फिल्म 'द गाजी अटैक' देखने से पहले जानें 'गाजी की असली कहानी', कैसे भारतीय नौसेना ने किया पाकिस्तानियों का मिशन फेल
राणा दग्गुबाती, तापसी पन्नू, अतुल कुलकर्णी, केके मेनन की फिल्म द गाजी अटैक आज बड़े पर्दे दस्तक दे रही हैं। जानें क्या है द गाजी अटैक की असली कहानी-
नई दिल्ली:
राणा दग्गुबाती, तापसी पन्नू, अतुल कुलकर्णी, केके मेनन की फिल्म 'द गाजी अटैक' आज बड़े पर्दे दस्तक दे रही हैं। जब से फिल्म 'द गाजी अटैक' का ट्रेलर सामने आया है तभी से इस फिल्म को लेकर काफी चर्चा हो रही है। नाम के मुताबिक ये एक हमले की ही कहानी है लेकिन काल्पनिक नहीं बल्कि इतिहास के परतों में छिपी हुई। जानें क्या है द गाजी अटैक की असली कहानी-
'द गाज़ी अटैक' भारतीय नौसेना के उस अद्भुत पराक्रम की ऐसी कहानी है जिसके बारे में आम लोगों को अभी तक कम ही मालूम है। कहानी भारतीय नौसेना के पहले अंडरवाटर सबमरीन ऑपरेशन की है, जिसमें नौसेना के आईएनएस राजपूत पनडुब्बी ने पाकिस्तान की पनडुब्बी पीएनएस गाज़ी को बर्बाद कर दिया था। बात 1971 भारत पाकिस्तान के युद्ध के पहले की है जब पाकिस्तान ने आईएनएस विक्रांत को तबाह कर विशाखापत्तनम पोर्ट को अपने कब्जे में लेने का ना-पाक मंसूबा बनाया था लेकिन भारतीय नौसेना के चंद जाबांज सैनिकों ने उनके एक न चलने दी।
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विशाखापत्तनम पोर्ट को अपने कब्जे में लेना चाहता था पाक
पाकिस्तान ने बंगाल की खाड़ी पर अपना दबदबा कायम रखना चाहता था। जिसके लिए पाकिस्तान को आईएनएस विक्रांत के तबाह करना जरुरी था। गाजी का असली नाम यूएसएस डाइब्लो था जिसे पाकिस्तान द्वारा यूएसए से लिया गया था। इस सबमरीन की खासियत यह थी कि यह बिना रडार में आये 11000 नौटिकल मील तक सफर कर सकती थी और साथ महीने भर से ज्यादा समय तक पानी के अंदर रहने में सक्षम थी। इसलिए पाकिस्तान ने कराची से मध्य नवंबर में रडार के नीचे से इसे तैनात किया। वहाँ से, इस सबमरीन ने बंगाल की खाड़ी के लिए अपना रास्ता चुन लिया।
द गाजी
यह कहा जाता है कि पाक से एक मैसेज चित्तागांग नौसेना अधिकारियों को लुब्रिकेशन तेल के बारें में जानकारी लेने के लिए भेजा, जो विशेष रूप से सबमरीन और माइन स्वीपर में प्रयोग किया जाता था। इसी संदेश को भारतीय नौसेना ने पकड़ लिया था। भारतीय नौसेना इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ थी ऐसा करने में सिर्फ एक ही पाकिस्तानी पनडुब्बी सक्षम है और वो है गाजी।
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भारतीय नैसेना ने कैसे बनाया प्लान
पूर्वी नौसेना कंमाड के कंमाडिंग फ्लैग ऑफिसर वाइस एडमिरल एन कृष्णन ने एक बेहतरीन प्लान बनाया। उन्होंने एक रेडियो मैसेज भेजा जिससे 'द गाजी' को यह विश्वास हो गया कि आईएनएस विक्रांत विजाग के पास ही मौजूद है। साथ ही और कई ऐसे संदेश भेजे गये जिससे 'द गाजी' को इस बात का पूरी तरह से विश्वास हो गया कि आईएनएस विक्रांत विजाग के बेहद पास है।
वहीं दूसरी तरफ आईएनएस विक्रांत को पहले से ही पोर्ट एक्स रे के पास एक गुप्त स्थान पर भेज दिया गया। इस बीच, गाजी अभी भी विक्रांत को पकड़ने की योजना बना रहा था, विजाग के पास कई पानी के भीतर तैनात माइन्स को खत्म कर रहा था। इसी तरह पहली योजना काम कर गई।
आईएनएस राजपूत ने निभाया रोल
जिसके बाद नौसेना कमांड ने द्वितीय विश्व युद्ध में प्रयोग हुए आईएनएस राजपूत को वहां तैनात किया। वाइस एडमिरल एन कृष्णन ने इसे आईएनएस विक्रांत की जगह होने का नाटक किया। राजपूत को बंदरगाह छोड़ने के पहले नेविगेशन एड्स को बंद करने को कहा गया ताकि राजपूत को विक्रांत की जगह तैनात किया जा सके और इसकी कोई जानकारी गाजी को ना मिल सके।
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4 दिसंबर की वो रात
4 दिसंबर की मध्यरात्रि में सबमरीन की गहराई को सोनर पर पकड़ा लिया गया। वह इस बात को लेकर निश्चित नहीं थे कि तंरगध्वनि किसकी है, लेकिन वह यह जानते थें कि गाजी की हो सकती है। जिसके बाद आईएनएस राजपूत के कैप्टन इंदर सिंह को गहराई में दो बार फायरिंग का आदेश दिया। जिसके 1 मिनट के भीतर ही आईएनएस राजपूत को एक बड़े विस्फोट ने हिला कर रख दिया हालांकि इसका नुकसान भारतीय जहाज पर नहीं पड़ा।
अगली सुबह पानी की तरह पर भारी मात्रा में तेल और मलबा तैरता दिखा जिसकी जानकारी मछुआरों ने नौसेना को दी। जिसमें से कुछ मलबा यूएसएस डैब्लो को पहचाना गया। गाजी अपने सभी क्रू मेंमबर के साथ डूब गया था।
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पाकिस्तानी ने नकारी बात
भारत की यह रणनीति काम आई। कहा जाता है कि आईएनएस राजपूत द्वारा की गई फायरिंग गाजी के स्टोरेज जगह पर हुई जहां पर मिसाइल और अन्य माइन थे। इसके अलावा एक और संभावना जताई जाती है कि गाजी की माइन विस्फोट कर गई थी। जिसके कारण गाजी में विस्फोट हो गया।
जहां एक ओर भारत ने इस बात का दावा किया तो दूसरी ओर पाकिस्तान ने इसे नकार दिया। पाकिस्तानी रिपोर्ट के अनुसार गहराई में होने के कारण गाजी खुद ही अपनी बारुदी सुरंग में चली गई और एक माइन से जा टकराई।
एक पुरानी द्वितीय विश्व युद्ध की विध्वंसक आईएनएस का नेविगेशन सिस्टम के बिना एक बारूदी सुरंग में प्रवेश करना एक बेहद बहादुरी का काम था। जिसे सफलतापूर्वक इस जंगी जहाज ने सफल बनाया।
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