logo-image

हरीश रावत के जन्म से जुड़ी है यह रोचक कहानी

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भारतीय राजनीति में एक जाना-माना नाम हैं. वह उत्तराखंड राज्य के सातवें मुख्यमंत्री रहे. उनके कार्यकाल में बाधाएं आती रहीं. वह तीन बार मुख्यमंत्री बने हैं, लेकिन उन्हें पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं मिला.

Updated on: 09 Mar 2022, 10:19 AM

नई दिल्ली:

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भारतीय राजनीति में एक जाना-माना नाम हैं. वह उत्तराखंड राज्य के सातवें मुख्यमंत्री रहे. उनके कार्यकाल में बाधाएं आती रहीं. वह तीन बार मुख्यमंत्री बने हैं, लेकिन उन्हें पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं मिला. वह सबसे पहले 1 एक फरवरी 2014 को उत्तराखंड की सीएम बने, लेकिन 27 मार्च 2016 को राष्ट्रपति शासन लग गया. इसके बाद 21 अप्रैल 2016 को दोबारा मुख्यमंत्री बने, लेकिन एक दिन बाद फिर से राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. इसके बाद 11 मई 2016 को फिर से उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली और 18 मार्च 2017 तक वह सीएम रहे. इस वक्त कांग्रेस पार्टी ने उन्हें पंजाब राज्य का प्रभारी बना रखा है. आइए आपको बताते हैं हरीश रावत की निजी जिंदगी से जुड़ी जानकारी...


हरीश रावत के जन्म जुड़ी रोचक कहानी
बताया जाता है कि जब हरीश रावत के पिता राज सिंह को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी, तो उन्होंने मोहनी गांव के दुर्गेश्वर (नवाड़) मंदिर में हाथ पर दीया जलाकर 24 घंटे पूजा की और उनकी पत्नी दानू देवी भी हाथों में फूल लेकर खड़ी रहीं. बताया जाता है कि इस पूजा के एक वर्ष बाद हरीश रावत ने उनके घर में जन्म लिया. इसके बाद चंदन रावत और जगदीश रावत पैदा हुए.

केंद्रीय मंत्री भी रहे
इससे पहले वह यूपीए के शासन में केंद्रीय मंत्री भी रहे. साल 2009 से 2011 तक रोजगार मंत्रालय में भी राज्य मंत्री रहे. इसके बाद साल 2011-12 तक वह संसदीय मामले, कृषि और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे. 30 अक्टूबर 2012 से 31 जनवरी 2014 तक वे जल संसाधन मंत्री रहे. गौरतलब है कि हरीश रावत सबसे पहले 1980 में अल्मोड़ा से सांसद बने, लेकिन उनका  राजनीतिक सफर बहुत पहले ही शुरू हो गया था. 1980 में सातवीं लोकसभा में सांसद बनने के साथ ही केंद्रीय राजनीति में उनकी शुरुआत हुई. 8वीं और 9वीं लोकसभा में भी वह यहीं से सांसद रहे. 2009 के लोकसभा चुनाव  में अल्मोड़ा से आरक्षित सीट घोषित होने के बाद हरिद्वार से चुनाव लड़ा और 3.3 लाख मतों से चुनाव जीता. लोकसभा के अलावा हरीश रावत साल 2002 से 2008 तक राज्यसभा से भी सांसद रहे.  

पारिवारिक पृष्ठभूमि व निजी जीवन 
हरीश रावत का जन्म 27 अप्रैल 1948 को एक कुमाउनी राजपूत परिवार में राजेंद्र सिंह रावत और देवकी देवी के यहां हुआ था. उनका जन्म स्थान अल्मोड़ा जिले के चौनलिया के पास मोहनारी गांव है. अल्मोड़ा में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वह स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई करने लखनऊ विश्वविद्यालय चले गए और 5 साल का बीएएलएलबी किया. 

पूरा नाम हरीश रावत
 जन्म तिथि 27 Apr 1948 (उम्र 73) 
जन्म स्थान ग्राम - मोहनारी, 
पी.ओ. - चौनलिया, 
जिला - अल्मोड़ा (उत्तर प्रदेश) 
पार्टी का नाम Indian National Congress 
शिक्षा व्यवसाय कृषक, सामाजिक कार्यकर्ता, ट्रेड यूनियनिस्ट 
पिता का नाम स्वर्गीय श्री राजेन्द्र सिंह रावत 
माता का नाम स्वर्गीय श्रीमती देवकी देवी 
जीवनसाथी का नाम श्रीमती रेणुका रावत 
जीवनसाथी का व्यवसाय व्यवसाय (संस्थापक, चौधरी सर्विस स्टेशन) 
सम्पर्क स्थाई पता 40, ज्ञानलोक कॉलोनी, बाईपास रोड, हरिद्वार, उत्तराखंड 
वर्तमान पता 9, तीन मूर्ति लेन, नई दिल्ली - 110 001 
सम्‍पर्क नंबर (011) 23714200, 23714663 (O), 23793152 (R), 9868181205 (M) 

बचपन से राजनीति में थी रुचि
हरीश रावत की बचपन से ही राजनीति में रुचि थी. वह कई वर्ष तक व्यापारी संघ के नेता भी रहे और भारतीय युवा कांग्रेस के सदस्य के रूप में भी कई साल कार्य किया.
राजनीति में 'हरदा' के नाम से मशहूर हरीश रावत की राजनीति ब्लॉक स्तर से उस समय शुरू हुई जब उन्होंने ब्लॉक प्रमुख का चुनाव जीता. इसके बाद वह जिलाध्यक्ष बने और यहीं से युवक कांग्रेस के साथ जुड़कर उन्होंने कांग्रेस के साथ अपनी यात्रा शुरू की. हरीश रावत के जीवन में उस समय अहम पड़ाव आया जब 1980 में सातवीं लोकसभा में अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ संसदीय सीट से उन्होंने जनसंघ (भाजपा) के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी को शिकस्त दी. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 1984 के चुनाव में भी मुरली मनोहर जोशी तथा 1989 के लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड क्रांति दल के काशी सिंह ऐरी को हराकर संसद पहुंचे. इस दौरान वह कई संसदीय समितियों के सदस्य भी रहे. हालांकि इसके बाद हुए 1991 में उन्हें भाजपा के जीवन शर्मा और 1991, 1996, 1998 तथा 1999 में उन्हें भाजपा के बची सिंह रावत के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा.