कैसे हुआ था कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ का खुलासा, जानें पूरा मामला
फरवरी 1999 में ही भारत के तब के पीएम अटल बिहारी वाजपेयी बस लेकर लाहौर गए थे. वाजपेयी की इस लाहौर यात्रा को दोनों देशों के बीच शांति की एक नई शुरुआत माना गया था.
नई दिल्ली:
साल 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध को 24 साल होने जा रहे हैं. इस जंग में भारतीय फौजों ने बेहद असाधारण वीरता दिखाते हुए पाकिस्तान आर्मी के एक बहुत बड़े ऑपरेशन को नाकाम कर दिया था. कारगिल की जंग इतिहास के पन्नों में हारी बाजी को जीतने की नजीर के तौर पर तो दर्ज है, लेकिन साथ ही इसे एक बड़ा इंटेलीजेंस फेल्यिर भी माना जाता है. जब भारत को कारगिल में पाकिस्तान की बहुत बड़ी घुसपैठ के बारे में पता चला था और फिर उन घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन विजय चलाया गया. कारगिल की जंग से साल भर पहले ही यानी 1998 में भारत और पाकिस्तान दोनों ने परमाणु परीक्षण किए थे. माना जा रहा था परमाणु हथियारों का खौफ अब दोनों देशों की बीच कोई जंग नहीं होने देगा. फरवरी 1999 में ही भारत के तब के पीएम अटल बिहारी वाजपेयी बस लेकर लाहौर गए थे. वाजपेयी की इस लाहौर यात्रा को दोनों देशों के बीच शांति की एक नई शुरुआत माना गया था. तो एक ऐसे वक्त में जब भारत और पाकिस्तान के पीएम शांति की कोशिशों में जुटे थे तब पाकिस्तान आर्मी के चीफ जनरल परवेज मुशर्रफ ऑपरेशन कोह ए पाइमा को अमली जामा पहना रहे थे. इसका मतलब होता है पर्वतारोहण इस ऑपरेशन का मकसद एलओसी क्रॉस करके भारत की सीमा में 809 किलोमीटर भीतर कारगिल की पहाड़ियों पर बने इंडियन आर्मी के ऊंचाई वाले बंकरों पर कब्जा करना था. ये वो बंकर थे जिन्हें भारतीय फौज सर्दियों में खाली कर देती थी.
पकिस्तानी फौज के इस ऑपरेशन का पहला हिस्सा पूरी तरह कामयाब रहा और भारत की सुरक्षा एजेंसियों को इसकी हवा तक नहीं लग सकी. उस वक्त के भारत के विदेश मंत्री जसवंत के बेटे मानवेंद्र सिंह इंडियन एक्सप्रेस अखबार में डिफेंस बीट की कवरेज करते थे. मानवेंद्र ने इंडियन एक्सप्रेस में बताया कि 1999 में मई के दूसरे सप्ताह की शुरुआत में आर्मी हेटक्वार्टर में तैनात एक सीनियर अधिकारी ने उन्हें शाम को डिनर पर मिलने के लिए बुलाया. उस अधिकारी ने मानवेंद्र को बताया कि कारगिल-द्रास सेक्टर में कुछ बड़ा ऑपरेशन हो रहा है क्योंकि बड़ी संख्या में भारतीय सेना के जवानों के हेलीकॉप्टर से वहां भेजा जा रहा है. एलओसी पर कोई प्रॉबलम है और शायद कोई बड़ी घुसपैठ हुई है. उस अधिकारी ने मानवेंद्र को ये बात उनके पिता यानी भारत के विदेश मंत्री जसवंत सिंह को बताने के लिए कहा ताकि देश की पॉलिटिकल लीडरशिप तक ये खबर पहुंच जाए.
मानवेंद्र ने अगली सुबह अपने पिता जसवंत सिंह से बात की तो उन्हें इस डेवलेंपमेंट की कोई जानकारी नहीं थी. तब जसवंत सिंह ने वायपेयी कैबिनेट में अपने साथी और तब के रक्षा मंत्री जॉ़र्ज फर्नांडीज को फोन मिलाया. लेकिन रक्षा मंत्री को भी कारगिल में हो रही एक्टिवीटीज की कोई जानकारी नहीं थी. ज़ॉर्ज फर्नांडीज अगले ही दिन रूस की यात्रा पर जाने वाले थे, लेकिन जसवंत सिंह ने उससे पहले मिलिट्री ऑपरेशंस डायरेक्टरेट के ऑपरेशन रूम में इस डेवलेंमेंट की जानकारी लेने का सुझाव दिया.
मानवेंद्र बताते हैं कि मिलिट्री ऑपरेशंस के डाइरेक्टर जनरल ने जसवंत सिंह और जॉर्ज फर्नांडीज को इस इलाके में हुई घुसपैठ की जानकारी तो दी लेकिन ये नहीं बताया गया कि घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी आर्मी के लोग है और ये घुसपैठ कितने बड़े स्तर पर हुई है. मानवेंद्र लिखते है कि लोकल आर्मी फॉरमेशंस ने इस घुसपैठ की गंभीरता के बारे में आर्मी हे्डक्वार्टर को भी अंधेरे में रखा था.
दरअसल इंडियन आर्मी को इस बड़ी घुसपैठ का अंदाजा तो हो गया था लेकिन उसके अधिकरियों को लगता थे कि इसे लोकल लेवल पर सुलझा लिया जाएगा लिहाजा पॉलिटिकल लीडरशिप को इसके बार में बताने की जरूरत नहीं समझी गई. इत्तेफाक देखिए कि इंडियन आर्मी के चीफ जनरल वेद प्रकाश मलिक भी उस वक्त पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया की यात्रा पर थे उन्हें इस घुसपैठ की खबर किसी आर्मी ऑफिसर से नहीं बल्कि वहां के भारतीय राजदूत ने दी. दरअसल पाकिस्तान ने ये ऑपरेशन बेहद गोपनीयता के साथ तैयार किया था. कारगिल में घुसपैठ की पहली जानकारी आठ मई 1999 को तब लगी जब कुछ भारतीय चरवाहों ने इन बंकरों में पाकिस्तानी घुसपैठियों को देखा और इंडियन आर्मी को इत्तिला दी. इसके बाद भारतीय सेना की कुछ पेट्रोलिंग यूनिट्स ने मौका मुआयना भी किया लेकिन इतनी बड़ी घुसपैठ को कोई अंदाजा नहीं था.
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सियाचिन सेक्टर से इंडियन आर्मी को बेदखल करना था पाक का मकसद
दरअसल इस घुसपैठ के पीछे पाकिस्तान का मकसद सियाचिन सेक्टर से इंडियन आर्मी को बेदखल करना था. भारत ने 1984 में सियाचिन पर कब्जा किया था. कहा जाता है कि परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान स्पेशल ऑपरेशन यूनिट में मेजर थे जिसने कई बार सियाचिन को कब्जे में लेने की नाकाम कोशिश की थी और जब वो पाकिस्तान आर्मी के चीफ बने तो उन्होंने अपना अधूरा ख्वाब पूरा करने का ऐसा प्लान बनाया जिसने भारत-पाकिस्तान को परमाणु युद्ध के मुहाने पर लाकर खड़ा रह दिया. सियाचिन ग्लेशियर तक पहुंचने के लिए नेशनल हाइवे 1 डी बेहद जरूरी था. कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जे के बाद ये हाइवे सीधे पाकिस्तान के निशाने पर आ जाता और सियाचिन में रसद पहुंचाना बेहद मुश्किल हो जाता और भारत को वहां से हटना पड़ता. बहरहाल, जब कारगिल में हुई पाकिस्तानी घुसपैठ का पूरा अंदाजा लगा तो इंडियन आर्मी ने फुल स्केल पर घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू किया. यही नहीं इंडियन एयरफोर्स ने भी ऑपरेशन सफेद सागर चलाकर घुसपैठियों के ठिकानों बम बरसाए.
कारगिल के युद्ध के दौरान एक मौका तो ऐसा आया जब पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ और आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ दोनों इंडियन एयरफोर्स के एक लड़ाकू विमान जगुआर के निशाने पर आ गए.
दरअसल इस जंग के दौरान भारत सरकार ने एयरपोर्स को एलओसी क्रॉस करके पाकिस्तान के भीतर हमला ना करने की हिदायत दी थी. इंडियनन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक 24 जून को भारत के दो जगुआर विमान मुश्कोह घाटी में पाकिस्तानी घुसपैठियो के लिए आई रसद को निशाना बनाने के लिए उड़े. लेकिन उनके निशाने पर पाकिस्तान की सीमा के 8-9 किलोमीटर भीतर गुलतारी बेस आ गया. ये पाकिस्तान आर्मी के एक फॉरर्वर्ड बेस था जहां से कारगिल में मौजूद घुसपैठियों को रसद पहुंचाई जा रही थी. भारतीय पायलट को वहीं काफी भीड़ भी दिखी. टारगेट लॉक किया गया लेकिन उस ऑपरेशन के कमांडर को अंदेशा हुआ कि संभवत: ये जगह पाकिस्कतान के भीतर है और ये हमला रोक दिया गया. बाद में जानकारी मिली कि उस वक्त गुलतारी बेस नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ दोनों मौजूद थे जो जंग के दौरान अपनी फौज का मनोबल बढ़ाने के लिए वहां पहुंचे थे. बहरहाल मई के महीने में जानमाल का भारी नुकसान उठाने के बाद जून में इंडियन आर्मी ने कारगिल में बाजी को पलटना शुरू कर दिया. माना जाता है इस तरह की पर्वतीय जंग में ऊंचाई पर बैठे दुश्मन के एक फौजी को हटाने के लिए 27 फौजियों की दरकार होती है.
इंडियन आर्मी के 527 जवान इस जंग में शहीद हुए जबकि 1363 जवान घायल हुए
इस जंग के आर्किटेक्ट परवेज मुशर्रफ ने अपना आत्मकथा इन द लाइन ऑफ फायर में दावा किया है कि पाकिस्तान के 8-9 सिपाहियों की चौकी पर भारत ने पूरी ब्रिगेड के साथ हमला किया. दरअसल मुशर्रफ को ये अंदाजा नहीं था कि भारत इस घुसपैठ के खिलाफ इतनी ताकत झोंक देगा. कागरिल की जंग इतनी बढ़ गई कि इसके लिए भारत ने कश्मीर में इंडियन आर्मी की पांचडिवीजन, पांच स्वतंत्र ब्रिगेड और अर्धसैनिक बलों की 44 बटालियन तैनात कीं. 60 फ्रंटलाइन विमान भी तैनात कर दिए. इंडियन एयरफोर्स ने इस जंग में दो मिग फाइटर जेट्स और दो हेलॉप्टर्स का नुकसान उठाया. इंडियन आर्मी के 527 जवान इस जंग में शहीद हुए जबकि 1363 जवान घायल हुए.
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..तब नवाज ने अमेरिकी राष्ट्रपति की बात मानकर अपनी फौज को बुला लिया था
जून के दूसरे हफ्ते में कारगिल की जंग का रुख भारत की तरफ मुड़ने लगा. तोलोलिंग की पहाड़ी पर मिली जीत ने ये इशारा कर दिया कि अब कारगिल की पहाड़ियो से पाकिस्तानियों को खदेड़ना मुश्किल काम नहीं है. दरअसल मुशर्रफ को लगता था कि अगर भारत इस जंग को लंबे वक्त तक खींचेगा तो अमेरिका जैसी बड़ी इंटरनेशनल ताकतें सीज फायर करा देंगी और करागिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तान का कब्जा बरकरार रहेगा.. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. भारत सरकार, दुनिया को ये बात समझाने में कामयाब रही कि पाकिस्तान ने जानबूझकर भारत की जमीन पर कब्जा करने की साजिश की है. और जब अमेरिकी प्रेजीडेंट बिल क्लिंटन को यकीन हो गया कि कारगिल की जंग पाकिस्तान की खुराफात का नतीजा है तो उन्होंने पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ को बुलाकर एक मुलाकात की. बताया जाता है कि इस मुलाकात में क्लिंटन ने नवाज शरीफ बहुत तगड़ी झाड़ लगते हुए बिन शर्त अपनी फौज को कारगिल से हटाने के लिए कहा. तारिक फातमी की किताब फ्रॉम कारगिल टू कू के मुताबिक जिस वक्त क्लिंटन और शरीफ की बात हो रही थी तभी टीवी पर टाइगर हिल पर भारत के कब्जे की खबर आने लगीं. नवाज शरीफ ने फोन करके मुशर्रफ से इसकी जानकारी मांगी तो वो इससे इनकार नहीं कर सके. जाहिर है पाकिस्तान हार चुका था और नवाज शरीफ ने अमेरिकी प्रेजीडेंट की बात मान कर अपनी फौज को वापस बुलाने का फैसला कर लिया. मानवेंद्र सिंह के मुताबिक इस जंग के शुरू होने के बाद भारत के डीजीएमओ की ओर से 18 मई को पीए वाजपेयी को जो पहली ब्रीफिंग दी गई ती उसके मुताबिक ये ऑपरेशन दो-तीन हफ्ते में खत्म हो जाना था. लेकिन ये लड़ाई कई हफ्तों तक चली और 26 जुलाई को ऑपेरेशन विजय पूरा हुआ. इस दिन को कारगिल विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है.
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