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SCO से इतर पीएम मोदी ने ज़िनपिंग से की मुलाक़ात, कहा- साथ मिले तो दुनिया को दे सकते हैं दिशा

इस बैठक में दोनों नेताओं के बीच लगभग एक महीने पहले वुहान में हुई अनौपचारिक बैठक में लिए गए निर्णयों के क्रियान्वयन को लेकर चर्चा हुई।

Updated on: 09 Jun 2018, 10:33 PM

नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी ज़िनपिंग ने चीन के किंगडाओ शहर में एससीओ शिखर सम्मेलन से इतर शनिवार को एक-दूसरे से मुलाक़ात की और कई मुद्दों को लेकर द्विपक्षीय बातचीत भी की।

इस बैठक में दोनों नेताओं के बीच लगभग एक महीने पहले वुहान में हुई अनौपचारिक बैठक में लिए गए निर्णयों के क्रियान्वयन को लेकर चर्चा हुई।

मीटिंग से पहले नरेंद्र मोदी और शी ज़िनपिंग एक दूसरे से काफी गर्मजोशी से मिले।

पीएम मोदी ने बैठक के बाद के संबोधन में कहा कि भारत और चीन चाहे तो अपने मजबूत और स्थिर संबंधों से पूरी दुनिया को स्थिरता और शांति की प्रेरणा दे सकता है।

दोनों नेताओं ने बीजिंग द्वारा नई दिल्ली को ब्रह्मपुत्र नदी के आंकड़े साझा करने और भारत द्वारा चीन को चावल निर्यात करने के समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

दोनों नेताओं ने अप्रैल में वुहान में हुए महत्वपूर्ण सम्मेलन के बाद भारत-चीन संबंधों में हुए विकास को आगे बढ़ाया।

शी और मोदी 3,448 किलोमीटर लंबे अपने विवादास्पद सीमा पर शांति बनाए रखने पर सहमत हुए।

भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने ट्वीट कर बताया, 'वुहान अनौपचारिक शिखर बैठक में द्विपक्षीय संबंधों की पैदा हुई सकारात्मक गति को और मजबूत करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एससीओ सम्मेलन से इतर चीन के राष्ट्रपति से मुलाकात की।'

विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, 'चीन के जल संसाधन मंत्रालय और भारत के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय द्वारा बाढ़ के समय में ब्रह्मपुत्र नदी पर हाइड्रोलोजिकल सूचना मुहैया कराने के प्रावधान पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया।'

बयान के अनुसार, 'समझौते की वजह से चीन प्रत्येक वर्ष बाढ़ के समय में 15 मई से 15 अक्टूबर तक हाइड्रोलोजिकल डाटा भारत को उपलब्ध कराएगा। इस समझौते के तहत बाढ़ का मौसम नहीं होने के बाद भी जलस्तर साझा सहमति स्तर से बढ़ जाने पर भी चीन भारत को हाइड्रोलोजिकल डाटा मुहैया कराएगा।'

चीन ने पिछले वर्ष डोकलाम में दोनों सेनाओं के आमने-सामने आ जाने के बाद यह डाटा भारत को मुहैया नहीं कराया था।

बयान के अनुसार, 'भारत से चीन निर्यात किए जाने वाले 2006 के एक प्रोटोकोल में संसोधन कर गैर-बासमती चावल को शामिल किया गया है।'

बता दें कि यह बैठक शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सलाना सम्मेलन से अलग है।

इससे पहले चीन के आमंत्रण पर 27-28 अप्रैल को वुहान में दोनों देशों के बीच अनौपचारिक वार्ता हुई थी।

इससे पहले दिन में, एससीओ के महासचिव राशिद अलमोव ने मोदी के यहां आने के तत्काल बाद उनसे मुलाकात की।

कुमार ने एक अन्य ट्वीट में कहा, 'एससीओ के महासचिव ने कहा कि भारत 2017 से इस संगठन का पूर्ण सदस्य बनने के बाद से ही काफी योगदान दे रहा है।'

ज़ाहिर है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार दोपहर SCO शिखर सम्मेलन में शिरकत करने चीन के तटीय शहर किंगडाओ पहुंचे। 

मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अन्य सदस्य देशों के नेताओं से भी मुलाकात करेंगे। मोदी की पाकिस्तानी राष्ट्रपति ममनून हुसैन के साथ कोई द्विपक्षीय बैठक निर्धारित नहीं है।

भारत और पाकिस्तान को पिछले साल आधिकारिक रूप से इस आठ सदस्यीय सुरक्षा समूह में शामिल किया गया था। इस संगठन में चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान शामिल हैं।

दोनों देशों के बीच जून 2017 में सीमा पर दो महीने तक जारी रहे सैन्य गतिरोध के बाद 2018 में भारत और चीन के रिश्ते में सुधार होता हुआ दिखाई दे रहा है।

चीन इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेपरेरी इंटरनेशनल रिलेशंस के दक्षिण व दक्षिणपूर्व एशियाई एवं ओशनियन संस्थान के निदेशक हु शीशेंग ने बताया, 'यह एक महत्वपूर्ण मुलाकात है, लेकिन स्वरूप में अधिक प्रतीकात्मक है। इसकी तुलना वुहान से नहीं की जा सकती। किंगदाओ में होने वाली मुलाकात औपचारिक है।'

मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी मुलाकात करेंगे। मोदी और पुतिन के बीच पिछले महीने सोच्चि में अनौपचारिक मुलाकात हुई थी। 

एससीओ शिखर सम्मेलन में क्षेत्रीय सुरक्षा और आतंकवाद के मुद्दे पर चर्चा की जाएगी। सम्मेलन में मोदी पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को बढ़ावा देने के मुद्दे को उठा सकते हैं।

शिखर सम्मेलन की प्रमुख विशेषताओं में से एक ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी की उपस्थिति होगी। चीन ने उन्हें फोरम में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है।

रूहानी की उपस्थिति का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि हाल ही में अमेरिका ने ईरान परमाणु समझौते से अपने हाथ वापस खींच लिए हैं। चीन ने इस परमाणु समझौते की रक्षा का संकल्प लिया हुआ है।

मंगोलिया, अफगानिस्तान और बेलारूस के साथ ईरान को शिखर सम्मेलन में पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया है। 

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