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संकट में महागठबंधन: RJD की बैठक में क्या इस्तीफा देंगे तेजस्वी यादव या नीतीश दिखाएंगे बाहर का रास्ता!

राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सुप्रीमो लालू यादव, उनकी पत्नी और बेटे तेजस्वी यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद सबकी नजरें पार्टी के विधायक दल की बैठक पर टिकी हैं।

Updated on: 10 Jul 2017, 11:21 AM

highlights

  • राष्ट्रीय जनता दल के विधायक दल की बैठक पर टिकीं नजरें
  • आरजेडी की बैठक में होने वाला फैसला बिहार में महागठबंधन की किस्मत तय करेगा
  • भ्रष्टाचार के मामले में नामजद होने के बाद तेजस्वी यादव पर इस्तीफे का दबाव बढ़ा है

नई दिल्ली:

राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सुप्रीमो लालू यादव, उनकी पत्नी और बेटे तेजस्वी यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद सबकी नजरें पार्टी के विधायक दल की बैठक पर टिकी हैं।

आरजेडी की बैठक में होने वाला फैसला बिहार में महागठबंधन की किस्मत तय करेगा।

रेलवे के टेंडर में हेरा-फेरी किए जाने के मामले में पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद, पत्नी राबड़ी देवी और बेटे तेजस्वी यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद बिहार की राजनीति में घटनाक्रम तेजी से बदला है।

भ्रष्टाचार के मामले में नामजद होने के बाद तेजस्वी यादव पर इस्तीफे का दबाव बढ़ा है। हालांकि लालू यादव के तेवर को देखते हुए इसकी संभावना कम ही है।

वहीं नीतीश कुमार पर यादव के खिलाफ अब तक कार्रवाई नहीं किए जाने को लेकर विपक्ष सवाल उठा रहा है।

कुमार ने अभी तक सीबीआई छापे और एफआईआर को लेकर कोई बयान नहीं दिया है और नहीं ही पार्टी की तरफ से इस बारे में कुछ कहा गया है।

माना जा रहा है कि आरजेडी की बैठक में लिए गए फैसलों के बाद ही कुमार सामने आएंगे। पार्टी के विधायकों की बैठक में अगर तेजस्वी यादव इस्तीफा नहीं देते हैं तो फिर जनता दल यूनाइटेड (जेडी-यू) के सामने तेजस्वी यादव को बर्खास्त करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होगा।

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नीतीश कुमार का यह फैसला महागठबंधन के लिए ताबूत में आखिरी कील की तरह होगा। उनका यह फैसला महागठबंधन में उन्हें पूरी तरह से अलग-थलग कर देगा।

महागठबंधन की सहयोगी पार्टी कांग्रेस पहले ही सीबीआई के छापे के बाद लालू के साथ अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कर चुकी है।

इसके अलावा राष्ट्रपति चुनाव को लेकर नीतीश पहले ही कांग्रेस और आरजेडी से किनारा कर चुके हैं। इसे लेकर तेजस्वी यादव और कांग्रेस इशारों-इशारों में नीतीश कुमार पर निशाना साध चुके हैं।

कांग्रेस ने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन दिए जाने को लेकर कुमार पर 'अवसरवादी' होने का आरोप लगाया था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने कुमार पर 'कई सिद्धांतों' को रखने का आरोप लगाया था, जिसके बाद कुमार ने पलटवार करते हुए कांग्रेस को 'सरकारी गांधीवाद' तक बता डाला था।

हालांकि इसके बाद कांग्रेस ने सफाई देते हुए कहा था कि 'जो होना था, वह हो गया। अब महागठबंधन में सब कुछ ठीक है।'

लेकिन ऐसा लगता नहीं है।

खबरों के मुताबिक नीतीश कुमार एक बार फिर से विपक्षी एकता को झटका देने का मन बना चुके हैं। माना जा रहा है कुमार उप-राष्ट्रपति चुनाव को लेकर होने वाली बैठक से किनाना कर सकते हैं।

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पिछले कुछ महीनों से नीतीश कुमार लालू यादव और उनके परिवार के खिलाफ की जा रही कार्रवाई को लेकर चुप रहने को लेकर बीजेपी के निशाने पर रहे हैं। बीजेपी लगातार उनकी 'सुशासन बाबू' की छवि को निशाना बना रहा है।

अपने लंबे राजनीतिक करियर में नीतीश कुमार कोई स्थायी वोट बैंक तो नहीं बना पाए लेकिन वह अपनी 'छवि' बनाने में सफल रहे हैं। लालू यादव और उनके परिवार के खिलाफ लग रहे घोटाले के आरोपों ने सबसे ज्यादा कुमार की इसी 'छवि' पर चोट पहुंचाई है। ऐसे में तेजस्वी यादव के इस्तीफा नहीं देने की स्थिति में कुमार के पास उनके खिलाफ कार्रवाई के अलावा कुछ और विकल्प नजर नहीं आता है।

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