तालिबान के शीर्ष कमांडर रहीमुल्ला हक्कानी की आतंकी हमले में मौत
आत्मघाती हमलावर अपना एक पैर पहले खो चुका था और इसकी जगह लगाए गए प्लास्टिक के नकली पैर का इस्तेमाल उसने विस्फोटक छिपाने के लिए किया.
highlights
- कट्टर तालिबानी सोच का समर्थक और इस्लामिक विद्वान था हक्कानी
- काबुल के मदरसे में हक्कानी के निजी ऑफिस में हुआ आतंकी हमला
- द रेजिस्टेंस फोर्स और इस्लामिक स्टेट पर आतंकी हमले का शक
काबुल:
अफगानिस्तान (Afghanistan) में शीर्ष तालिबानी कमांडर और इस्लामिक विद्वान शेख रहीमुल्ला हक्कानी (Sheikh Rahimullah Haqqani) गुरुवार को काबुल (Kabul) के एक मदरसे में हुए आत्मघाती हमले (Blast) में मारा गया. आत्मघाती हमलावर ने अपने कृत्रिम प्लास्टिक के पैर में विस्फोटक छिपाकर रखे थे. हक्कानी की आतंकी हमले में मौत इस्लामिक अमिरेट्स ऑफ अफगानिस्तान के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है. रहीमुल्ला वास्तव में हक्कानी समूह के वैचारिक चेहरा बतौर भी देखा जाता था, जिसे हदीस साहित्य में महारत हासिल थी. फिलहाल इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी किसी आतंकी संगठन ने नहीं ली है. फिर भी तालिबान (Taliban) पुलिस द रेजिस्टेंस फोर्स और इस्लामिक स्टेट का हाथ इस आत्मघाती आतंकी हमले के पीछे मान रही है. इसी लाइन पर तालिबान पुलिस ने हक्कानी की मौत की जांच शुरू कर दी है.
प्लास्टिक के नकली पैर में छिपाए थे विस्फोटक
रॉयटर्स समाचार एजेंसी से कम से कम चार तालिबानी सूत्रों ने बताया कि आत्मघाती हमलावर अपना एक पैर पहले खो चुका था और इसकी जगह लगाए गए प्लास्टिक के नकली पैर का इस्तेमाल उसने विस्फोटक छिपाने के लिए किया. तालिबान शासन के गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ तालिबानी कमांडर के मुताबिक, 'हम जांच कर रहे हैं कि आत्मघाती हमलावर की पहचान करने की जांच कर रहे हैं. यह भी पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि वह किसकी मदद से मदरसे के इस महत्वपूर्ण इलाके तक पहुंच शेख रहीमुल्ला हक्कानी के निजी ऑफिस में घुस गया. इस्लामिक अमिरेट्स ऑफ अफगानिस्तान के लिए यह एक बड़ा नुकसान है.'
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पहले भी हक्कानी पर हुए हमले
हक्कानी तालिबान की कट्टर आतंकी विचारधारा का प्रबल समर्थक तो था ही. साथ ही इस्लामिक विद्वान भी था. हक्कानी पर पहले भी हमले हुए, जिनमें से उत्तरी पाकिस्तानी शहर पेशावर में 2020 का आतंकी हमला भी शामिल है. इस आतंकी हमले को इस्लामिक स्टेट ने अंजाम दिया था, जिसमें सात लोग मारे गए थे. तालिबान प्रशासन का कहना है कि अफगानिस्तान से विदेशी फौजों की रवानगी के बाद तालिबान ने सुरक्षा संभाली थी. हालांकि तालिबान के सरकारी विभागों और शीर्ष कमांडरों पर आतंकी हमले होते रहे हैं. इनमें से हाल के महीनों में ज्यादातर इस्लामिक स्टेट ने हमले किए, जिनका निशाना तालिबान के शीर्ष नेतृत्व समेत धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यक बने.
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