मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को बेपटरी किया, समाज को भी हुआ नुकसान: पी चिदंबरम
पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि 2008 की 'विशाल मंदी' के कारण हुई क्षति से उबर चुकी भारतीय अर्थव्यवस्था को मोदी सरकार ने बेपटरी कर दिया है.
नई दिल्ली:
पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि 2008 की 'विशाल मंदी' के कारण हुई क्षति से उबर चुकी भारतीय अर्थव्यवस्था को मोदी सरकार ने बेपटरी कर दिया है. 2008 में वृद्धि दर 7.5 फीसदी पर रही थी. उन्हें लगता है कि अर्थव्यवस्था को हुआ नुकसान उतना ही चिंताजनक है, जितना समाज को हुआ नुकसान चिंताजनक है. उन्होंने कहा, 'जिन लोगों ने अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिए समझदारी भरे विचार पेश किए थे, वे सभी नाराजगी और निराशा में सरकार को छोड़कर चले गए हैं.'
चिदंबरम ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह झूठे आंकड़े पैदा करती है और लोगों से उन आंकड़ों को खाने के लिए कहती है. उन्होंने यह बात 'अनडॉन्टेड : सेविंग द आइडिया ऑफ इंडिया' पुस्तक में कही है, जिसका विमोचन आठ फरवरी को पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी करेंगे.
आगामी पुस्तक के परिचय में उन्होंने जोर देकर कहा है, "एक पुरानी सभ्यता, जो कई धर्मो, संस्कृतियों, भाषाओं, समुदायों और जातियों को संजोए हुए है, उसने पिछले 71 वर्षो के दौरान आधुनिक राष्ट्र बनने का प्रयास किया, लेकिन उसका आज इतना ध्रुवीकरण और विभाजन कर दिया गया है कि उसके लिए अपने को बचाए रखना चिंता का असली कारण बन गया है."
उन्होंने कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी लोकतंत्र के मौलिक नियमों को समझते थे और उन्होंने शिष्टाचारपूर्वक 13 दिनों बाद, फिर 13 महीनों बाद और एक बार फिर से पांच वर्षो बाद सत्ता छोड़ दी थी. उन्होंने दुख प्रकट करते हुए कहा कि उनके उदाहरण को भुला दिया गया और आज जो स्वंयसेवक सत्ता में बैठे हैं, उन्होंने इस उदाहरण की शायद व्यक्तिगत आलोचना भी की.
उन्होंने कहा, "समकालीन भारत में संविधान के प्रत्येक मूल्य पर हमला हो रहा है और उन्हें एक स्पष्ट और वर्तमान खतरे का डर है कि भारत के संविधान को एक दस्तावेज के साथ बदल दिया जाएगा, जो हिंदुत्व नामक एक विचारधारा से प्रेरित होगा."
चिंदबरम ने कहा कि इससे भारत का विचार समाप्त हो जाएगा और उससे मुक्ति पाने के लिए एक दूसरे स्वतंत्रता संघर्ष व दूसरे महात्मा (गांधी) की जरूरत होगी.
हामिद अंसारी ने पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा है, 'अगर बजट को संसद में बगैर बहस के पारित कर दिया जाता है और यदि स्थायी समिति के संदर्भ के बगैर कानून के महत्वपूर्ण हिस्सों को पारित कर दिया जाता है तो यह स्पष्ट है कि विधायी संस्थान के रूप में संसद अपना काम नहीं कर रही है और सरकार अपने प्राथमिक कर्तव्य में विफल रही है.'
और पढ़ें- लगातार दो साल राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाना भारत के साख के लिये ठीक नहीं: मूडीज़
रूपा द्वारा प्रकाशित चिदंबरम की इस पुस्तक का विमोचन शुक्रवार को होगा'
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