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कभी इंदिरा गांधी ने कहा था ये है मेरा तीसरा बेटा, भारतीय राजनीति में ऐसे बढ़ा कमलनाथ का कद

कमलनाथ राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं, तभी तो 77 साल के कमलनाथ का राजनीतिक सफर आज भी जारी है. अब वो मध्य प्रदेश में पार्टी को फिर सत्ता दिलाने में पूरी जी जान से जुटे हुए हैं.

Updated on: 02 Dec 2023, 05:22 PM

नई दिल्ली:

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. 9 बार सांसद रहने वाले कमलनाथ का सियासी सफर काफी अहम है. 1980 में पहली बार छिंदवाड़ा से सांसद बनने के बाद वो राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखे. 80 के दशक के बाद से कमलनाथ सियासी पिच पर लगातार बैटिंग करते आ रहे हैं. गांधी परिवार से अच्छे रिश्ते होने के नाते भी कमलनाथ राजनीति में हमेशा चमकते हुए सितारा माने गए हैं.  1977 में जनता पार्टी की कथित तौर पर सरकार गिराने के बाद कमलनाथ गांधी परिवार के बेहद खास हो गए थे. वैसे तो गांधी परिवार से कमलनाथ का रिश्ता बचपन से ही अच्छा रहा है. इंदिरा गांधी के दूसरे बेटे संजय गांधी और कमलनाथ ने देहरादून के प्रतिष्ठित दून स्कूल से पढ़ाई की है और यहीं दोनों की दोस्ती हुई और ये दोस्ती हमेशा गांधी परिवार से  कायम हो गई. 

मध्यप्रदेश कांग्रेस की राजनीति में जब भी सियासी दिग्गजों की चर्चा होती है तो कमलनाथ का नाम टॉप नेताओं की सूची में पहले नंबर आता. क्योंकि कमलनाथ इकलौते ऐसे नेता हैं जो प्रदेश में कांग्रेस के 15 साल के वनवास को खत्म कर पार्टी को सत्ता में स्थापित किया था, हालांकि ये अलग बात है कि डेढ़ साल बाद कांग्रेस की सरकार गिर गई. ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों की बगावत की वजह से कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और सरकार भी गिर गई. 


कानपुर से ससंद तक का सफर
कमलनाथ का जन्म 18 नवंबर 1946 को उत्तरप्रदेश के कानपुर में हुआ था. कमलनाथ के पिता का नाम महेंद्र नाथ और माता का नाम लीला नाथ था. कमलनाथ मीडिल क्लास फैमिली में पले बढ़े. पिता महेंद्र नाथ चाहते थे कि उनका बेटा बड़ा होकर वकील बने, लेकिन वो सियासत में अपना करियर बनाना चाहते थे और इसी रास्ते पर वो आगे बढ़े और संजय गांधी के संपर्क में आने के बाद से उनकी राजनीति में एंट्री की नींव तैयार हुई थी. 

संजय गांधी के करीबी दोस्त
कमलनाथ और संजय गांधी की दोस्ती की मिसाल दी जाती थी, हालांकि, लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब दोनों की दोस्ती में दूरियां आ गईं, वो वक्त था जब कमलनाथ कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज चले गए और संजय गांधी दिल्ली आ गए. लेकिन कहते हैं ना समय सबसे बड़ा मरहम होता है. समय बीतने के साथ दोनों की दोस्ती फिर से परवान चढ़ने लगी. कोलकाता से दिल्ली और दिल्ली से कोलकाता आने जाने का सिलसिला चल पड़ा था. दोनों की दोस्ती की चर्चा अब सियासत में भी जोरों पर होने लगी थी.

 संजय गांधी के लिए जेल भी गए कमलनाथ 
राजनीतिक के जानकारों की माने तो कमलनाथ और संजय गांधी की दोस्ती  शोले फिल्म के जय-वीरु की तरह थे. दोनों हमेशा एक साथ ही रहा करते थे. एक बार की बात है 'जब आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार थी. तब एक मामले में संजय गांधी को तिहाड़ जेल भेजा गया था. तब संजय गांधी की मां और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने बेटे की सुरक्षा को लेकर चिंतित हो गई थी. कमलनाथ इस बात को भांप गए. संजय गांधी के पास जेल जाने के लिए कमलनाथ जानबूझकर एक जज से लड़ लिए. जिसके बाद अवमानना के आरोप में कमलनाथ को तिहाड़ जेल भेज दिया गया था.

 23 जून 1980 को संजय गांधी की असमय मौत ने नेहरू परिवार समेत समूचे देश को झकझोर दिया था. कांग्रेस में उठापटक का दौर जारी था. कई नेता इधर से उधर होने लगे थे. यही वो वक्त था जब कमलनाथ को संजय गांधी का दोस्त होने का फायदा मिला. 1979 में कमलनाथ को मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से टिकट मिला. और ये यहां से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. 

कभी इंदिरा ने कहा था तीसरा बेटा
कमलनाथ 22 साल की उम्र में कांग्रेस में शामिल हो गए थे. कांग्रेस की सियासत और नेहरू परिवार में कमलनाथ की नेहरू परिवार में इतनी पकड़ थी कि  सियासी गलियारों में एक बात की चर्चा उस वक्त खूब हुआ करती थी. इंदिरा गांधी ने कमलनाथ को तीसरा बेटा बताया था. साल 1979 में छिंदवाड़ा में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कमलनाथ की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि 'ये सिर्फ कांग्रेस के नेता नहीं है, राजीव गांधी और संजय गांधी के बाद मेरे तीसरे बेटे हैं, आप इन्हें चुनाव जीतवाइए.'

 9 बार सांसद चुने गए कमलनाथ
 छिंदवाड़ा लोकसभा सीट कमलनाथ के लिए सुरक्षित सीट मानी जाती है. कमलनाथ छिंदवाड़ा से 9 बार सांसद चुने गए हैं. 1979 में कमलनाथ पहली बार छिंदवाड़ा के सांसद चुने गए थे और उसके बाद से वह 9 बार यहां से संसद बने. वे 1984, 1990, 1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में लोकसभा चुनाव जीते. जबकि 2019 में मुख्यमंत्री बनने के बाद वह पहली बार छिंदवाड़ा से विधायक बने.