Rajasthan Assembly Election 2023 : बेबाक.. दबंग.. और दिग्गज! यूं वसुंधरा राजे ने तय किया राजतंत्र से लोकतंत्र का सफर...
वसुंधरा का यही खास अंदाज उन्हें कई बार पार्टी पॉलिटिक्स का शिकार भी बना चुका है, बावजूद इसके हर मुश्किल का और सियासी संकट का मजबूती से मुकाबला करना ही उनके वर्चस्व को और भी निखारता है.
नई दिल्ली:
वसुंधरा राजे राजस्थान की पूर्व सीएम और राज्य की राजनीति में एक दिग्गज महिला नेत्री की पहचान रखती है. अपने सियासी सफर में वह 5 बार विधायक, 5 बार सांसद और 2 बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. वसुंधरा ने सिर्फ प्रदेश में बल्कि अपने दल और देश के लिए भी ऐसी मिसाल हैं, जिनका चाल-चरित्र और चेहरा आज भी सियासत का नया अध्याय है. यूं तो उन्हें हमेशा की भाजपा के लहराते झंडे के बीच खड़ा देखा गया, मगर कई दफा वक्त वो भी आया जब उन्होंने अचानक दल को भी चुनौती दे दी, लिहाजा उनकी पहचान भारतीय राजनीति में एक ऐसी नेत्री के तौर पर है, जो अपनी शर्तों पर काम करती है...
वसुंधरा का यही खास अंदाज उन्हें कई बार पार्टी पॉलिटिक्स का शिकार भी बना चुका है, बावजूद इसके हर मुश्किल का और सियासी संकट का मजबूती से मुकाबला करना ही उनके वर्चस्व को और भी निखारता है. ऐसे में चलिए राजस्थान का लोकतंत्र में अपनी अलग धाक रखने वाली वसुंधरा के पूरे सियासी सफर से होकर गुजरें...
राजे का शुरुआती जीवन...
वसुंधरा राजे का पूरा नाम वसुंधरा राजे सिंधिया है. उनका जन्म 8 मार्च 1953 को मायानगरी मुंबई में हुआ था. क्योंकि वो ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया और विजयाराजे सिंधिया की बेटी थीं, लिहाजा वो कोई आम शख्सियत नहीं थी. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा कोडाइकनाल, तमिलनाडु में प्रेजेंटेशन कॉन्वेंट स्कूल से पूरी करने के बाद मुंबई सोफिया कॉलेज फॉर वूमेन से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान की डिग्री के साथ स्नातक की डिग्री लीं.
फिर वक्त आया, 17 नवंबर 1972 का.. जब वसुंधरा की शादी शाही धौलपुर परिवार के महाराज राणा हेमंत सिंह के साथ हुई. मगर उनका ये वैवाहिक जीवन ज्यादा सफल नहीं रहा और चंद वक्त बाद ही उन्होंने अपने पति से अलग होने का फैसला कर लिया.
इसी के बाद शुरू हुआ राजे का सियासी सफर, मां विजयाराजे सिंधिया के कहने पर उन्होंने 1984 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुईं और मध्य प्रदेश की भिंड लोकसभा से चुनावी मैदान में उतर गईं. मगर वो दौर था राजीव गांधी का लिहाजा, वसुंधरा राजे को करारी हार का सामना करना पड़ा. इससे वे परेशान थीं, ऐसे में उस वक्त के तत्कालीन राजस्थान सीएम भैरोंसिंह शेखावत ने उन्हें राजस्थान की राजनीति में सक्रिय होने में सहयोग किया. इसके बाद उन्होंने अपने राजनीतिक करियमें में साल 1985 में धौलपुर से चुनावा लड़ कर पहली जीत दर्ज की. इसके बाद वो 5 बार विधायक, 5 बार सांसद और दो बार मुख्यमंत्री भी रहीं. यहां से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा...
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