाव को लेकर केंद्र की मंशा पर सवाल उठा चुकी है।

नगीना लोकसभा सीट से बीजेपी के दलित सांसद यशवंत सिंह भी सरकार को चिट्ठी लिखकर नाराजगी जता चुके है कि मोदी राज में दलितों के लिए काम नहीं हो रहा है।

साल 2014 के चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें देने वाले उत्तर प्रदेश से पार्टी के ही सांसद छोटे लाल और अशोक दोहरे जैसे दलित सांसद राज्य की योगी सरकार के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं।

बीजेपी को अपनी ही पार्टी के इन दलित सांसदों की नाराजगी का खामियाजा 2019 के आम चुनाव में उठाना पड़ सकता है इसलिए पीएम नरेंद्र मोदी इस बात को लेकर चिंतित हैं और नेताओं को दो रातें दलित बहुल गांवों में बिताने का आदेश दिया है।

रिपोर्ट के मुताबिक पीएम मोदी ने ऐसे 20 हजार गांवों को पूरे देश में चिन्हित किया है जहां दलितों की आबादी 50 फीसदी से भी ज्यादा है और उनकी नाराजगी दूर करने को लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओं को काम करने के लिए कहा है।

ऐसा नहीं है कि विपक्षी दलों के अलावा बीजेपी के भी दलित नेताओं की सरकार से नाराजगी हाल के कुछ दिनों में बढ़ी है। इसकी शुरुआत साल 2014 में एनडीए के सत्ता में आने के बाद से ही हो गई थी जब देश के अलग-अलग हिस्सों में किसी ना किसी वजह से दलितों के साथ हिंसा हुई।

हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला की मौत के बाद यह नाराजगी और बढ़ गई। गुजरात के ऊना में दलित युवकों की सार्वजनिक तौर पर पिटाई ने भी उनमें बीजेपी के खिलाफ अविश्वास को जन्म देने में अहम भूमिका निभाई।

इस बीच डोंबिवली से विधायक रविंद्र चव्हाण ने ठाणे में दलितों की तुलना सूअर से कर दी थी तो विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह ने दलितों की तुलना कुत्ते से कर दी थी।

चव्हाण ने कहा था, 'जिस तरह अब्राहम लिंकन ने नाली से सूअर को निकाला और उसे साफ किया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस भी दलितों के उत्थान के लिए कई काम कर रहे हैं।'

वहीं केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने हरियाणा के फरीदाबाद में दो दलित बच्चों की हत्या के मामले में केंद्र सरकार का बचाव करते हुए कहा था, 'अगर कोई किसी कुत्ते पर पत्थर फेंकता है तो आप इसके लिए सरकार को ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकते।'

बीजेपी नेताओं के इन बयानों ने गुस्से और नाराजगी को बढ़ाने में आग में घी डालने का काम किया। बीते दिनों यूपी जैसे बड़े राज्यों में सर्वणों ने दलितों के पूरे गांव को आग के हवाले कर दिया और इसपर उचित कार्रवाई नहीं होने से उनकी नाराजगी इस सरकार से और बढ़ गई है।

2 अप्रैल के आंदोलन की वजह से देश भर में अलग-अलग जगह पर दलितों के मसीहा माने जाने वाले डॉ भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा को तोड़ा गया जो निश्चित तौर पर बीजेपी के प्रति दलितों के विश्वास को भी तोड़ रहा है। यही वजह है कि अब यूपी में राज्य सरकार ने पुलिस के आला अधिकारियों से अंबेडकर की प्रतिमा की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया है।

देश में दलितों की कुल आबादी करीब 16. 6 फीसदी है जो पूरे देश की आबादी में तीसरे नंबर पर है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में दलितों ने हिंदुत्व के नाम पर झोली भर-भरकर वोट दिया जिसकी बदौलत बीजेपी ने राज्य में ऐतिहासिक जीत हासिल की है।

दलित वोटरों के दरकते विश्वास को बनाए रखने के लिए ही शायद बीते साल बीजेपी ने राज्य में हुई विधानसभा चुनाव में करीब 100 टिकट दलित उम्मीदवारों को दिए।

भारतीय जनता पार्टी को इसका सीधा फायदा भी हुआ और 325 सीटों के साथ उसने 15 साल बाद सत्ता में वापसी करने में सफलता पाई। लेकिन इसके बाद भी दलितों के बीजेपी में घटते विश्वास को खत्म करने में मोदी सरकार सफल नहीं हो पा रही है।

रूठे दलितों को मनाने की कवायद में जुटी बीजेपी और मोदी सरकार

दलितों का दिल जीतने के लिए ही शायद मोदी सरकार ने साल 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में दलित चेहरा राम नाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जिसका विपक्षी पार्टियां भी विरोध नहीं कर पाईं।

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दलितों में पार्टी और मोदी सरकार के प्रति भरोसा जताने के लिए ही बीजेपी और केंद्र सरकार ने दलितों और पिछड़ों के भगवान माने जाने वाले डॉ भीमराव अंबेडेकर के जन्म दिवस से एक हफ्ते पहले तक के समय को समरसता दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया है। इस समरसता दिवस के मौके पर बीजेपी बूथ स्तर पर दलितों को पार्टी से जोड़ने के लिए एकलव्य खेल उत्सव का भी आयोजन करेगी।

बजट सत्र के आखिरी दिन पीएम मोदी ने बीजेपी सांसदों से कहा है कि उन्हें लोगों को यह याद दिलाना चाहिए कि बीजेपी ने अंबेडकर का ज्यादा सम्मान किया है। इतना ही नहीं दलितों की भलाई के लिए कई योजनाएं चलाई है जबकि विपक्षी पार्टियों का दलित प्रेम सिर्फ शब्दों में ही रहा है।

अगर दलितों की नाराजगी बीजेपी से इस कदर बढ़ती रही तो निश्चित तौर पर साल 2019 में नरेंद्र मोदी के लिए जीत की राह तय कर पाना बेहद मुश्किल हो जाएगा।

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