गोरक्षकों पर चलेगा कानूनी डंडा! अलग-अलग याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में पढ़ा जा रहा है फैसला
सुप्रीम कोर्ट देश में गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा को लेकर मंगलवार को अपना फैसला सुनाएगी। इससे पहले 3 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट देश में गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा को लेकर आज अपना फैसला सुनाएगी। इससे पहले 3 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट इसी मामले पर दाखिल की गई अलग-अलग याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगी।
उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र और राज्य सरकार को गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा (मॉब लिंचिंग) को रोकने के लिए कड़े कानून बनाने का आदेश दे सकती है।
अंतिम सुनवाई में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और डी वाई चंद्रचूड़ की एक बेंच ने कहा था कि यह कानून व्यवस्था का मामला है और यह हर राज्यों की जिम्मेदारी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'कोई व्यक्ति कानून को हाथ में नही ले सकता है। इस तरह के मामलों पर रोक लगाना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। ये कोर्ट की भी जिम्मेदारी बनती है, हम विभिन्न याचिकाओं पर विस्तृत फैसला देंगे।'
याचिका में हिंसा को रोकने की गुहार
कोर्ट ने यह बात सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन एस पूनावाला और महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी समेत कई अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कही थी। इन याचिकाओं में गोरक्षा समूहों की हिंसा को रोकने की गुहार लगाई गई है।
तुषार गांधी ने शीर्ष अदालत के इस मामले के पहले के आदेशों का पालन नहीं करने का आरोप लगाते हुए कुछ राज्यों के खिलाफ मानहानि याचिका भी दायर की है।
तुषार गांधी की तरफ से कोर्ट में वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने बताया था कि अदालत के सरकारों के सख्त आदेश के बावजूद लगातार इस तरह के मामले हो रहे है, अभी दिल्ली से 60 किमी की दूरी पर ऐसा मामला हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये कोई एक मामले का सवाल नहीं है, ये 'भीड़ की हिंसा' है, इस पर नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार को अनुच्छेद-257 के तहत योजना बनानी चाहिए।
केंद्र सरकार की दलील
इस मामले पर केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलीसिटर जनरल (एएसजी) पी एस नरसिम्हा ने कहा था कि केंद्र इस स्थिति से वाकिफ है और इस मुद्दे से निपटने की कोशिश कर रही है।
एएसजी ने कहा था, 'ये मामला कानून-व्यवस्था का है। सीधे तौर पर राज्य सरकारों की जिम्मेदारी बनती है। सवाल ये है कि क्या राज्य सरकार कोर्ट के निर्देशों का ईमानदारी से पालन कर रही है?'
वहीं एएसजी के जवाब पर इंदिरा जयसिंह ने कहा था, 'केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वो राज्य सरकारों को महज गाइड लाइन जारी करने के बजाय और कदम भी उठाए। महज राज्य सरकारों पर आरोप डालकर केंद्र अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकता।'
गौरतलब है कि पिछले साल 6 सितंबर को कोर्ट ने सभी राज्यों को गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। साथ ही कहा था कि एक हफ्ते में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की नियुक्ति नोडल ऑफिसर के तौर पर हर जिले में की जाए और कानून हाथ में लेने वाले गोरक्षकों के खिलाफ कार्रवाई करे।
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