Bihar News: बिहार में पढ़ाई चौपट, पटना के 7 कमरे वाले एक कैंपस में चल रहे 4 स्कूल
बिहार में शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार चाहे जितने भी दावे क्यों ना कर ले, धरातल पर सच्चाई आज भी वही है जो दशकों पहले थी. मानो शिक्षा के क्षेत्र में बिहार का विकास हुआ ही ना हो.
highlights
- स्कूल बदहाल...सरकार से पूछे सवाल
- एक कैंपस..7 कमरे...चल रहे 4 स्कूल
- शिक्षा मंत्री जी.. इन स्कूलों का हाल देखा क्या?
- पटना के सरकारी स्कूल में पढ़ाई चौपट
Patna:
बिहार में शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार चाहे जितने भी दावे क्यों ना कर ले, धरातल पर सच्चाई आज भी वही है जो दशकों पहले थी. मानो शिक्षा के क्षेत्र में बिहार का विकास हुआ ही ना हो. हैरत तब और हो जाती है जब राजधानी पटना में सरकारी स्कूलों की दुर्दशा देखने को मिलती है. दुर्दशा भी ऐसी कि एक स्कूल कैंपस में 4-4 स्कूलों को चलाने की नौबत आ जाती है. बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर, अक्सर अपने विवादित बोल के चलते सुर्खियों में रहते हैं. मीडिया के सामने शिक्षा मंत्री ज्ञान देते हैं, इतिहास और प्राचीन ग्रथों की बात करते हैं. अब मंत्री जी को बयानों से फुर्सत मिले तब ना शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान दें, तो मंत्री जी देख लीजिए.
बच्चों को बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर तो दूर पढ़ने के लिए ढंग के क्लासरूम्स भी नहीं मिल रहे. एक स्कूल कैंपस में 4 स्कूलों को चलाया जा रहा है. राजधानी पटना के नाला रोड अंबेडकर नगर के एक स्कूल कैंपस में
1. बापू स्मारक बालिका मध्य विद्यालय
2. बालक मध्य विद्यालय मछुआ टोली
3. नवीन कन्या मध्य विद्यालय मछुआ टोली
4. और प्राथमिक विद्यालय नाला रोड का संचालन हो रहा है.
राजधानी पटना के स्कूल की ये हालत है तो अंदाजा लगा सकते हैं कि ग्रामीणों इलाकों में शिक्षा व्यवस्था की क्या हालत होगी. जिस स्कूल में 30 से ज्यादा क्लासरूम्स होने चाहिए वहां सिर्फ 7 से आठ कमरे हैं. वो तो गनीमत ये है कि स्कूल में छात्रों की संख्या बेहद कम है तो जैसे तैसे गुजारा हो जाता है. छात्रों के कम होने की वजह भी स्कूल की बदहाली है. लोग इस स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने भेजना ही नहीं चाहते.
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पटना के सरकारी स्कूल में पढ़ाई चौपट
परेशानी सिर्फ क्लासरूम्स की कमी नहीं है. यहां बिजली, पानी और साफ-सफाई यहां तक की बेहतर शौचालय का भी कोई इंतजाम नहीं है. स्कूल प्रबंधन ने इसको लेकर कई बार सरकार को पत्र भी लिखा, लेकिन ना जाने वो पत्र सरकार तक पहुंची भी या नहीं. क्या पत्रों को अधिकारियों की उदासीनता के बोझ तले दबा दिया गया या जनप्रनिधियों की मोटी फाइलों में छात्रों के भविष्य के लिए कोई जगह ही नहीं है.
बिहार में प्रतिभा की कमी नहीं है, लेकिन ये प्रतिभाएं इसी तरह सरकार और प्रशासन की लापरवाही के चलते कहीं गुम हो जाती हैं. जिस शिक्षा के मंदिर में छात्रों का भविष्य गढ़ा जाता है. वो खुद अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. छात्रों का भविष्य अंधेरे क्लासरूम की तरह ही अंधकार में जा रहा है, लेकिन जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को इन छात्रों से क्या मतलब जो आगे चलकर IAS, IPS या बड़े अफसर बन सकते हैं. उन गरीब परिवारों से क्या मतलब जिनके पास प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने के लिए पैसे नहीं है. नेताओं और अधिकारियों का क्या है उनके बच्चे तो बड़े-बड़े आलीशान स्कूलों में विदेशी कॉलेजों में पढ़ते हैं, तो भला क्यों वो इतनी जहमत करें और सरकारी स्कूलों को दुरुस्त कराएं. रही बात शिक्षा व्यवस्था की तो वो चुनावी मंचों से सियासतदानों की जुबान की शोभा बढ़ाने के लिए काफी है.
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