logo-image

Triple Talaq बैन हुआ, अब तलाक-ए-हसन की बारी? जानें, तलाक की पूरी ABCD

तलाक, तलाक, तलाक. और शादी खत्म. मुसलमानों में तलाक का मसला हमेशा विवादित रहा है. एक झटके में तीन तलाक बोलकर रिश्ता खत्म करने को सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद अपराध घोषित किया जा चुका है

Updated on: 10 May 2023, 12:46 PM

New Delhi:

तलाक, तलाक, तलाक. और शादी खत्म. मुसलमानों में तलाक का मसला हमेशा विवादित रहा है. एक झटके में तीन तलाक बोलकर रिश्ता खत्म करने को सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद अपराध घोषित किया जा चुका है. अब इस्लाम में तलाक के एक और तरीके के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं ने मोर्चा खोल दिया है. ये है तलाक-ए-हसन. इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह इसे कानून की कसौटी पर परखेगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा कि पहली नजर में तलाक का ये तरीका संविधान के खिलाफ लगता है. आइए आपको बताते हैं कि ये तलाक-ए-हसन आखिर है क्या, ये तुरंत तीन तलाक से कैसे अलग है, मुसलमानों में तलाक के कौन-कौन से तरीके होते हैं, और सबसे बड़ी बात कि क्या मुस्लिम महिलाओं को भी अपने शौहर को तलाक देने का अधिकार होता है या नहीं.

ट्रिपल तलाक को सुप्रीम कोर्ट असंवैधानिक घोषित कर चुका

सबसे पहले जान लेते हैं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत इस्लाम में तलाक के कौन-कौन से तरीके होते हैं. मोटे तौर पर तीन तरीके हैं- तलाक-ए-अहसन, तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-बिद्दत. तलाक-ए-बिद्दत को तुरंत तीन तलाक भी कहा जाता है. इसमें शौहर अपनी बीवी को एक बार में ही तलाक तलाक तलाक बोलता है. बोलने के अलावा ये तलाक लिखकर भी दिया जा सकता है. एक साथ तीन बार तलाक बोलते ही शादी खत्म मान ली जाती है. हालांकि इस ट्रिपल तलाक को सुप्रीम कोर्ट असंवैधानिक घोषित कर चुका है. 2017 में शायरा बानो केस में सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच ने 3:2 के बहुमत से इसे खारिज कर दिया था. कोर्ट ने सरकार को इसके खिलाफ कानून बनाने का भी आदेश दिया था. उसके बाद सरकार ने 2017 में ही संसद में विधेयक पेश किया. 2019 में कुछ संशोधनों के साथ यह बिल पास हो चुका है. अब ट्रिपल तलाक कानूनन जुर्म है. अगर कोई ऐसा करता है तो उसे तीन साल तक की सजा हो सकती है. पीड़ित महिला गुजारा भत्ता पाने के लिए मजिस्ट्रेट के पास जा सकती है.

ये है- तलाक-ए-अहसन. अहसन का मतलब

अब तलाक के दूसरे तरीके पर बात करते हैं. ये है- तलाक-ए-अहसन. अहसन का मतलब होता है, उम्दा, मुनासिब. तलाक के इस तरीके में शौहर अपनी बीवी को उस समय तलाक देता है, जब बीवी का मासिक धर्म न चल रहा हो. तलाक बोलने के बाद इद्दत की अवधि तक इसका पालन किया जाता है. ये अवधि 90 दिनों तक या महिला के तीन मासिक धर्म होने तक की होती है. अगर पति-पत्नी इस दौरान फिर से साथ रहने का फैसला करते है तो तलाक खारिज मान लिया जाता है. और अगर शौहर-बीवी में सुलह नहीं होती, संबंध नहीं बनते और इद्दत के दिन बीत जाते हैं तब तलाक को फाइनल मान लिया जाता है. तब इस तलाक को वापस नहीं लिया जा सकता.

शौहर बोलकर या लिखकर बीवी को तलाक देता है

अब आते हैं तलाक के उस तरीके पर, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. ये है तलाक-ए-हसन. इसमें शौहर बोलकर या लिखकर बीवी को तलाक देता है. लेकिन ये तलाक तीन महीने के अंदर एक-एक करके दिया जाता है. हर तलाक के बीच एक महीने का फासला रहता है. अगर तीन महीने यानी इद्दत की अवधि तक पति-पत्नी में सुलह नहीं होती, तब तलाक को अंतिम मान लिया जाता है. लेकिन अगर पहली या दूसरी बार तलाक बोलने के बाद दोनों पक्ष साथ में रहने को राजी हो जाते हैं और संबंध बना लेते हैं, तब हलाला के बाद तलाक खत्म हो जाता है. हलाला में महिला को किसी दूसरे मर्द के साथ शादी करके संबंध बनाना पड़ता है, उसी के बाद वह अपने पहले शौहर से शादी कर सकती है.

महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया

तलाक-ए-हसन के खिलाफ जिस महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, अब उसकी कहानी जान लीजिए. उसका नाम है बेनजीर हीना. बेनजीर गाजियाबाद की रहने वाली हैं. वह खुद को तलाक-ए-हसन की पीड़िता बताती हैं. उनका कहना है कि उनके शौहर यूसुफ नकी ने 19 अप्रैल 2022 को खत के जरिए उन्हें तलाक-ए-हसन का पहला नोटिस भेजा था. इसके नौ दिनों के अंदर ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी थी. उसके बाद उन्हें 20 मई को दूसरा और 23 जून को तीसरा नोटिस मिला. इनमें उन पर गंभीर आरोप लगाए गए. उन्हें सफाई पेश करने का मौका भी नहीं दिया गया. बेनजीर के पति ने कोर्ट में अपनी बात रखी और आरोपों से इनकार किया.

ट्रिपल तलाक की तरह ही तलाक-ए-हसन भी मनमाना और तर्कहीन

बेनजीर ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में कहा है कि ट्रिपल तलाक की तरह ही तलाक-ए-हसन भी मनमाना और तर्कहीन है. इसमें महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है. मर्द जब चाहे, अपनी मर्जी से बीवी को छोड़ देते है. कभी-कभी तो वह वॉट्सऐप के जरिए भी तलाक लिखकर भेज देते हैं. महिलाओं को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है. इसमें महिलाओं के मानवाधिकारों का कोई ख्याल नहीं रखा जाता. यह तलाक संविधान के आर्टिकल 14, 15, 21 और 25 के भी खिलाफ है. यानी समानता के अधिकार, जीवन जीने के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है. इसलिए इसे असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए. साथ ही केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह सभी नागरिकों के लिए तलाक के एकसमान और निष्पक्ष नियम बनाए.

महिलाओं ने तलाक-ए-हसन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी

बेनजीर के अलावा कुछ और महिलाओं ने भी तलाक-ए-हसन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. गुरुवार 4 मई को इन याचिकाओं पर चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने सुनवाई की. बेंच में जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जे बी पारदीवाला भी शामिल थे. इस दौरान जजों ने कहा कि तलाक का यह तरीका भी सीधे तौर संविधान के प्रावधानों के खिलाफ नजर आता है. ऐसे में हमें इस पर विस्तार से सुनवाई करनी होगी.

क्या मुस्लिम महिला भी अपने शौहर को तलाक दे सकती है?

अब चलते-चलते इस सवाल का जवाब भी जान लेते हैं कि क्या मुस्लिम महिला भी अपने शौहर को तलाक दे सकती है? इस्लाम में एक प्रथा होती है, खुला. यह तलाक का ही एक रूप होता है. इसकी खासियत ये है कि ये औरतों की तरफ से दिया जाता है. जो औरत अपने शौहर से खुला लेना चाहती है, उसे आपसी रजामंदी से कुछ संपत्ति उसे वापस करनी होती है. इस साल फरवरी में मद्रास हाईकोर्ट ने खुला को  लेकर एक अहम फैसला दिया था. कोर्ट ने कहा था कि खुला के लिए शरिया अदालतों द्वारा दिया गया सर्टिफिकेट मान्य नहीं है. महिला को फैमिली कोर्ट में ही जाना चाहिए.

रिपोर्ट- मनोज शर्मा