बेटी बचाओ: फूलन देवी, संपत पाल जैसी देश की इन बेटियों ने संघर्ष के बूते कमाया नाम
इन महिलाओं ने न केवल अपने लिए बल्कि पूरे देश की महिलाओं के लिए लोगों का नज़रिया बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है।
नई दिल्ली:
समाज के एक वर्ग में महिलाओं को लेकर भले ही लोगों की सोच बदल रही हो, लेकिन हमारी आबादी का एक बड़ा हिस्सा अब भी ऐसा है जिसे अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है। भारतीय समाज में अब भी महिलाओं को लेकर रुढ़ीवादी सोच बरकरार है। समय-समय पर देश में ऐसी महिलाओं ने अपनी उपस्थिती दर्ज़ कराई है।
इन महिलाओं ने न केवल अपने लिए बल्कि पूरे देश की महिलाओं के लिए लोगों का नज़रिया बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है। फूलन देवी, संपत पाल, चारू खुराना और मधु श्रीवास्तव जैसी कई महिलाओं ने समाज के खिलाफ लड़ाई लड़ी और महिलाओं को देखने का नज़रिया बदला।
डकैत से सांसद बनी भारत की एक राजनेता थीं। फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव गोरहा में निम्न जाति परिवार में हुआ था।
फूलन की शादी ग्यारह साल की उम्र में हुई थी लेकिन उनके परिवार ने उन्हें छोड़ दिया था।
जीवन में काफी प्रताड़ना झेलने के बाद फूलन देवी का झुकाव डकैतों की तरफ हुआ और धीरे धीरे फूलनदेवी ने अपना खुद का एक गिरोह खड़ा कर लिया।
कहा जाता है कि गिरोह बनाने से पहले गांव के कुछ लोगों ने कथित तौर पर फूलन के साथ दुराचार किया था।
फूलन ने इसी का बदला लेने के लिए डकैत गिरोह बनाया था। 1996 में फूलन ने उत्तर प्रदेश के भदोही सीट से (लोकसभा) का चुनाव जीता। 25 जुलाई सन 2001 को दिल्ली में उनके आवास पर फूलन की हत्या कर दी गयी।
संपत पाल देवी एक सामाजिक कार्यकर्ता और गुलाबी गैंग नामक संस्था की संस्थापक है।
संपत पाल का जन्म उत्तर प्रदेश में वर्ष 1960 में बांदा के बैसकी गांव के एक ग़रीब परिवार में हुआ। संपत पाल की 12 साल की उम्र में एक सब्ज़ी बेचने वाले से शादी हो गई थी।
शादी के चार साल बाद गौना होने के बाद संपत अपने ससुराल चित्रकूट ज़िले के रौलीपुर-कल्याणपुर आ गई थी। ससुराल में संपत के शुरुआती साल संघर्ष से भरे हुए थे।
उनका सामाजिक सफ़र तब शुरु हुआ जब उन्होंने गांव के एक हरिजन परिवार को अपने घर से पीने के लिए पानी दे दिया था जिस कारण उन्हें गांव से निकाल दिया गया, लेकिन संपत कमज़ोर नहीं पड़ी और गांव छोड़ परिवार के साथ बांदा के कैरी गांव में बस गई।
संपत के अनुसार क़रीब दस साल पहले जब उन्होंने अपने पड़ोस में रहने वाली एक महिला के साथ उसके पति को मार-पीट करते हुए देखा तो उन्होंने उसे रोकने की कोशिश की और तब उस व्यक्ति ने इसे अपना पारिवारिक मामला बता कर उन्हें बीच-बचाव करने से रोक दिया था।
इस घटना के बाद संपत ने पांच महिलाओं को एकजुट कर उस व्यक्ति को खेतों में पीट डाला और यहीं से उनके 'गुलाबी गैंग' की नींव रखी गई। संपत ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, जहां कहीं भी उन्होंने किसी तरह की ज़्यादती होते देखी तो वहां दल-बल के साथ पहुंच गईं और ग़रीबों, औरतों, पिछड़ों, पीड़ितों, बेरोज़गारों के लिए लडाई लड़नी शुरु कर दी।
वर्ष 2006 में संपत एक बार फिर चर्चा में आईं जब उन्होंने दुराचार के एक मामले में अतर्रा के तत्कालीन थानाध्यक्ष को बंधक बना लिया था।
चारू खुराना एक स्वतंत्र मेक अप आर्टिस्ट हैं जिन्होंने फ़िल्म जगत में महिलाओं के साथ भेदभाव के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई।
लैंगिक समानता को लेकर शुरू की गई उनकी मुहिम को तब कामयाबी मिली जब सुप्रीम कोर्ट ने महिला मेकअप आर्टिस्ट्स को भी पुरुषों की तरह काम करने की इज़ाजत देने संबंधी फ़ैसला सुनाया।
चारू की कोशिशों के चलते 50 साल के बाद महिला मेकअप आर्टिस्ट्स के लिए बॉलीवुड के दरवाजे खुले।
सिनेमा मेकअप स्कूल, लॉस एंजलिस, अमरीका से मेकअप में मास्टर्स की डिग्री हासिल करने वाली चारू ने एक दशक से भी ज़्यादा समय के दौरान चारू ने कमल हसन, अभिषेक बच्चन, करीना कपूर और विक्रम विजय जैसे कलाकारों के साथ काम किया। चारू अभी भी महिला अधिकार से जुड़े मामलों के लिए सक्रिय हैं।
मधू महिलाओं के प्रति हो रहे अत्याचार पर अपनी आवाज रखती हैं। मधु गरीब और असहाय महिलाओं से मुकदमें का पैसा नहीं लेतीं।
मधु घरेलू हिंसा से प्रताड़ित महिलाओं की काउंसिलिंग करके उन्हें फिर से जीवन की नई राह दिखातीं हैं।
कंकडबाग की रहने वाली मधु श्रीवास्तव 1998 से पटना हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रही हैं। अभी तक वे पीड़ित महिलाओं के 70 से अधिक मामलों का निपटारा कर चुकीं हैं।
मुमताज़ शेख महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाली एक भारतीय कार्यकर्ता हैं। इन्होंने मुंबई में सभी को सार्वजनिक शौचालय मुहैया कराने का एक सफल शुरू किया था।
सार्वजनिक शौचालयों के लिए अभियान 2011 में छेड़ने के बाद मुमताज़ को 2011 में बीबीसी ने अपनी 100 इंस्पिरेशनल वुमेन कैम्पेन के लिए चुना। इस मुहिम में इन्होंने महाराष्ट्र में सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं के लिए शौचालय की कमी को देखते हुए 'राइट टू पी' अभियान शुरू किया।
इस अभियान के चलते 2013 में राज्य सरकार ने शहर में प्रत्येक 20 किलोमीटर के दायरे में महिलाओं के लिए शौचालय बनाने का निर्देश दिया। इसके अलावा पांच करोड़ रूपये की लागत से सरकार ने महिलाओं के लिए ख़ास डिज़ाइन किए गए 147 शौचालय बनवाए।
मुमताज़ की कोशिशों के चलते उन्हें राज्य सरकार ने 'महाराष्ट्र की बेटी' सम्मान से सम्मानित किया।
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