logo-image

संयुक्त राष्ट्र में गहराया वित्तीय संकट, बजट में 23 करोड़ डॉलर की कमी

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने वैश्विक संगठन में फिर वित्तीय संकट गहराने की चेतावनी दी है.

Updated on: 09 Oct 2019, 01:00 AM

नई दिल्ली:

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने वैश्विक संगठन में फिर वित्तीय संकट गहराने की चेतावनी दी है. उन्होंने कहा कि इस महीने के आखिर में संयुक्त राष्ट्र का फंड समाप्त हो जाएगा. संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्यों में से सिर्फ 128 सदस्यों ने ही तीन अक्टूबर तक अपने बकाये का भुगतान किया है. कथित तौर पर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारियों को आगाह किया है कि संगठन को अपने बजट में 23 करोड़ डॉलर कमी का सामना करना पड़ेगा.

संयुक्त राष्ट्र का साल का नियमित बजट 5.4 अरब डॉलर है, जोकि शांति कायम करने पर खर्च होने वाले 6.5 अरब डॉलर के बजट से अलग है.

भारत ने नियमित बजट में अपने हिस्से का 232.5 लाख डॉलर 30 जनवरी को ही चुका दिया है. भारत संयुक्त राष्ट्र के उन कुछ सदस्य देशों में शामिल है, जिसने समय पर भुगतान किया है.

और पढ़ें:भारत के अपाचे और राफेल से पाकिस्तान के उड़े होश, चीन से मदद मांगने पहुंचे इमरान खान

जिन देशों पर बकाया है, उन्होंने अगर इस महीने और धन नहीं चुकाए तो संयुक्त राष्ट्र को अपनी कार्यशील पूंजी में अस्थाई तौर पर खर्च करना पड़ेगा.

संयुक्त राष्ट्र के पास धन की कमी का एक कारण अमेरिका है, जिसने अपने बकाये का भुगतान नहीं किया है. अमेरिका संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट में 22 फीसदी का योगदान देता है.

साल के आरंभ में सदस्य देशों द्वारा बकाये का भुगतान नहीं करने के कारण संयुक्त राष्ट्र को आवधिक बजट के संकट से जूझना पड़ रहा है.

पूरी राशि का भुगतान करने वाले देशों की संख्या इस साल पिछले साल के मुकाबले काफी कम हो गया है.

सिर्फ 127 सदस्य देशों ने ही इस साल अपना योगदान सितंबर के आखिर तक किया है, जबकि पिछले साल इस अवधि तक 141 देशों ने अपने योगदान की राशि का भुगतान किया था.

और पढ़ें:अलकायदा का खूंखार आतंकी आसिम उमर ढेर, एशिया क्षेत्र की संभाल रहा था कमान

गुटेरेस ने महासभा की बजट समिति को मई में बताया था, 'हम नाजुक स्थिति में हैं और हम आगे क्या करेंगे, वह आगामी वर्षो की बात होगी.'

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि सयद अकबरुद्दीन ने बार-बार इस बात का जिक्र किया है कि इससे संयुक्त राष्ट्र की शांति स्थापना के कार्यो में योगदान करने वाले देशों पर असर पड़ेगा.