अचला एकादशी 2017- जानें व्रत कथा, पूजा विधि और तिथि मुहूर्त
ज्येष्ठ मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशियां का विशेष महत्व होता। ज्येष्ठ मास की शुक्ल एकादशी को निर्जला एकादशी भी कहते हैं। वहीं ज्येष्ठ महीने की कृष्ण एकादशी का भी खास महत्व है।
नई दिल्ली:
हिंदू धर्म में एकादशी के दिन व्रत, उपवास पूजा आदि बहुत ही पुण्य फलदायी माना जाता है। एक हिंदू वर्ष में कुल 24 एकादशियां आती हैं। प्रत्येक मास की दोनों एकादशियों का अपना विशेष महत्व है।
ज्येष्ठ मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशियां का विशेष महत्व होता। ज्येष्ठ मास की शुक्ल एकादशी को निर्जला एकादशी भी कहते हैं। वहीं ज्येष्ठ महीने की कृष्ण एकादशी का भी खास महत्व है।
इस एकादशी को अपरा अर्थात् अचला एकादशी भी कहा जाता है। आइये आपको बताते हैं अपरा एकादशी की व्रत कथा व पूजा विधि के बारे में।
अपरा (अचला) एकादशी व्रत कथा
अपरा एकादशी के व्रत की कथा के अनुसार, किसी राज्य में महीध्वज नाम का एक बहुत ही धर्मात्मा राजा था। राजा महीध्वज जितना नेक था उसका छोटा भाई वज्रध्वज उतना ही पापी था। वज्रध्वज महीध्वज से द्वेष करता था और उसे मारने के लिए षड़यंत्र रचता रहता था। एक बार वह अपने मंसूबे में कामयाब हो जाता है और महीध्वज को मारकर उसे जंगल में फिंकवा देता है और खुद राज करने लगता है।
अब असामयिक मृत्यु के कारण महीध्वज को प्रेत का जीवन जीना पड़ता है। वह पीपल के पेड़ पर रहने लगता है। उसकी मृत्यु के पश्चात राज्य में उसके दुराचारी भाई से तो प्रजा दुखी थी ही साथ ही अब महीध्वज भी प्रेत बनकर आने जाने वाले को दुख पंहुचाते।
ये भी पढ़ें: लाइव शो के कारण मुश्किल में फंसे सुनील ग्रोवर, धोखाधड़ी का लगा आरोप
लेकिन उसके पुण्यकर्मों का सौभाग्य कहिये की उधर से एक पंहुचे हुए ऋषि गुजर रहे थे। उन्हें आभास हुआ कि कोई प्रेत उन्हें तंग करने का प्रयास कर रहा है। अपने तपोबल से उन्होंने भूत को देख लिया और उसका भविष्य सुधारने का जतन सोचने लगे।
सर्वप्रथम उन्होंने प्रेत को पकड़कर उसे अच्छाई का पाठ पढ़ाया फिर उसके मोक्ष के लिये स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत रखा और संकल्प लेकर अपने व्रत का पुण्य प्रेत को दान कर दिया। इस प्रकार उसे प्रेत जीवन से मुक्ति मिली और बैकुंठ गमन कर गया।
ये भी पढ़ें: बुद्ध पूर्णिमा 2017: बुद्ध को ज्ञान देने वाले वृक्ष से जानें क्यों सम्राट अशोक की पत्नी करती थीं ईर्ष्या?
अपरा एकादशी व्रत पूजा विधि
एकादशी के उपवास में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। एकादशी उपवास के लिये व्रती को दशमी तिथि से ही नियमों का पालन आरंभ कर देना चाहिये।
एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर स्नानादि के पश्चात स्वच्छ होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिये। फिर भगवान विष्णु, भगवान श्री कृष्ण एवं बलराम की पूजा करनी चाहिये। जहां तक संभव हो निर्जला उपवास रखें अन्यथा एक समय फलाहार तथा जल ग्रहण कर सकते हैं।
रात्रि में भगवान का जागरण करना चाहिये और द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा से संतुष्ट कर स्वयं आहार ग्रहण कर व्रत का पारण करना चाहिये।
दशमी तिथि को रात्रि के समय सात्विक अल्पाहार ग्रहण करना चाहिये। ब्रह्मचर्य का पालन करें। इसके अलावा मन से, वचन से और कर्म से शुद्ध आचरण रखे।
अपरा एकादशी 2017 तिथि व मुहूर्त
साल 2017 में अपरा एकादशी व्रत 22 मई को है।
अपरा एकादशी तिथि – 22 मई 2017
पारण का समय– 05:30 से 08:13 बजे तक (23 मई 2017)
एकादशी तिथि आरंभ – 16:41 बजे (21 मई 2017)
एकादशी तिथि समाप्त – 14:43 बजे (22 मई 2017)
पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्त – 12:03 बजे (23 मई 2017)
Don't Miss
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
-
Sunny Deol: कपिल के शो पर सनी देओल ने ऐसा क्या कहा...? सुनकर रो पड़े Lord बॉबी
-
Ibrahim Ali Khan Insta Debut: इब्राहिम अली खान ने मारी इंस्टाग्राम पर एंट्री, पहले ही पोस्ट में किया इस ब्रांड का प्रमोशन
-
Nicole Kidman: बेहद गॉर्जियस हैं हॉलीवुड स्टार निकोल किडमैन की बेटियां, पहली बार रेड कार्पेट पर आईं नजर
धर्म-कर्म
-
Namkaran Muhurat May 2024: मई 2024 में नामकरण संस्कार के लिए ये हैं शुभ मुहूर्त, ऐसे रखें बेबी का नाम
-
Chanakya Niti: चाणक्य के अनुसार चंचल मन वाले लोग होते हैं ऐसे, दोस्ती करें या नहीं?
-
Masik Janmashtami 2024: कल मासिक कृष्ण जन्माष्टमी पर बन रहे हैं ये 3 शुभ योग, जल्द विवाह के लिए करें ये उपाय
-
May Promotion Horoscope: मई 2024 में इन 3 राशियों को मिलेगी नौकरी में जबरदस्त तरक्की, सिंह का भी शामिल!