Advocate's Day: डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने जब लगाई थी नेहरू को फटकार
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद देश के ऐसे इकलौते राष्ट्रपति हैं जो दो बार राष्ट्रपति रहे थे.
Patna:
बिहार की धरती से कई महान नेताओं का जन्म हुआ और महान नेताओं के रूप में सबसे ज्यादा विख्यात हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद. जी हां! देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद देश के ऐसे इकलौते राष्ट्रपति हैं जो दो बार राष्ट्रपति रहे थे. ऐसा कम देखने को मिलता है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच कभी किसी बात को लेकर विवाद हुआ है लेकिन डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू को हिंदू सिविल कोड के मुद्दे पर सार्वजनिक तौर पर फटकार लगा दी थी. 3 दिसंबर को डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती एवं एड्वोकेट्स डे के रूप में भी मनाया जाता है.
- 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक भारत के राष्ट्रपति रहे
- 12 वर्षों तक रहे भारत के राष्ट्रपति
- भारत के दो कार्यकाल पूरा करने वाले अबतक के पहले और आखिरी राष्ट्रपति
- लगातार दो बार देश के राष्ट्रपति रहने का रिकार्ड
- सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से किए जा चुके हैं सम्मानित
बेहद शांत और हमेशा मुस्करानेवाले देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म सीवान जिले के जीरादेई में 3 दिसंबर 1884 को हुआ था. उनके पिता का नाम महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था. बचपन से ही डॉ. प्रसाद बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के थे और इसकी वजह यह थी कि उनके पिता संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे एवं माता धर्मपरायण महिला थीं.
पढ़ाई-लिखाई
डॉ. राजेंद्र बाबू की प्रारंभिक शिक्षा छपरा के जिला स्कूल से हुई. सिर्फ 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा प्रथम स्थान से पास की और फिर कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लेकर लॉ के क्षेत्र में डॉयरेक्टरेट की उपाधि हासिल की. वे हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, बंगाली एवं फारसी भाषा से पूरी तरह परिचित थे. राजेन्द्र बाबू का विवाह बाल्यकाल में लगभग 13 वर्ष की उम्र में राजवंशी देवी से हो गया था.
- वकील के रूप में शुरू किया करियर
- बाद में बन गए स्वतंत्रता सेनानी
- 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक रहे देश के राष्ट्रपति
एक अधिवक्ता के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद कुछ ही समय बाद स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़े. भारत के राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक का रहा... सन् 1962 में अवकाश प्राप्त करने पर उन्हें 'भारत रत्न' की सर्वश्रेष्ठ उपाधि से सम्मानित भी किया गया था. राष्ट्रपति पद पर रहते हुए अनेक बार मतभेदों के विषम प्रसंग आए, लेकिन उन्होंने राष्ट्रपति पद पर प्रतिष्ठित होकर भी अपनी सीमा निर्धारित कर ली थी. सरलता और स्वाभाविकता उनके व्यक्तित्व में समाई हुई थी. उनके मुख पर मुस्कान सदैव बनी रहती थी, जो हर किसी को मोहित कर लेती थी.
- हिंदू सिविल कोड को लेकर जवाहर लाल नेहरू को लगाई थी फटकार
- खुद ही दिया था राष्ट्रपति पद से इस्तीफा
वैसे तो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के बीच कई बार मतभेद देखने को मिले हैं लेकिन एक बार तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू के साथ हिंदू सिविल कोड को लेकर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की बहस हो गई थी. यह बात 1951 की है. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू हिंदू सिविल कोड संसद से पास कराने की तैयारी में थे, लेकिन देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद इस बिल को लेकर नेहरू से असहमत थे. दोनों ने एक दूसरे को कई खत लिखे.
पंडित नेहरू ने जब राष्ट्रपति के अधिकार पर सवाल उठाए, तो राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि राष्ट्रपति इतना असहाय नहीं है और सरकार पर भी पाबंदियां हैं. वैसे तो आजाद भारत के इतिहास में ये राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच मतभेद का पहला वाकया था, लेकिन आखिरी नहीं. इसके बाद भी ऐसे कई मौके आए, जब देश के औपचारिक मुखिया यानी राष्ट्रपति ने आधिकारिक मुखिया प्रधानमंत्री से न केवल सवाल पूछे, बल्कि राष्ट्रपति के अधिकारों की मजबूती से याद भी दिलाई.
- आम लोगों को लिए खोला मुगल गार्डेन
- 28 फरवरी 1963 को राजेंद्र बाबू का निधन
डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक से अधिक बार अध्यक्ष रहे. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का 28 फरवरी 1963 को निधन हो गया. महान देशभक्त, सादगी, सेवा, त्याग और स्वतंत्रता आंदोलन में अपने आपको पूरी तरह समर्पित कर देने के गुणों को किसी एक व्यक्तित्व में देखना हो तो उसके लिए भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का नाम लिया जाता है. राष्ट्रपति भवन में मुगल गार्डेन को भी आम लोगों के लिए खोलने की प्रथा डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने ही शुरू की थी.
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