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अमेरिका के सबसे बड़े दुश्‍मन के रूप में पहचान बनाई थी कासिम सुलेमानी ने

अमेरिका ने ईरान की क़ुद्स फ़ोर्स के प्रमुख जनरल क़ासिम सुलेमानी को एयर स्‍ट्राइक में मार गिराया है. हमले में कताइब हिज़बुल्लाह के कमांडर अबू महदी अल-मुहांदिस भी मारे गए हैं.

Updated on: 03 Jan 2020, 11:07 AM

नई दिल्‍ली:

अमेरिका ने ईरान की क़ुद्स फ़ोर्स के प्रमुख जनरल क़ासिम सुलेमानी को एयर स्‍ट्राइक में मार गिराया है. हमले में कताइब हिज़बुल्लाह के कमांडर अबू महदी अल-मुहांदिस भी मारे गए हैं. अमरीकी रक्षा विभाग ने कहा, "अमरीकी राष्ट्रपति के निर्देश पर विदेश में रह रहे अमरीकी सैन्यकर्मियों की रक्षा के लिए क़ासिम सुलेमानी को मारने का कदम उठाया गया है. अमेरिका ने उन्‍हें पहले से आतंकवादी घोषित कर रखा था." अमेरिका ने यह भी कहा, "सुलेमानी कई महीनों से इराक़ स्थित अमरीकी सैन्य ठिकानों पर हमलों को अंजाम देने में शामिल रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने सुलेमानी के मारे जाने के ठीक बाद अमेरिका का झंडा ट्वीट किया है.

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सुलेमानी अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का विरोधी माना जाता था. उन्होंने कई मौकों पर अमेरिका को चेतावनी दी थी. बगदाद में अमेरिकी दूतावास पर हमले के बाद ट्रंप ने ईरान को चेतावनी दी थी. नए साल के पहले दिन ट्रंप ने चेतावनी देते हुए कहा था कि ईरान को नुकसान उठाना पड़ेगा. इस धमकी के बाद अमेरिका ने यह कार्रवाई की है.

कासिम सुलेमानी के बारे में

  • ईरान रिवॉलूशनरी गार्ड्स का कहें तो एक तरह से मुखिया थे कासिम सुलेमानी.
  • अमेरिकी फौजों के लिए सिर दर्द थे सुलेमानी.
  • वह सिर्फ ईरान ही नहीं बल्कि विदेशों में काम करने वाली यूनिट कद्स फोर्स का भी जिम्मा संभालते थे.
  • कासिम ने अपनी पहचान अमेरिका के सबसे बड़े दुश्मन के रूप बनाई.
  • अमेरिका और ईरान के बीच की लड़ाई में अमेरिका के लिए सुलेमान एक बड़ा रुकावट थे.

कई बार मरने की फैली थी अफवाह

  • 2006 में उत्तर-पश्चिमी ईरान में एक विमान दुर्घटना में उनके मारे जाने की अफवाह आई.
  • 2012 में दमिश्क में एक हवाई हमले में सुलेमानी की मरने की अफवाह फैली थी.
  • नवंबर 2015 में सीरिया में युद्ध के दौरान गंभीर रूप से घायल होने या फिर मारे जाने की अफवाह फैली थी.

40 सालों से है अमेरिका और सुलेमानी के बीच दुश्मनी
1980 के दशक में ईरान और इराक के बीच खूनी जंग में सुलेमानी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसमें अमेरिका ने इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन का साथ दिया था. हालांकि, बाद में सद्दाम व अमेरिका के बीच रिश्ते काफी ज्यादा खराब हो गए थे.

इस्लामिक देशों में अपनी जड़े मजबूत कर रहे थे सुलेमानी

  • ईरान की तरफ से सुलेमानी के बढ़ते कद के लेकर अमेरिका नाराज था.
  • अमेरिका नहीं चाहता था कि सुलेमानी अपनी जड़े दूसरे देशों में भी फैलाए.
  • अमेरिका को डर था कि सुलेमानी की मजबूती ईरान को फायदा पहुंचा रहा है, इसलिए अमेरिका ने सुलेमानी को मारने का प्‍लान तैयार कर लिया.
  • IS जैसे खूंखार आतंकी संगठन के मुकाबले सुलेमानी ने कुर्द लड़ाकों और शिया मिलिशिया को एकजुट करने का काम किया था.
  • इराक में ईरान के समर्थन से तैयार पॉप्युलर मोबिलाइजेशन फोर्स को कासिम सुलेमानी ने ही तैयार किया था. सुलेमानी ने आतंकी संगठन हिजबुल्लाह व हमास को बी समर्थन दिया था.

कुद्स फोर्स

  • ईरान की इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स की कुद्स फ़ोर्स एक शाखा है. यह देश के बाहर के अभियानों को अंजाम देती है और इसके प्रमुख मेजर जनरल क़ासिम सुलेमानी सीधे तौर पर देश के सर्वोच्च नेता अयातुल्‍लाह अली ख़ामैनी के प्रति जवाबदेह थे.
  • उन्हें अयातुल्‍लाह अली ख़ामैनी का बहुत क़रीबी माना जाता था और भविष्य के नेता के तौर पर देखा जाता था.
  • 2003 में अमरीका के नेतृत्व में हुए सैन्य हमलों में इराक़ में सद्दाम हुसैन की सत्ता ख़त्म हो गई. इसके बाद से मध्यपूर्व में कुद्स सेना ने अपने अभियान तेज़ किए.
  • ईरान का समर्थन करने वाले दूसरे देशों के सरकार विरोधी गुटों को कुद्स ने हथियार, पैसे और ट्रेनिंग देनी शुरू की.
  • इसने युद्ध के ग़ैर-पारंपरिक तरीक़ों को भी अपनाना शुरु किया जिसका नतीजा ये हुआ कि पारंपरिक हथियारों पर निर्भर रहने वाले अपने विरोधियों पर ईरान को बढ़त मिली.
  • इन तकनीकों में स्वार्म तकनीक (बड़ी सैन्य टुकड़ी के साथ अलग-अलग ठिकानों से लड़ना), ड्रोन का इस्तेमाल और साइबर हमले महत्वपूर्ण हैं.
  • इसी साल अप्रैल में अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने ईरान रिवोल्यूशनरी गार्ड्स समेत कुद्स फ़ोर्स को "विदेशी आतंकवादी संगठन" क़रार दिया था.
  • ये पहली बार था जब अमरीका ने किसी दूसरी सरकार से जुड़े एक संगठन को चरमपंथी बताया था.
  • अमरीका के इस फ़ैसले पर ईरान ने इशारों इशारों में ये कहते हुए प्रतिक्रिया दी कि खाड़ी क्षेत्र में "अमरीकी सेना ख़ुद आतंकवादी गुट से कम नहीं है."
  • 2001 से 2006 के बीच में ब्रिटेन के विदेश मंत्री रहे जैक स्ट्रॉ ने कई बार ईरान का दौरा किया और उनका मानना था कि जनरल क़ासिम सुलेमानी की भूमिका महज़ एक सैन्य कमांडर से कहीं अधिक है.
  • उनका कहना था कि, "सेना की ताक़त के साथ सुलेमानी मित्र देशों के लिए ईरान की विदेश नीति चला रहे हैं."