दुनिया का सबसे बड़ा और एडवांस परमाणु फ्यूजन रिएक्टर तैयार, एक बार में 2 करोड़ डिग्री सेल्सियस ऊर्जा होती है पैदा
इस न्यूक्लियर फ्यूजन को इसलिए तैयार किया गया है, ताकि बड़े पैमाने पर, सुरक्षित ढंग से कार्बन मुक्त ऊर्जा उत्पन्न की जा सके. मालूम हो कि ये फिलहाल एक एक्सपेरिमेंट है, जिसके सफल होने पर इसे बड़े पैमाने पर स्थापित किया जाएगा.
नई दिल्ली:
दुनिया का सबसे बड़ा न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर शुरू हो चुका है. बीते शुक्रवार जापान के नाका नॉर्थ (Naka North) में इसे स्टार्ट किया गया है. बता दें कि इस वक्त पूरी दुनिया में मौजूद परमाणु संयंत्र फिजन (Nuclear Fission) पर काम करते हैं, जो दो अणुओं के केंद्रक को अलग करते हैं, जबकि जापान में शुरू हुआ ये न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion) संयंत्र दो अणुओं (molecules) के केंद्रक (Nuclei) को आपस में जोड़कर ऊर्जा पैदा करता है. गौरतलब है कि इस न्यूक्लियर रिएक्टर का नाम JT-60SA है.
बता दें कि इस न्यूक्लियर फ्यूजन को इसलिए तैयार किया गया है, ताकि बड़े पैमाने पर, सुरक्षित ढंग से कार्बन मुक्त ऊर्जा उत्पन्न की जा सके. मालूम हो कि ये फिलहाल एक एक्सपेरिमेंट है, जिसके सफल होने पर इसे लोगों या देश की दरकार के मुताबिक बड़े पैमाने पर स्थापित किया जाएगा. वहीं अगर JT-60SA के न्यूक्लियर फ्यूजन से साफ-सुथरी बिजली पैदा होती है, तो आने वाले वक्त के लिए ये एक बेहतरीन प्रदूषणमुक्त तरीका साबित होगा.
बताते चलें कि, यह फ्यूजन रिएक्टर तकरीबन छह मंजिला ऊंचा है, जिसमें डोनट के आकार का वेसल मौजूद है. इसे टोकामाक (tokamak) से भी पहचाना जाता है. टोकामाक के भीतर ही तेजी से प्लाज्मा को घुमाया जाता है, जिसका तापमान तकरीब 2 करोड़ डिग्री सेल्सियस को छू लेता है.
इसमें सूरज की तरह पैदा होती है ऊर्जा
गौरतलब है कि, इसे यूरोपियन यूनियन और जापान नें मिलकर बनाया है, जिसमें हाइड्रोजन केंद्र के हीलियम से मिलान के बाद बहुत अधिक मात्रा में रोशनी और गर्मी का उत्सर्जन होता है. ये प्रक्रिया हूबहू वैसी ही है, जैसे सूरज में होती है. इसे लेकर प्रोजेक्ट के डिप्टी लीडर सैम डेविस बताते हैं कि, इस मशीन के तहत हम फ्यूजन एनर्जी के इस्तेमाल की ओर बढ़ पाएंगे. फिलहाल इसपर 500 साइंटिस्ट और इंजीनियर्स काम कर रहे हैं, जिन्हें यूरोप और जापान की करीब 50 कंपनियों से लाया गया है.
जापान में बन रहा JT-60SA न्यूक्लियर फ्यूजन दुनिया का सबसे एडवांस टोकामाक है, जो आने वाले वक्त में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है. सैम डेविस का कहना है कि, इस सदी के मध्य तक इसी तरह के न्यूक्लियर रिएक्टर से ऊर्जा मिलेगी, जो पूरी जल्द ही दुनिया में फैल जाएगी.
गौरतलब है कि, फ्रांस भी इससे ज्यादा ताकतवर परमाणु संयंत्र बनाने में लगा हुआ है, जिसे नाम दिया गया है इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER). हालांकि ITER के साथ दिक्कत ये है कि वो बजट से ऊपर चला गया है. निर्माण भी लेट हो रहा है. साथ ही कई तरह की तकनीकी दिक्कतों का सामना कर रहा है.
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